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15 मार्च 2018 की शाम यूपी की राजनीति में बड़े बदलाव की आहट जैसी थी, जब सबको चौंकाते हुए अखिलेश यादव मायावती के घर पहुंचे थे. ये वो दौर था जब उपचुनाव में एसपी ने गोरखपुर और फूलपुर जीती थी. इसके बाद से ये सिलसिला चलता रहा. आखिरी बार 20 मई को एग्जिट पोल रिपोर्ट के बाद अखिलेश, बहन जी के घर पहुंचे. लेकिन चुनावी नतीजों के बाद घर जाना तो दूर, न तो उन्होंने बहन जी को धन्यवाद दिया और न ही जीरो से 10 सीट तक पहुंचने की बधाई. कहीं उन्हें भी इस बात का पछतावा तो नहीं हो रहा, जिसका एसपी नेताओं को पहले से था?
फिरोजाबाद के सिरसागंज से एसपी विधायक हरिओम यादव ने कहा कि मायावती से गठबंधन अखिलेश की सबसे बड़ी भूल थी. मायावती जीरो से दस पहुंच गयी और एसपी कहीं की न रही. एसपी विधायक की ये बातें तो चुनाव परिणाम के बाद की हैं, लेकिन इससे पहले ही दोनों पार्टियों के गठबंधन को लेकर एसपी में दबी जुबान ये चर्चा तेज थी. चूंकि पार्टी के बड़े और विश्वसनीय नेता मुलायम सिंह के हटने के बाद सिर्फ पार्टी धर्म निभा निभा रहे हैं, इसलिए अखिलेश यादव इसकी गंभीरता से दूर रह गये और गठबंधन को राजनीतिक जीत समझ रहे थे. हालांकि अंदर ही अंदर उठ रहे धुएं की तपिश उन्हें जरूर महसूस हुई होगी, तभी तो उन्होंने चुनाव से पहले 12 जनवरी को मायावती के साथ ज्वांइट प्रेस कांफेंस में कहा.
एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने बड़ा दिल दिखाया था, उन्हें कहीं न कहीं इस बात का डर था कि उनके कार्यकर्ता कुछ ऐसा न कर दे, जिससे दलित वोट उनके साथ आने में कतराये. दलितों को जोड़ने के लिए अखिलेश ने बहन जी के हर इशारे को स्वीकार किया. फिर भी नतीजा एसपी के पक्ष में नही रहा. एसपी को 2014 की तरह इस बार भी पांच सीटें मिली हैं, लेकिन नेताजी और अखिलेश को छोड़ डिंपल यादव सहित पूरा परिवार हार गया. वहीं जीरो सीट वाली बीएसपी साइकिल से सहारे 10 सीटें जीत ली.
ये भी कह सकते है कि मायावती ने करीब एक साल पुराना रिर्टन गिफ्ट अखिलेश से ले लिया है. रिर्टन गिफ्ट का मतलब उपचुनाव में बीएसपी के अघोषित गठबंधन से एसपी ने जो सीटें जीती थीं. जिसके मात्र दस दिनों बाद हुए राज्यसभा चुनाव में अखिलेश के तमाम कोशिशों के बावजूद बीएसपी के भीमराव अंबेडकर चुनाव हार गये थे. जिस पर बहन जी ने कहा था कि अखिलेश में अनुभव की कमी है.
ज्यादातर सीटों पर ये चीजें सामने आयी हैं कि एसपी के अधिकतर वोट तो बीएसपी को ट्रांसफर हुए लेकिन बीएसपी के वोट पूरी तरह एसपी को ट्रांसफर नही हो पाये. अगर ग्राउंड की बात करें तो यादव ही ऐसा था जो बीजेपी से मोर्चा संभाले हुए था. ज्यादातर जगहों पर एसपी के कार्यकर्ता बीएसपी के झंडे के साथ नजर आये. यूपी के चुनावी माहौल में बीजेपी के सामने कोई नजर आया तो सिर्फ एसपी थी. वहीं बीएसपी वोटर एकदम शांत दिखे, हालांकि ये उनका चुनावी स्वभाव भी है. चूंकि मायावती खुद मुलायम सिंह से लेकर डिंपल तक के समर्थन में चुनावी सभायें कर रही थीं, इसलिये यह तय माना जा रहा था दलित वोट बैंक बीएसपी की ही तरह पूरी तरह से एसपी के साथ है.
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मायावती भले ही गेस्ट हाउस कांड भूल गयीं, लेकिन उनके वोटर शायद इसे नही भूला पाये. चुनाव में दलितों जिन 38 सीटों पर बीएसपी के उम्मीद्वार थे उन्हें खुल कर वोट दिया. लेकिन जहां गठबंधन के दूसरे प्रत्याशी थे वहां दलित वोट बंट गये. कहा जा रहा है कि जाटव वोट तो एसपी को ट्रांसफर हुए, लेकिन अति दलितों ने एसपी से बेहतर बीजेपी को समझा.
दलित चिंतक प्रोफेसर एमपी अहिरवार का कहना है कि दोनों ही दलो में निचले स्तर पर आपसी तालमेल की काफी कमी थी. दोनों ही दल इस कांफिडेंस में थे कि दलित वोट तो मिलेगा ही. जिसका नुकसान हुआ है.
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता गुस्से में हैं तो अखिलेश यादव ने भी चुप्पी साध ली है. नतीजे सामने आने के बाद अखिलेश यादव की बीएसपी सुप्रीमो से मुलाकात नहीं होने से साफ है कि अंदरखाने कुछ न कुछ तो चल रहा है. क्योंकि बात-बात में मायावती से सलाह-मशविरा करने वाले अखिलेश यादव अब तक उनसे मिलने नहीं गए हैं. माना जा रहा है कि अखिलेश की चुप्पी ज्यादा दिन तक चली तो मायावती शांत रहने वाली नहीं हैं.
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Published: 25 May 2019,08:19 AM IST