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‘ठांय-ठांय’ पर बवाल, बेरोजगार बेहाल, गुजर गए UP सीएम योगी के 2 साल

लोकसभा चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ सरकार के दो साल पर एक नजर

मनोज राजन त्रिपाठी
नजरिया
Updated:
लोकसभा चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ सरकार के दो सालों पर एक नजर
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लोकसभा चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ सरकार के दो सालों पर एक नजर
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

देश की हर सियासी पार्टी लोकसभा चुनावों की तैयारी में मशगूल है. देश का वोटर ईवीएम का बटन दबाने को बेताब है. हर तरफ बस एक ही शोर है, फिर मोदी या इस बार कोई और है. इस लोकतांत्रिक महाकुंभ में खद्दरधारियों के बीच होड़ लगी है कि उत्तर प्रदेश में आंकड़ों के संगम में शाही स्नान कौन करेगा.

इसकी अहमियत तब और बढ़ जाती है जब उत्तर प्रदेश में भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की दूसरी सालगिरह हो. 2017 के विधानसभा चुनावों में क्या था बीजेपी का संकल्प पत्र और क्या है आज की जमीनी हकीकत? आखिर क्या है किसानों का हाल, क्यों है बेरोजगारों का बवाल और किस वजह से उठ रहे हैं एनकाउंटर पर सवाल??

तारीख 19 मार्च 2017. लाउडस्पीकर पर एक आवाज गूंजी, ''मैं आदित्यनाथ योगी, मुख्यमंत्री की शपथ लेता हूं.''

ताबड़तोड़ पूरे यूपी में स्लॉटर हाउस पर ताले लगने लगे. हर गली मोहल्ले से मनचले मजनूं यानी अंग्रेजी में रोमियो पकड़े जाने लगे. हर किसी को समझ में आ गया कि एक फायरब्रांड भगवा वस्त्रधारी योगी अब सूबे के सीएम हैं. दो डिप्टी सीएम, 22 कैबिनेट मिनिस्टर, 13 राज्य मंत्री और स्वतंत्र प्रभार के साथ नौ राज्य मंत्री.

पहली कैबिनेट मीटिंग में ही किसानों की कर्जमाफी का ऐलान. तय हुआ था कि 76 लाख किसानों का एक लाख तक का कर्ज माफ किया जाएगा. इस पर कुल 36 हजार करोड़ खर्च किया जाएगा, लेकिन माफ हुआ सिर्फ 43 लाख किसानों का कर्ज. खर्च हुए 24 हजार करोड़, जिसमें 6 हजार करोड़ बैंकों का एनपीए था. यानी आंकड़ा किसानों के नजरिए से देखा जाए तो सिर्फ 18 हजार करोड़.

दस रुपये, पांच रुपये, बीस रुपये तक के चेक भी बंटे, लेकिन ये ही बताया गया कि एक रुपये से एक लाख तक का वादा था, जो पूरा किया गया. चीनी मिलों की मनमानी पर खुद सरकार लगाम कसने में नाकाम रही, जिसका नतीजा ये है कि आज भी गन्ना किसान अपने बकाए के लिए न सिर्फ आवाज बुलंद कर रहा है, बल्कि कोर्ट की चौखट तक ब्याज के साथ बकाए की मांग लेकर पहुंच गया है.

वादे इतने, पर अंजाम क्या?

वादा था कि गड्ढामुक्त सकड़ें होंगी, लेकिन खुद यूपी की राजधानी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट बनारस तक जाने वाली सड़क तारकोल और रोड़ी का इंतजार कर रही है. कानपुर-लखनऊ हाइवे मौरंग लदे ट्रकों के बोझ तले ढेर हो चुका है. सरकार ने 18 महीने में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे बनाने का ऐलान कर दिया है, लेकिन सच तो ये है कि सरकार के भीतर जारी गुटबाजी के चलते पीडब्ल्यूडी को मुट्ठी भर बजट ही दिया गया.

