बिहार में एनडीए को शानदार जीत मिली तो दूसरी तरफ महागठबंधन बुरी तरह फ्लॉप साबित हुआ. लेकिन सबसे बुरी हालत तो उन तीन पार्टियों की हुई जिनका इस चुनाव में काम तमाम हो गया. बीजपी के पुराने साथी रहे कुशवाहा और जीतन राम मांझी तो अपनी सीट भी नहीं बचा पाए, तो वहीं विकासशील पार्टी शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई.
कुशवाहा का क्या होगा?
सबसे पहले बात करते हैं उपेंद्र कुशवाहा की. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का हाल तो सबसे बुरा है, लोकसभा चुनाव से ठीक एक महीने पहले एनडीए का दामन छोड़कर महागठबंधन से गठबंधन कर लिया, लेकिन उनकी ये सियासी चाल आत्मघाती साबित हुई. कहां 2014 में एनडीए के साथ उन्होंने तीन सीटें जीतीं थीं और केंद्रीय मंत्री भी बने, लेकिन इस बार अपनी सीट तक गंवा बैठे.
महागठबंधन में कुशवाहा के हिस्से पांच सीटें आईं थीं. जिसमें दो सीटों पर तो खुद ही मैदान में उतरे. काराकाट में उन्हें जेडीयू के महाबली सिंह ने हराया तो, वहीं दूसरी सीट उजियारपुर से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय ने उन्हें मात दी.
ये हार कुशवाहा की सियासी करियर पर बड़ी मार है. एनडीए से तो नाता पहले ही तोड़ लिया था और जिस महागठबंधन में अपनी जमीन तलाश रहे थे, वो ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. एग्जिट पोल देखकर ही बिहार में खून बहाने की धमकी देने वाली कुशवाहा अब खामोश हैं और जनादेश के सम्मान की बात कर रहे हैं.
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मांझी की नैया डूबी
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की नैया तो इस चुनाव में पूरी तरह डूब गई. बिहार में खुद को दलितों का सबसे बड़ा चेहरा बताने वाले मांझी अपनी सीट भी खो बैठे. मांझी ने अपने लिए बिहार की गया सीट चुनी. एनडीए की तरफ से विजय मांझी को उतारा गया. जेडीयू प्रत्याशी विजय मांझी जीतन राम मांझी पर भारी पड़े और उन्हें डेढ़ लाख से भी ज्यादा वोटों से शिकस्त दी.
ये वही मांझी हैं जो कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी हुआ करते थे. 2014 में जब नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दिया था, तब उन्होंने अपनी गद्दी मांझी को ही सौंपी, क्योंकि वो नीतीश के सबसे विश्वासपात्र थे, लेकिन मांझी के सीएम बनने के बाद दोनों के बीच ऐसी दरार आई कि मांझी की कुर्सी तो गई ही, साथ ही पार्टी तक छोड़नी पड़ी. जेडीयू से अलग होकर जीतन राम मांझी ने हिदुस्तान आवाम मोर्चा पार्टी बनाई.
मांझी कभी मोदी के भी मुरीद हुआ करते थे, जेडीयू से अलग होने के बाद उन्होंने एनडीए का दामन थामा. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने एनडीए के साथ चुनाव भी लड़ा, लेकिन वहां भी ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाए और फिर महागठबंधन में शामिल हो गए. लेकिन उनका ये फैसला उन पर बड़ा भारी पड़ा.
1980 से लेकर अब तक जीतन राम मांझी कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू की राज्य सरकारों में मंत्री का पद संभाल चुके हैं, लेकिन ये हार उनपर काफी भारी पड़ने वाली है, जो उनके सियासी करियर पर ब्रेक लगा सकती है.
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मुकेश सहनी को लगा झटका
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) का तो उदय होने से पहले ही पतन हो गया. खुद को सन ऑफ मल्लाह बताने वाले इस पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी खगड़िया सीट से बुरी तरह हार गए. मुकेश सहनी एलजेपी उम्मीदावर चौधरी महबूद अली से करीब ढ़ाई लाख वोटों से हार गए हैं.
मुकेश सहनी कभी बीजेपी के काफी करीबी हुआ करते थे. 2014 में उन्होंने बीजेपी के लिए पूरे बिहार में घूम-घूमकर कैपेंनिंग भी की थी. मुकेश सहनी ने पिछले साल ही विकासशील इंसान पार्टी बनाई थी. पीएम मोदी के 'चाय की चर्चा' के तर्ज पर उन्होंने 'माछ पर चर्चा' भी की. मुकेश सहनी का कद बिहार में उसी तरह बढा, जिस तरह गुजरात की राजनीति में हार्दिक पटेल उभरकर सामने आए थे.
इस चुनाव में एनडीए से जब मन मुताबिक सीट नहीं मिली, तो महागठबंधन के साथ हो लिए. महागठबंधन में उन्हें तीन सीटें मिली और तीनों सीटों पर बुरी तरह हारे. मुकेश की वजह से मल्लाह वोटरों का साथ महागठबंधन को तो मिला, लेकिन मुकेश को महागठबंधन से कोई फायदा नहीं मिला.
मुकेश सहनी का बॉलीवुड से भी रिश्ता रहा है, वो मशहूर सेट डिजाइनर रह चुके हैं. उन्होंने शाहरुख की फिल्म देवदास और सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाईजान का सेट भी बनाया था. मुंबई छोड़कर मुकेश सहनी ने राजनीति में किस्मत अजमाई, लेकिन वो फेल हो गए.
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