मेंबर्स के लिए
lock close icon

‘Uri: The Surgical Strike मनोरंजन के लिए देखें, तथ्‍य के लिए नहीं’

ये अब तक की भारतीय फिल्मों में प्रदर्शित सबसे बेहतरीन युद्ध कार्रवाईयों में एक है.

सैयद अता हसनैन
नजरिया
Updated:
फिल्म निर्देशक फिल्म को विभिन्न अध्यायों में बांटने में सफल रहे हैं.
i
फिल्म निर्देशक फिल्म को विभिन्न अध्यायों में बांटने में सफल रहे हैं.
(फोटो: Altered by The Quint)

advertisement

अगर आप ‘Uri: the Surgical Strike’ फिल्म के बारे में कोई मत बनाना चाहते हैं, तो ये फिल्म समीक्षा की अच्छी शुरुआत है.

मैं जोर देकर कह सकता हूं कि रोनी स्क्रूवाला की फिल्म मनोरंजन के लिए एक शानदार फिल्म है. इसमें बेहतरीन अभिनय है, मजबूत कथानक और कुशल निर्देशन है. लेकिन अगर आप फिल्म देखकर ये अनुमान लगाना चाहते हैं कि सीमा पर किस प्रकार सैन्य कार्रवाइयों को अंजाम दिया जाता है, तो आपको निराशा होगी.

उरी ब्रिगेड के एक पूर्व कमांडर के तौर पर मैं कह सकता हूं कि फिल्म वास्तविकता पर आधारित नहीं है. लेकिन ये भी सच है कि फिल्म से वास्तविकता की उम्मीद भी नहीं रखी जाती.

लिहाजा समीक्षा की शुरुआत इस बात से की जाए कि एक ऐसे सिपाही के रूप में मुझे क्या अच्छा लगा, जिस सिपाही ने अपनी पूरी जिंदगी फिल्म कथानक को महसूस किया है.

स्पष्ट विषय

फिल्म का विषय बिलकुल स्पष्ट है. आतंकवादी हमले में 20 लोगों की दर्दनाक मौत, जो हमेशा के लिए आंखें बंद करने से पहले गहरी नींद में थे. और फिर सीमा पार जाकर बदले की कार्रवाई, जिसमें भारतीय सेना के स्पेशल फोर्स ने कई आतंकवादी ठिकानों पर हमले किए और भारी संख्या में आतंकवादियों को मार गिराया और उन्हें नुकसान पहुंचाया.

फिल्म निर्देशक फिल्म को विभिन्न अध्यायों में बांटने में सफल रहे हैं. यही कारण है कि फिल्म की शुरुआत उरी या जम्मू-कश्मीर के किसी अन्य हिस्से से नहीं, बल्कि मणिपुर से होती है.

ये 4 जुलाई 2015 को NSCN (K) के साथ सेना की एक यूनिट के मुठभेड़ की कहानी है. यूनिट की अगुवाई पैरा स्पेशल फोर्सेज (SF) के एक अफसर मेजर विहान सिंह शेरगिल (विक्की कौशल) करते हैं, जिनकी यूनिट को NSCN (K) का सफाया करने का हुक्म दिया जाता है. वास्तव में ये हिस्सा फिल्म का सबसे बेहतरीन हिस्सा है.

युद्ध के दृश्यों का सतर्कतापूर्वक निर्देशन

विद्रोहियों पर हैलिबॉर्न छापे के दृश्यों का निर्देशन बेहद सावधानी पूर्वक किया गया है. ये अब तक की भारतीय फिल्मों में प्रदर्शित सबसे बेहतरीन युद्ध कार्रवाईयों में एक है.

(फोटो: विकी कौशल ट्विटर)

स्पेशल फोर्स के सभी कमांडो शारीरिक रूप से फिट नजर आते हैं और शायद यूनिफॉर्म, हथियारों और एसएफ के उपकरणों का उन्हें वास्तविक प्रशिक्षण दिया गया है. उनकी चपल और सामरिक गतिविधियां इसे बॉलीवुड की अन्य फिल्मों से अलग और विशेष दर्जा देती हैं.

