मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अमेरिका में छीन लिया गर्भपात का अधिकार, भारत की महिलाओं पर भी पड़ सकता है असर

अमेरिका में छीन लिया गर्भपात का अधिकार, भारत की महिलाओं पर भी पड़ सकता है असर

US Abortion Law से बेहतर भारत में गर्भपात कानून लेकिन अपने यहां 56% गर्भपात असुरक्षित तरीके से किए जाते हैं.

माशा
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Abortion: अमेरिका में छीन लिया गर्भपात का अधिकार, भारत की महिलाओं पर भी पड़ सकता है असर</p></div>
i

Abortion: अमेरिका में छीन लिया गर्भपात का अधिकार, भारत की महिलाओं पर भी पड़ सकता है असर

(फोटो: iStock)

advertisement

अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ने जब गर्भपात (Abortion) को कानूनी हक देने वाले फैसले को पलट दिया तो भारत में गाल बजाने वालों का तांता लग गया. लोगों ने पीठ ठोंककर कहा कि अब हमारे देश की औरतें चैन से सोएंगी. चूंकि अमेरिका जैसे अत्याधुनिक देश ने तो गर्भपात को गैर कानूनी करार दे दिया है, लेकिन हमारे देश में गर्भपात कानूनों में ज्यादा से ज्यादा रियायत दी जा रही है

अमेरिका में हर राज्य में हैं अलग-अलग गर्भपात कानून

अमेरिका में हुआ यह है कि वहां पचास साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने रो बनाम वेड मामले में गर्भपात को महिलाओं का कानूनी हक बताया था. यानी जिसकी देह, उसका अधिकार. अब सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया है. माना जा रहा है कि अदालत के इस फैसले के बाद हर राज्य अपनी मर्जी से गर्भपात को लेकर नियम बना सकता है.

फिलहाल अमेरिका के हर राज्य में गर्भपात को लेकर अलग-अलग कानून हैं. अलबामा जैसे कुछ राज्यों में सभी मामलों में गर्भपात पर प्रतिबंध है, बशर्ते मां के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो या भ्रूण में घातक विकृति हो. कुछ राज्यों में भ्रूण के दिल की धड़कन का पता चलने या गर्भधारण के छह हफ्ते के बाद गर्भपात पर प्रतिबंध है जैसे जॉर्जिया, केंटुकी. न्यूयॉर्क जैसे कुछ राज्य 24 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति देते हैं या कैलीफोर्निया, रोड आयलैंड में गर्भपात तब नहीं कराया जा सकता, जब भ्रूण गर्भाशय के बाहर अपने आप जीवित रहने की स्थिति में आ जाए.

भारत के कानून को लेकर दावा

अब भारत में अपनी तारीफ करने वाले मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) (संशोधन) एक्ट, 2021 की दुहाई दे रहे हैं. बताया जा रहा है कि भारत का यह गर्भपात कानून काफी आधुनिक है, और महिला अधिकारों की वकालत करता है. दरसअल भारत में भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) के अंतर्गत स्वेच्छा से गर्भपात करना क्रिमिनल अपराध माना जाता है.

लेकिन मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971 आईपीसी के अपवाद के रूप में काम करता है. अभी 2020 में इस एक्ट में संशोधन की कोशिश की गई. 2021 में यह संशोधन एक्ट लागू हुआ. पहले अगर गर्भधारण के 12 हफ्ते के भीतर गर्भपात कराना हो तो उसके लिए एक डॉक्टर की और अगर 12 से 20 हफ्ते के बीच गर्भपात कराना हो तो दो डॉक्टरों की मंजूरी की जरूरत होती थी. संशोधन में इस समय अवधि को बढ़ाया गया है. यानी अब अगर 20 हफ्ते तक गर्भपात कराना है तो सिर्फ एक डॉक्टर की सलाह की जरूरत होगी.

इसके अलावा कुछ श्रेणी (जो स्पष्ट नहीं है) की महिलाओं को 20 से 24 हफ्ते के बीच गर्भपात कराने के लिए दो डॉक्टरों की सलाह की जरूरत होगी. असामान्य भ्रूण यानी फीटल के अबनॉर्मल होने की स्थिति में 24 हफ्ते के बाद गर्भपात का फैसला राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड्स लेंगे. 1971 के एक्ट के अंतर्गत गर्भनिरोध के तरीके या साधन के असफल होने पर विवाहित महिला 20 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती है. संशोधन के बाद अविवाहित महिलाओं को भी इस कारण से गर्भपात कराने की अनुमति है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लेकिन वाकई क्या यह हक औरतों को है?

कानून जो भी कहे, लेकिन असलियत में क्या सचमुच ऐसा है? चूंकि कानून के जरिए भी यह हक दरअसल औरतों को नहीं, डॉक्टरों- मेडिकल प्रैक्टीशनर्स को मिलता है. यानी गर्भपात कराना है या नहीं, यह मेडिकल प्रैक्टीशनर ही तय करता है. इस हिसाब से कानून औरतों को अपनी रीप्रोडक्टिव च्वाइस पर पूरा हक नहीं देता. जैसा कि एशिया सेफ अबॉरशन पार्टनरशिप की सुचित्रा दलवी ने एक इंटरव्यू में कहा था- मेरे लिए एमटीपी एक्ट के प्रावधान पिता सत्ता के लिहाज से प्रगतिशील हैं.