यहां ये बताना जरूरी है कि पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर कोई और नहीं, बल्कि सूबे के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य हैं, जिनकी मुट्ठी से मुख्यमंत्री की कुर्सी का हैंडिल बालू की तरह फिसल गया. खुद अखिलेश यादव लगातार नारा लगाते रहे कि काम उनकी सरकार ने किए और उद्घाटन का फीता योगी सरकार काटती रही, चाहे एक्सप्रेस वो हो या मेट्रो. हालांकि केशव मौर्य कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने उनके बजट में कोई कमी नहीं की है.

सरकार ने आते ही अखिलेश सरकार में लोक सेवा आयोग में हुए भर्ती घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी. ऐसा लगा जैसे इस सरकार में भर्तियों और रोजगार को लेकर कुछ बड़े फैसले होने वाले हैं, लेकिन बेरोजगारी को लेकर सरकार के खिलाफ आए दिन हल्ला बोल होना एक आम खबर हो गई है.

69 हजार शिक्षक, करीब पौने तीन लाख शिक्षा मित्र, 18 हजार अनुदेशक अक्सर विधानसभा के सामने हाथों में तख्तियां लिए सरकार के खिलाफ तेजाब उगलते रहते हैं. कभी उन्हें फुसलाकर लौटा दिया जाता है और कभी लाठियों से पीट पीट कर अस्पतालों में भर्ती कर दिया जाता है. भर्तियों को लेकर कई मुकदमे भी कोर्ट तक पहुंच चुके हैं, लेकिन भर्तियों का इंतजार बदस्तूर जारी है.

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लॉ एंड ऑर्डर का खस्ता हाल

किसानों, बेरोजगारों के बाद यूपी का सबसे बड़ा मुद्दा है लॉ एंड ऑर्डर. रोमियो स्क्वॉयड नाम का कोई स्क्वॉयड बना ही नहीं, बस हर थाने में एक कर्मचारी को ये काम सौंप दिया गया. लिहाजा ये वारदातें सिर्फ रजिस्टरों में सिमट कर रह गईं. सरकार बनने के बाद पहले ही रिपब्लिक डे यानी 26 जनवरी को कासगंज में तिरंगा यात्रा के दौरान दंगा हो गया. चंदन गुप्ता नाम का एक युवा मौत के घाट उतार दिया गया.

खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया कि जो गोली चलाएगा उसका जवाब गोली से दिया जाएगा. बस इतना कहना था कि शुरू हो गई उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर मुहिम. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दो साल में दो हजार से ज्यादा एनकाउंटर में मारे गए 59 गुंडे.

करीब एक हजार अपराधियों के घुटने में गोली मारी गई. घुटने में गोली मारने की इस नई खोज के खिलाफ मामला कोर्ट तक पहुंच गया है, लेकिन पश्चिम यूपी में हुए एनकाउंटर्स में से 17 एनकाउंटर पर NHRC की जांच शुरू हो गई है.

अकेले आजमगढ़ में पांच एनकाउंटर भी जांच के घेरे में हैं. करीब आधा दर्जन पुलिस वाले एनकाउंटर के दौरान शहीद हो गए. गोरक्षा के नाम पर बुलंदशहर में जबरदस्त बवाल हुआ. बुलंदशहर के स्याना थाने के इंस्पेक्टर सुबोध की सीधे तौर पर मॉब लिंचिंग की गई और खाकी वर्दी पहने इंस्पेक्टर का कत्ल कर दिया गया. एपल में काम करने वाले विवेक तिवारी को एक सिपाही ने गोली से उस वक्त उड़ा दिया जब वो अपनी सहकर्मी के साथ गाड़ी से जा रहा था. मुंह से ठांय ठांय करने वाले दरोगा ने साबित कर दिया पुलिस किस मूड में है.

सैकड़ों मौतों का जिम्मेदार कौन?

अपराध यहीं नहीं रुके. संगठित अपराधियों ने सरकार को ठेंगा दिखाते हुए जहरीली शराब पिला कर एक ही महीने में पचास से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया. सरकार के एक गुट ने बहुत बचाने की कोशिश की, लेकिन छाती पर पत्थर रख कर योगी सरकार को अपने ही विधायक कुलदीप सेंगर को रेप और हत्या के मामले में जेल भेजना पड़ा और सीबीआई जांच तक बैठानी पड़ी.

इसी सरकार के दौरान खुद योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में तीन दिन में 63 दुधमुंहे बच्चों की मौत हो गई. ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले ठेकेदार का पेमेंट बाकी था. उसने सप्लाई से इनकार कर दिया था, लेकिन बच्चों को सांसें नसीब नहीं हुईं. हालांकि सरकार का ये ही कहना था कि इंसेफलाइटिस से हर साल सैकड़ों मौते होती हैं और ये मौते इस जानलेवा बीमारी से ही हुई हैं.

खुद स्वास्थ्य मंत्री ने बेहद हल्का बयान दिया कि जुलाई अगस्त में सबसे ज्यादा मौते होती हैं. बस समझ के परे ये है कि आखिर ऑक्सीजन ठेकेदार के खिलाफ मुकदमा दर्ज क्यों हुआ. क्यों मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को जेल भेजा गया और अपर मुख्य सचिव अनीता भटनागर जैन को आनन फानन हटाया क्यों गया?

सरकार पर दलित-विरोधी होने का आरोप

दो साल के वक्फे पर और गौर करें तो पार्टी की ही सांसद सावित्रीबाई फुले, सांसद छोटे लाल खरवार ने खुद चिट्ठी लिख कर कहा कि सरकार दलित विरोधी है. छोटेलाल ने तो यहां तक लिख डाला कि जब उन्होंने मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत की, तो उन्हें गाली देकर भगा दिया गया. सांसद हरीश दिवेदी को कई बार अपने जिले बस्ती के डीएम और कमिश्नर के खिलाफ अनशन तक करना पड़ा.

बलिया के विधायक सुरेन्द्र सिंह, भरत सिंह और बांद बबेरू के विधायक भी डीएम के खिलाफ धरना प्रदर्शन करते रहे. हर किसी की शिकायत की अफसर उनकी सुनते ही नहीं. कई बार शिकायत हुई, लेकिन जीते आखिरकार अफसर ही. ये सारी घटनाएं बताती हैं कि सरकार के भीतर ही सरकार के नुमाइंदों की सुनी नहीं जा रही है. इस असंतोष का नतीजा तब सामने आया जब खलीलाबाद में बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी ने पार्टी के ही विधायक राकेश सिंह बघेल को जूतों जूतों पीटा. कश्मीरियों को भगवा गैंग ने सरेआम पीटा, लेकिन सच है कि सरकार ने तेजी से इस पर कार्रवाई की.

हनुमान की जाति पर बवाल

गुजरे दो सालों में इसी उत्तर प्रदेश की जानिब से पूरे देश ने सिर्फ जूतों की गूंज ही नहीं सुनी, बल्कि अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर का मुद्दा उछला. खुद योगी आदित्यनाथ ने बजरंग बली यानी हनुमान जी की जाति तक बता डाली और कहा कि वो अनुसूचित जाति के थे.

उसके बाद तो बजरंग बली की जाति बताने की होड़ मच गई. बीजेपी विधायक बुक्कल नवाब ने हनुमान को मुसलमान, अल्पसंख्यक मंत्री चौधरी लक्ष्मीनारायण ने उन्हें जाट और चेतन चौहान ने खिलाड़ी तक बता डाला. इंवेस्टर समिट के नाम पर करीब 4.85 लाख करोड़ के निवेश का दावा सरकार कर रही है, जिसके एक दो बड़े नतीजे सामने भी आए हैं.

बुंदेलखंड में डिफेंस कॉरीडोर भी इसी समिट का एक अहम हिस्सा है. योगी सरकार के दो साल का काम लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के लिए कितना बड़ा सहारा बन पाता है, ये अभी देखना है, लेकिन सरकार के सामने तीन बड़े सवाल हैं. आखिर 325 सीटें जीतने के बाद योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट बीजेपी कैसे हार गई, जबकि खुद योगी और गोरखपुर की गोरक्षा पीठ को पिछले ढाई दशक से कोई हिला नहीं सका. कैसे डिप्टी सीएम केशव मौर्य को फूलपुर की सीट गंवानी पड़ी और क्यों किसानों कर्ज माफ करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी को कैराना की सीट से हाथ धोना पड़ा?

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Published: 18 Mar 2019,07:25 AM IST

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