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इन दिनों मीडिया में, फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप और अभिनेत्री तापसी पन्नू, अब खत्म कर दी गई फैंटम फिल्म्स सहित दो बड़ी फिल्म प्रोडक्शन कंपनियों और KWAN सहित दो टैलेंट मैनेजमेंट कंपनियों पर मुंबई, पुणे, दिल्ली और हैदराबाद में इनकम टैक्स विभाग के छापों की खबरें भरी हुई हैं. कुल 28 जगहों पर छापे मारे गए हैं. 2011 में बनाई गई फैंटम फिल्म्स ने ‘लुटेरा’, ‘क्वीन’, ‘अग्ली’, ‘एनएच 10’, ‘मसान’ और ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्में प्रोड्यूस की हैं.
केंद्र सरकार ने आरोपों को गलत बताया है. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि “ये बेकार की बात है. जांच एजेंसियां विश्वसनीय सूचना के आधार पर जांच की कार्रवाई करती हैं और बाद में मामला कोर्ट में भी जाता है.” यहां तक कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बयान दिया. “सबसे पहली बात तो ये कि मैं किसी खास व्यक्ति पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही हूं. (लेकिन) चूंकि नाम लिए गए थे, (मैं कहना चाहती हूं कि) इन्हीं लोगों पर 2013 में भी छापे पड़े थे.” उन्होंने आगे कहा कि “(2013 में) ये मुद्दा नहीं था लेकिन अब है.”
कई मामलों में, एक बड़ी हस्ती पर किसी छापे के बाद, इसके खिलाफ कड़ा विरोध होता है. ये छापों की एक सामान्य बात है. दो दशक पहले मुंबई में जब हमने फिल्मी सितारों और फैशन डिजाइनर्स पर छापे मारे थे, तब फिल्म और फैशन डिजाइनिंग के लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया था. 80 के दशक के मध्य में जब हमने एक विपक्ष के नेता पर छापे मारे, तो उन्होंने उनका करियर खत्म करने के लिए केंद्र सरकार पर साजिश का आरोप लगाया. लगभग सभी राजनीतिक दल ऐसा ही करते हैं.
आय कर विभाग ने, एक बयान में, कहा कि प्रमुख फिल्म प्रोडक्शन हाउस के द्वारा वास्तविक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की तुलना में आय को ‘बड़ी मात्रा में छुपाने’ के ‘सबूत’ मिले हैं.
इसके अलावा तापसी पन्नू के 5 करोड़ कैश लेने के ‘सबूत’ बरामद किए गए हैं. जिन कंपनियों पर छापे मारे गए हैं उनके कुछ इंटर लिंक ट्रांजैक्शन आयकर विभाग की जांच के दायरे में थे. छापों का उद्देश्य उनके खिलाफ कर चोरी के आरोपों की जांच के लिए और अधिक सबूत जुटाना था.
ये शुरुआती दिन हैं, और पूरी जानकारी बाहर आने में अभी और वक्त लगेगा.
इस स्तर पर, बिना किसी का पक्ष लिए, छापों को लेकर आयकर विभाग के प्रावधानों को समझना उपयोगी होगा. संयोग से आय कर के प्रावधानों में शब्द ‘छापे’ का इस्तेमाल आम बोलचाल की भाषा में आधिकारिक शब्द ‘तलाशी और जब्ती’ के लिए किया जाता है.
कुछ ही ऐसी चीजें हैं जो टैक्सपेयर्स के घर पर टैक्स अधिकारियों के आने से ज्यादा परेशान करने वाली हैं.
चूंकि छापा निजता पर सबसे बड़ा हमला है, इसलिए टैक्स विभाग की ओर से लिया जाने वाला अंतिम कदम होता है. छापे कभी-कभी या बहुत कम ही मारे जाते हैं. लाखों टैक्सपेयर्स में कुछ ही लोग सुबह-सुबह न चाहते हुए भी आय कर टीम के मेजबान बनते हैं. लेकिन आय को छुपाने के खिलाफ छापे एक जरूरी बुराई भी हैं.
ये अलोकप्रिय और ऐसा काम है जिसके लिए कोई धन्यवाद नहीं कहता. छापे खास जानकारी के आधार पर मारे जाते हैं जिनके मुताबिक आय कर विभाग के पास ये मानने के कारण होते हैं कि टैक्सपेयर के पास अघोषित आय है जिसका खुलासा वो टैक्स विभाग के सामने करने को तैयार नहीं है.
खाता-बही, बिल और रसीद में हेर फेर, बिना ब्यौरे का कैश क्रेडिट, शेयर ट्रांजैक्शन में हेर फेर, बड़े-बड़े खर्च जिनका कोई हिसाब नहीं और इसी तरह की दूसरी चीजों के जरिए टैक्स चोरी की सूचना का स्रोत आम तौर पर आय कर विभाग की अपनी खुफिया जानकारी ही होती है.
बैंकों, मार्केट फंड्स, संपत्ति के रजिस्ट्रेशन, फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट, सीरियस फ्रॉड इनवेस्टिगेशन यूनिट और दूसरी एजेंसियों से भी जानकारियां मिलती हैं. ये जानकारी विश्वसनीय हैं या नहीं, इसका पता बाद में ही चलता है. नोटबंदी के दौरान मारे गए छापों के वक्त ये सूचनाएं विश्वनीय पाई गई थीं.
जांच अधिकारी एक ‘संतुष्टि नोट’ लिखते हैं, जिसमें ये कहा जाता है कि दी गई सूचना के आधार पर और उनकी अपनी जांच के आधार पर उनके पास ये मानने के कारण हैं कि टैक्सपेयर के पास बेहिसाब आय है और वो अपने सीनियर्स से इसे मंजूरी दिलाता है.
इसलिए, छापे पक्की सूचनाओं पर आधारित होते हैं, जांचे जाने के बाद जिन पर कार्रवाई की गई होती है. जांच अधिकारी का संतुष्ट होना जरूरी है कि वहां टैक्स की चोरी हुई है और ऊपरी स्तर तक इस पर मंजूरी लेना जरूरी होता है. नियंत्रण और संतुलन भी किए जाते हैं. आय कर विभाग बिना किसी आधार पर किसी व्यक्ति के घर छापा नहीं मार सकता.
‘संतुष्टि नोट’ एक अहम दस्तावेज होता है- इसमें सूचना, स्रोत, जांच अधिकारी की ओर से की गई जांच की जानकारी, बेहिसाब आय की मौजूदगी होने के बारे में उनकी राय तक पहुंचने के कारण शामिल होते हैं. यही वो आधार है जिस पर छापे शुरू करने और आगे का मूल्यांकन आदेश टिका होता है. आदेश पत्र में लिखे गए संतुष्ट होने के कारणों की हाईकोर्ट जांच कर सकता है और किसी तरह की कमी होने पर छापों को खत्म भी कर सकता है. इसलिए कानून और कार्य प्रणाली में दर्ज प्रक्रियाओं को गंभीरता से लिया जाता है.
टैक्स चोरी कितने की थी ये तय करने की प्रक्रिया छापे खत्म होने और सभी खाता-बही, दस्तावेज, बयान, कीमती सामान, कैश और दूसरे सबूतों की जांच के बाद शुरू होती है. पहला चरण जिसमें कुछ स्पष्टता दिखेगी वो तब जब जांच अधिकारी ‘एप्रेसल रिपोर्ट’ (मूल्यांकन रिपोर्ट) लिखता है -एक प्राथमिक रिपोर्ट जिसमें जब्त महत्वपूर्ण दस्तावेज को सूचीबद्ध किया जाता है, किस दिशा में जांच आगे बढ़े उसकी सलाह दी जाती है और कितने की टैक्स चोरी हो सकती है उसका एक अनुमान लगाया जाता है. इसके बाद मूल्यांकन इकाई आगे का काम संभालती है, गहराई से जांच की जाती है और एक मूल्यांकन आदेश जारी करती है.
इसके बाद एक अपील की प्रक्रिया होती है जो कमिश्नर ऑफ अपील्स से शुरू होती है, इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल से लेकर हाई कोर्ट और उसके आगे तक जाती है.
दूसरी तरफ पार्टियां बेहिसाब आय स्वीकार कर सकती हैं या ‘आत्मसमर्पण’ कर सकती हैं. यहां आय कर विभाग को बहुत सावधानी से काम करने की जरूरत होती है. आम तौर पर इस तरह के ‘आत्मसमर्पण’ किसी बेहिसाब आय को नहीं दिखाते लेकिन उत्पीड़न से बचने और ‘शांति की चाहत’ में दिए जाते हैं. दस्तावेजी सबूतों और कार्य प्रणाली की जानकारी के बिना ये बेकार की कोशिश है. पार्टियां बाद में ये दावा कर सकती हैं कि उनसे जबर्दस्ती कर चोरी को स्वीकार कराया गया.
छापों के दौरान, और बाद में मदद मांगना बहुत ही सामान्य बात है. जबकि एक बार शुरू हो जाने के बाद छापे कमान से निकले तीर के समान हैं, जिसे कोई रोक नहीं सकता. जिन पर छापे मारे गए हैं वो नेताओं, अफसरों, उद्योगपतियों, टैक्स विभाग के जान-पहचान के लोगों- कोई भी व्यक्ति जिसे वो मदद के लिए प्रभावशाली मानते हैं- से मदद लेने की पूरी कोशिश करते हैं. जिनसे मदद मांगी जाती है उनमें से कुछ लोग फोन उठाते हैं प्रभाव दिखाने की कोशिश करते हैं, छापे पर नहीं, लेकिन छापे के बाद की जांच पर लेकिन शायद ही कभी उन्हें इसमें सफलता मिलती है.
अंत में अगर अनुराग कश्यप और पन्नू ने कुछ नहीं किया है, उनके सभी लेन-देन साफ-साफ हैं तो उन्हें डरने की जरूरत नहीं है. बेशक, जिस प्रक्रिया से उन्हें गुजरना होगा वो टैक्सपेयर्स के लिए अपने-आप में एक सजा से कम नहीं है. उन्हें इसे झेलना और सहन करना होगा.
दूसरी ओर, अगर, वो कर चोरी में शामिल हैं तो इसे स्वीकार करने, टैक्स और जुर्माना चुकाने और जीवन में आगे बढ़ने का यही सबसे अच्छा समय है. कश्यप और पन्नू दोनों बहुत ही अच्छी फिल्मी हस्तियां हैं और हम सब चाहते हैं कि वो स्टूडियो लौट जाएं और वही करें जो वो सबसे अच्छी तरह से कर सकते हैं.
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Published: 09 Mar 2021,08:12 AM IST