इसके अलावा गर्भपात के कानूनी हक का तब कोई मायने नहीं रह जाता, जब देश में मातृत्व मृत्यु का सबसे बड़ा कारण असुरक्षित गर्भपात हो. 2015 की स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 56% गर्भपात असुरक्षित तरीके से किए जाते हैं जिसके कारण हर दिन करीब 10 औरतों की मौत हो जाती है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षण (2015-16) के अनुसार, सिर्फ 53% गर्भपात रजिस्टर्ड मेडिकल डॉक्टर के जरिए किए जाते हैं और बाकी के गर्भपात नर्स, ऑक्सिलरी नर्स मिडवाइफ, दाई, परिवार के सदस्य या खुद औरतें करती हैं.

इसकी वजह क्या है?

अखिल भारतीय ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी (2018-19) में बताया गया है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 1,351 गायनाकोलॉजिस्ट और अब्स्टेट्रिशियन्स हैं और 4,002 की कमी है, यानी क्वालिफाइड डॉक्टरों की 75% कमी है. जाहिर सी बात है- क्वालिफाइड मेडिकल प्रोफेशनल्स की कमी से महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएं उपलब्ध नहीं होतीं.

यानी औरतों को अबॉर्शन का हक मिले, इसके लिए सिर्फ कानून को लागू करने से काम चलने वाला नहीं है. इसके लिए अबॉर्शन को किफायती, अच्छी क्वालिटी वाला होना चाहिए और सभी तक उसकी पहुंच होनी चाहिए. इसलिए इसे कानूनी बाधाएं दूर करने के अलावा परंपरागत बाधाएं दूर करने की भी जरूरत है.

ये परंपरागत रुकावटें परिवारवाले पैदा करते हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 4 के डेटा का कहना है कि देश की हर सात में से एक औरत को प्रेग्नेंसी के दौरान अस्पताल नहीं ले जाया गया क्योंकि उनके पति या परिवार वालों ने इसे जरूरी नहीं समझा. न्यूयार्क के एशिया पेसेफिक जरनल ऑफ पब्लिक हेल्थ में छपे एक आर्टिकल में कहा गया है कि भारत में 48.5% औरतें अपनी सेहत के बारे में खुद फैसले नहीं लेती.

अमेरिका के फैसले से हमें क्या लेना-देना?

फिर भी अगर हमारा कानून आधुनिक सोच वाला है तो अमेरिका के किसी फैसले का भारत पर क्या असर होगा? दरअसल 2017 में जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने थे, तब उन्होंने गर्भपात कराने वाले इंटरनेशनल एनजीओज को फेडरल फंडिंग रोकने की बात कही थी. इसे ग्लोबल गैग रूल कहा गया था.

इसके बाद भारत के सभी गैर सरकारी संगठनों से कहा गया था कि यूएसएड (यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) को अपना प्रस्ताव सौंपते समय वे कहें कि वे अबॉर्शन नहीं कराते. यूएसएड वह एजेंसी है जो विकासशील देशों को अनुदान देती है.

2015 में इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर में बताया था कि उस साल यूएसएड ने भारत में फैमिली प्लानिंग और प्रजनन स्वास्थ्य पर 21 मिलियन डॉलर खर्च किए थे. इसमें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी, और प्रजनन स्वास्थ्य पर लोगों को प्रशिक्षित करना शामिल है. गैटमकर इंस्टीट्यूट का डेटा करता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में विदेशी फंडिंग से भारतीय औरतों को बहुत फायदा होता है.

इससे 27 मिलियन औरतों को गर्भनिरोध के साधन मुहैया होते हैं और छह मिलियन को अनचाही गर्भावस्था से निजात मिलती है. अगर अमेरिका में गर्भपात लीगल नहीं रहेगा तो इस फंडिंग के रुकने की आशंका है और देश की ग्रामीण औरतों को इसका सबसे ज्यादा नुकसान होने का खतरा है. वैसे भी, महिला स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली संस्था प्लान्ड पेरेंटहुड की एक स्टडी का कहना है कि इस फैसले के बाद 3.6 करोड़ औरतों को गर्भपात की सुविधा मिलनी मुश्किल हो जाएगी.

इसके अलावा यूएनएफपीए (युनाइडेट नेशंस पॉपुलेशन फंड) ने एक बयान जारी कर कहा है, कि अगर औरतों के गर्भपात कराने पर पाबंदी लगाई जाएगी तो खासकर, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में असुरक्षित गर्भपात बढ़ेंगे. इस फैसले का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. गर्भपात विरोधी, महिला विरोधी, जेंडर विरोधी आंदोलनों को मजबूती मिलेगी.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसल के बाद ब्रिटिश लेबर सांसद स्टेला क्रीजी ने एक ट्वीट किया- “मैं अपनी हर अमेरिकी बहन से कहूंगी कि मैं आपके साथ हूं. आपकी लड़ाई, मेरी लड़ाई है. वे महिलाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करना बंद नहीं करेंगे और हम हर जगह हमारी आजादी के लिए लड़ना बंद नहीं करेंगे.” ये सभी औरतों का स्लोगन हो सकता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT