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चीनी सिल्क रोड के शहर शियान में हाल ही में 18-19 मई को संपन्न हुए चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन को लेकर भारत में काफी चिंता देखी गई. चीन (China) रूस के रणनीतिक मैदान में घुसपैठ कर रहा है, और इस क्षेत्र में अपनी ताकत का विस्तार करना चाहता है. चीन कुल मिलाकर वहां पहले से अपनी मजबूत मौजूदगी को और मजबूत कर रहा है.
शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने क्षेत्र के विकास के लिए करीब 36 अरब अमेरिकी डॉलर के अनुदान और आर्थिक मदद के साथ-साथ वहां कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में तेजी लाने का वादा किया.
इसके अलावा शी ने पांच मध्य एशियाई राष्ट्र प्रमुखों में से हर एक– कजाखिस्तान के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट तोकायेव, किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सदर जापारोव, ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति एमामोली रहमान, तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति सरदार बर्दिमुकामेदोव और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव के साथ द्विपक्षीय बातचीत की और इनमें से चार के साथ द्विपक्षीय समझौते किए.
तुर्की में राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान (Recep Tayyip Erdogan) के फिर से चुनाव जीत जाने के बाद मध्य एशिया में तुर्की के प्रभाव क्षेत्र का भी विस्तार होगा. एर्दोगान पहले ही अपने पिछले कार्यकाल में तुर्की को केंद्र में रखते हुए देशों का तुर्की भाईचारा गठबंधन बनाने की अपनी महत्वाकांक्षा का ऐलान कर चुके हैं.
यह देखते हुए कि तुर्की रूस पर पाबंदियों के मद्देनजर रूसी पाइपलाइनों से परहेज करने में किस तरह अपने व्यापार मार्गों और प्रमुख गैस पाइपलाइनों के जरिये तेल और गैस का निर्यात करने के लिए मध्य एशियाई देशों की मदद कर रहा है. यह सहयोग और भी मजबूत होने वाला है.
हालांकि इस निराशाजनक हालात में भी उम्मीद की एक किरण है– रूस अभी भी इस क्षेत्र में बॉस की हैसियत रखता है. यह हकीकत है कि यूक्रेन पर रूस के हमले का दूसरा साल है, और इसका कोई अंत नहीं दिख रहा है, और लगाई गई पाबंदियों ने रूस को मुश्किल हालात में पहुंचा दिया है. इससे नई कार्रवाइयों के लिए कम मौके बचे हैं, और सीमावर्ती देश भी समय-समय पर तेवर दिखाते रहते हैं.
सबसे बड़ा मध्य एशियाई देश कजाखिस्तान ने यूक्रेन से छीने गए इलाकों की मान्यता के खिलाफ आवाज बुलंद की है, और रूस पर सबसे ज्यादा आर्थिक रूप से निर्भर आर्मेनिया ने रूस की अगुवाई वाले सैन्य गठबंधन को छोड़ने की धमकी दी है. यहां तक कि सबसे गरीब पूर्व सोवियत प्रांत ताजिकिस्तान के प्रमुख ने भी पिछले साल पुतिन को चेताया था और उनसे सम्मान से पेश आने के लिए कहा था.
हालात को ठीक से समझने के लिए 9 मई की विजय दिवस परेड एक अच्छा पैमाना हो सकता है. सभी मध्य एशियाई देशों के नेता, जिनमें उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव भी शामिल हैं– जो मॉस्को पर सबसे कम निर्भर हैं– सभी परेड के दौरान पुतिन के साथ खड़े थे.
उनमें आर्मेनिया के अवज्ञाकारी प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान भी शामिल थे. सभी अपनी महत्वाकांक्षाओं के साथ भविष्य के लिए आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य संबंधों के माध्यम से अपने पालक रूस के साथ जुड़े हुए हैं.
पश्चिम की तरफ से रूस पर लगाई गई पाबंदियों का उदाहरण लें. कजाखिस्तान जैसे देश जिनकी रूस के साथ लंबी सरहद है और आर्मेनिया जैसे देश, जिसकी कोई सीधी सरहद नहीं मिलती है, सभी का पाबंदियों से फायदा हुआ है.
रूस को ऐसे माल के पुन:निर्यात से उनमें से हर एक के व्यापार की मात्रा बढ़ गई है, जिसे रूस को पाबंदियों के तहत हासिल करने से रोक दिया गया है, जैसे कि माइक्रोचिप्स और टेलीस्कोप साइट्स.
उदाहरण के लिए आर्मेनिया की राष्ट्रीय सांख्यिकी समिति के अनुसार 2022 में, आर्मेनिया का विदेशी व्यापार पिछले वर्ष की तुलना में 68.8% बढ़कर 14.1 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच हो गया.
दिसंबर 2022 में, दिसंबर 2021 की तुलना में विदेशी व्यापार 69.9% बढ़ा था.
2021 में इसी अवधि की तुलना में व्यापार 77.7% बढ़कर 5.3 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया.
कजाखिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देशों में भी इसी तरह के आंकड़े सामने आए हैं. रूस की अगुवाई वाले यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (Eurasian Economic Union) में इन देशों के शामिल होने से बिना किसी कागजी कार्यवाही के तीसरे देशों से रूस में माल के सुचारु हस्तांतरण की सुविधा मिलती है और कारोबार फल-फूल रहा है.
इससे भी बड़ी बात यह है कि रूस मध्य एशियाई देशों के लाखों कामगारों का ठिकाना बना हुआ है, जो भारी कमाई घर भेजते हैं. और खास बात यह है कि यह पलायन यूक्रेन युद्ध की वजह से बढ़ा है.
यूक्रेन युद्ध और पिछले साल सितंबर में रूस के आगे बढ़ने के ऐलान के बाद बहुत से रूसी मध्य एशिया चले गए. कजाख गृह मंत्रालय की तरफ से 21 दिसंबर 2022 को जारी आंकड़ों के मुताबिक कजाखिस्तान में कम से कम 1.46 लाख रूसी पंजीकृत हैं.
असल आंकड़े इससे भी ज्यादा हो सकते हैं. इससे रूस में ज्यादा प्रवासी कामगारों की जरूरत पैदा हो गई है, जिनमें से कई को युद्ध के लिए भर्ती किए जाने की भी खबरें हैं.
सितंबर 2022 में रूस ने सेना में नौकरी करने वाले विदेशी नागरिकों के लिए नागरिकता हासिल करना आसान बनाने के लिए अपने कानून में बदलाव किया.
रूस से भेजा जाने वाला पैसा ताजिकिस्तान की GDP का 26 फीसद और किर्गिस्तान की GDP का 31 फीसद है– ये दोनों देश इलाके के आर्थिक रूप से सबसे पिछड़े देशों में से हैं.
दिलचस्प बात यह है कि उज्बेकिस्तान, जो न तो यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EEU) का और न ही रूस के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) का सदस्य है, फिर भी इस क्षेत्र से प्रवासी कामगारों का सबसे बड़ा हिस्सा रूस भेजता है. रूस की ड्यूमा (संसद का निचला सदन) के अनुसार. रूस में 18 लाख उज्बेक काम करते हैं.
उज्बेकिस्तान के समाचार संस्थान कुन.उज (Kun.uz ) का कहना है कि रूस में उज्बेक कामगार प्रवासियों की संख्या 2022 से बहुत तेजी से बढ़ी. पहले तो कोरोना महामारी, और फिर इसके बाद यूक्रेन युद्ध शुरू होना इसकी वजह है. प्रवासियों का अपने देश को भेजा जाने वाला धन बहुत मायने रखता है. कोई दूसरा श्रम बाजार उपलब्ध नहीं होने की वजह से इन देशों के लिए रूस की केंद्रीय भूमिका और पुख्ता होती है.
उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को छोड़कर मध्य एशिया के बाकी देश CSTO की सदस्यता के जरिये क्षेत्र में सुरक्षा प्रदाता रूस से सैन्य रूप से जुड़े हुए हैं. CSTO एक तरफ उन्हें सामूहिक सुरक्षा ढांचा मुहैया कराता है.
दूसरी तरफ यह चीन और अमेरिका जैसे दूसरे देशों को क्षेत्र से सैन्य रूप से दूर रखना भी सुनिश्चित करता है. रूस के कम से कम तीन देशों में सैन्य अड्डे हैं: किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और आर्मेनिया.
इससे अफगानिस्तान से पैदा होने वाले खतरों के लिए एक एकजुट प्रतिक्रिया तंत्र बनाने में मदद मिली. 2021 में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था तो उस समय अफगानिस्तान की सीमा पर रूस के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास में उज्बेकिस्तान ने भी हिस्सा लिया था.
सब्सिडी और अनुदानों के जाल के साथ रूस इस क्षेत्र में सबसे बड़ा हथियार सप्लायर भी है. यहां तक कि कजाखिस्तान जैसे ताकतवर देश को भी 2022 की शुरुआत में बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा से तबाही के बाद CSTO की मदद लेने की जरूरत पड़ी.
यूक्रेन में युद्ध निश्चित रूप से भारी कीमत वसूल रहा है लेकिन यहां तक कि पस्त हालत में भी रूस की भूमिका यह सुनिश्चित करती है कि मध्य एशिया और रूस का भाग्य एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़ा रहे, और आने वाले दिनों में भी ऐसा ही रहने वाला है.
(अदिति भादुड़ी पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @aditijan है. यह एक ओपिनियन पीस है. यह लेखक के अपने विचार हैं. क्विंट हिंदी इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)
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