इस ऑपरेशन के बाद विहान सिंह हेडक्वॉर्टर इन्टेग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (IDS) में तैनाती के बजाय अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए समयपूर्व सेवानिवृत्ति का आवेदन करते हैं. यहीं उरी में हुए आतंकवादी हमले में उसके करीबी दोस्त की मौत की खबर, जो खुद भी स्पेशल फोर्स का अधिकारी था, कहानी में मोड़ लाती है.

उरी में वो आतंकवादियों के साथ लड़ते हुए शहीद हो जाता है. इन दृश्यों में पैरा स्पेशल फोर्स की टीम भावना बेहद खूबसूरती से उकेरी गई है.

फिर बारी आती है सीमा पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करने और बदला लेने की. जोखिम भरे इस काम को अंजाम देने का बीड़ा उठाने के लिए मेजर विहान सेना प्रमुख के पास जाते हैं, जहां उनकी योजना को मंजूरी मिल जाती है.

कल्पनाशीलता अधिक, सच्चाई कम

इसके बाद की पूरी कहानी सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी और कार्रवाई से जुड़ी है. खुफिया नेटवर्क तैयार करना, योजना बनाना, उपकरणों का जमावड़ा और फिर कार्रवाई. पूरा दौर दर्शकों को बांधे रखता है. उन्हें सपनों की दुनिया की सैर कराता है और पूरी तरह उनका मनोरंजन करता है.

लेकिन यहां गहन जानकारियों का अभाव दिल को कचोटता है, विशेषकर जब सेना का एक अनुभवी अफसर फिल्म निदेशक का सलाहकार हो. ये आलोचना जरूरी है, अन्यथा दर्शक समझेंगे कि वास्तव में सैन्य कार्रवाई की तैयारी फिल्म में दिखाए गए तरीके से की गई थी.

सबसे पहले योजना की बात. इसमें कोई शक नहीं कि इतनी गंभीर सामरिक योजना में किसी उच्चतर अधिकारी का शामिल होना शायद अनिवार्य हो.

ये बात बिलकुल उत्साहवर्धक नहीं थी कि जिस सेना का हिस्सा पैरा स्पेशल फोर्स हो, उसकी पहली योजना मिलिट्री ऑपरेशंस (MO) डायरेक्टोरेट से न आए, बल्कि HQ IDS से आए, जो पूरी कार्रवाई के केंद्र में होता है. वास्तविकता में इसके ठीक विपरीत है.

यहां तक तो फिर भी ठीक था. लेकिन ये बात कल्पना से परे थी कि सेना प्रमुख और नॉर्दर्न आर्मी कमांडर को कमांड देते हुए दिखाया जाए, मसलन कब सीमा पर फायरिंग शुरू करनी है, हमले की इन्टेन्सिटी कम करनी या फायरिंग बंद करनी है और इस दौरान डीजीएमओ का कहीं अता-पता न हो.

फिल्म में इतनी गंभीर कार्रवाई की योजना बनाने के तरीके को देखकर सर्विस समुदाय में निराशा है.

लेकिन जैसा पहले कहा जा चुका है कि ये वास्तविकता से परे है. और फिल्म में हम उसे देखना भी नहीं चाहते. दरअसल यहीं से फिल्म दर्शकों को सपनों की दुनिया की सैर कराना आरंभ करती है, जो पूरी फिल्म में चलती रहती है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सैन्य प्रतीकों का गलत उपयोग

एक युवा पैरा स्पेशल फोर्स को सीधे एक सिविलियन अधिकारी से आदेश लेते देखना अजीब लगता है. वास्तव में पैरा स्पेशल फोर्स का एक कमांडिंग अफसर सबसे निचले रैंक का अधिकारी होता है. ये देखते हुए कि सेना की ऐसी इकाइयां बेहद विशेष दर्जे की होती हैं, उन्हें सेना की सख्त हिरारकिकल चेन ऑफ कमांड ही निर्देश दे सकता है. इसके अलावा मेजर विहान की यूनिट नॉर्दर्न कमांड के अंदर काम नहीं कर रही थी और उनकी शेष यूनिट उत्तर-पूर्वी स्पेशलिस्ट फोर्स थी.

(फोटो: विकी कौशल ट्विटर)

निश्चित रूप से बॉलीवुड डायरेक्टर्स को ये समझाने का कोई अर्थ नहीं कि प्रत्येक सैन्य प्रतीक चिह्न कुछ ना कुछ कहता है. मेजर विहान HQ IDS में काम कर रहे होते हैं, जबकि उनका प्रतीक चिह्न साउदर्न कमांड का है.

सेना प्रमुख का प्रतीक चिह्न सही है, लेकिन लगता है कि उनके सहायक ईस्टर्न कमांड का प्रतीक चिह्न अपनी वर्दी से उतारना भूल गए. वो ये भी भूल गए कि सेना मुख्यालय का अपना अलग प्रतीक चिह्न होता है.

विहान के पैरा स्पेशल फोर्स सहकर्मी HQ ARTRAC का प्रतीक चिह्न तो पहनते हैं. वैसे फिल्म निर्देशक को ये बताना चाहिए था कि पैरा एसएफ अधिकारी कभी सेरेमोनियल पीक कैप नहीं पहनते, जबकि पुष्पांजलि के एक दृश्य में विहान को ये कैप पहने दिखाया गया है.

फिल्म निर्देशक का शानदार इनपुट

कथानक दिलचस्प है, जिसमें एक उच्च स्तरीय सिविलियन अधिकारी एक युवा वैज्ञानिक द्वारा निर्मित मिनी UAV का चयन करता है और उसे कार्रवाई के निरीक्षण और खुफिया गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करता है.

निश्चित रूप से ये आइडिया आधुनिक तकनीक की देन है, जिसकी एक झलक हॉलीवुड की फिल्म ‘Eye in the Sky’ में देखने को मिली है. भारत में ऐसी तकनीक फिलहाल उपलब्ध नहीं है. फिर भी आतंकवादियों से दो-दो हाथ करने के लिए इसके जल्द उपलब्ध होने की उम्मीद है.

उरी ठिकाने पर आतंकवादी हमला बेहतरीन ढंग से फिल्माया गया है, जिसमें आतंकवादी आंखों में धूल झोंकने में सफल रहे. लेकिन यहां भी ‘वास्तविकता’ को दर्शाने के लिए थोड़ी सलाह ली जा सकती थी. सांबा में हुए आतंकवादी हमले के बैकग्राउंड में एक टैंक दिख रहा है, जबकि उरी में कोई टैंक नहीं है.

वास्तविकता में पूरी कार्रवाई 200X200 मीटर के दायरे में इमारतों, खंदक, बंकर और अस्थायी शेड्स में सिमटी हुई थी. वहां कोई स्थायी पैरा एसएफ स्टाफ नहीं था. लिहाजा फिल्म में दिखाए गए ठिकाने और इमारतों का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है. तार से लगी बाड़ भी कहीं नहीं दिखी, जबकि पूरा उरी कंटीले बाड़ से घिरा हुआ है, जहां रोशनी और संतरियों का भी बंदोबस्त है.

वास्तव में जिन आतंकवादी ठिकानों पर हमला किया गया था, वो जीर्ण-शीर्ण ‘कोठे’ थे (जिप्सी के जैसे कामचलाऊ आवास). लेकिन जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि आप नुक्स निकालने के लिए फिल्म देखने नहीं जाते, बल्कि मनोरंजन के लिए खर्च किये गए अपने पैसों की कीमत वसूलने जाते हैं. कुल मिलाकर यही है ‘Uri: the Surgical Strike’.

(लेखक सेना के 15 कॉर्प्स में एक पूर्व जीओसी हैं. फिलहाल विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन और इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कन्फ्लिक्ट स्टडीज के साथ जुड़े हुए हैं. उनसे @atahasnain53 पर सम्पर्क किया जा सकता है. उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं. इसमें क्‍विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 18 Jan 2019,08:04 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT