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पहले आप इन पक्तियों को पढ़िए-
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
ज़िंदगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी!
दूर दुनिया का मिरे दम से अंधेरा हो जाए!
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए!
हो मिरे दम से यूं ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िंदगी हो मिरी परवाने की सूरत या-रब
इल्म की शमा से हो मुझ को मोहब्बत या-रब
हो मिरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना
मिरे अल्लाह! बुराई से बचाना मुझ को
नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझ को
क्या आपको अल्लामा इकबाल की लिखी इस कविता में, जिसे हम स्कूल में प्रार्थना जानते थे, एक हर्फ, एक लाइन भी ऐसी लगी कि जिसे मजहबी कहा जा सके? लेकिन हिंदुस्तान में अब इसपर भी कुछ लोगों को ऐतराज है. वो इसे मजहबी प्रार्थना बताते हैं.
बरेली के सरकारी स्कूल में इस प्रार्थना पर विश्व हिंदू परिषद ने पुलिस को शिकायत दी. विश्व हिंदू परिषद की तो समझ सकते हैं लेकिन उसपर FIR दर्ज कर लेना, विभाग का प्रिंसिपल को निलंबित कर देना, ये बहुत गंभीर है. प्रशासन का ये बयान भी नैचुरल जस्टिस के खिलाफ है कि अभी सस्पेंड कर दिया है, बाकी जांच होगी. जांच से पहले एक्शन किस कानून के तहत किया जा रहा है, ये सवाल है? मॉब लिंचिंग से लेकर कंगारू कोर्ट तक प्रशासन-पुलिस की ये दलील होती है कि कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती थी, इसलिए फौरी कार्रवाई करनी पड़ी. लेकिन ये कहां का इंसाफ है कि जो लोग कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं, उनके बजाय सामने वाले पर ही एक्शन ले लिया जाए?
'दूर दुनिया का मिरे दम से अंधेरा हो जाए!', यानी गाने वाला दुआ मांग रहा है कि वो ऐसा बने कि दुनिया का अंधेरा दूर हो जाए.
'हो मिरे दम से यूं ही मेरे वतन की ज़ीनत', यानी गाने वाला दुआ मांग रहा है कि मेरे वतन की रौनक, इज्जत मुझसे बढ़े.
'इल्म की शमा से हो मुझ को मोहब्बत या-रब,' यानी गाने वाला दुआ मांग रहा है कि उसे शिक्षा की रौशनी से प्यार हो जाए.
'हो मिरा काम ग़रीबों की हिमायत करना,' यानी गाने वाला दुआ मांग रहा है कि उसे गरीबों की मदद करने वाला बनाना.
'दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना,' यानी गाने वाला दुआ मांग रहा है कि जो तकलीफ में हैं, जो बुजुर्ग हैं, उसका वो ख्याल रखे.
'मिरे अल्लाह! बुराई से बचाना मुझ को, नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझ को,' यानी गाने वाला दुआ मांग रहा है कि अल्लाह मुझे बुराई से बचाना, जो सही रास्ता हो, उसी पर चलाना.
अब इन दुआओं पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है. इसमें वो सारी बातें हैं जो किसी भी नेक इंसान, किसी भी देशभक्त में होनी चाहिए.
स्कूल की प्रार्थना दिखी, दिक्कतें नहीं?
ताज्जुब ये है कि जिस स्कूल में इस प्रार्थना पर आपत्ति जताई गई, तस्वीरों में उस स्कूल की हालत बुरी दिख रही है. क्या कभी इस संगठन ने स्कूल की खराब स्थिति के बारे में कोई शिकायत की? कभी यूं हुआ कि इस संगठन ने पढ़ाई-लिखाई के खराब इंतजामों को लेकर आंदोलन चलाया हो! यूपी में सरकारी स्कूलों की बदहाली की खबरें जब तब आती रहती हैं. कहीं मिड डे मील में दिक्कत है. कहीं इमारत जर्जर है तो कहीं इमारत ही गायब. लेकिन क्यों नहीं इन संगठनों की तरफ से एक बड़ा आंदोलन चलाया जाता. अगर हिंदुत्व की इतनी ही चिंता है तो इन स्कूलों में ज्यादातर तो हिंदू बच्चे ही पढ़ते हैं, उनके आज और कल की चिंता कभी क्यों नहीं दिखाते ये संगठन? कभी ऐसा भी होता कि ये संगठन बेरोजगारी के खिलाफ मोर्चा खोलते. सरकार से सवाल उठाते. तो क्या इन संगठनों के वजूद का एकमात्र उद्देश्य समाज को टुकड़े-टुकड़े करना है?
और ये एकमात्र मामला, हो ऐसा भी नहीं है. हाल ही में बागपत में हिंदू जागरण मंच के कारिंदे घर-घर जाकर शाहरुख खान की फिल्म पठान के खिलाफ प्रचार करते नजर आए. वो लोगों को समझा रहे थे कि ये फिल्म न देखें. इस फिल्म के एक गाने में दीपिका पादूकोण कथित भगवा कपड़ों में नजर आ रही हैं और कथित तौर पर इसमें अश्लील सीन हैं.
क्रिसमस पर सेंटा का विरोध, घरों में नमाज पढ़ने का विरोध-हिंसा, घर में ईसाई प्रार्थना कर रहे हैं, तो हमला कर देना, और इन घटनाओं पर स्टेट का चुप रह जाना, बहुत गंभीर संकेत हैं. इन हमलावरों और संगठनों पर सख्त एक्शन न हो तो इन्हें बढ़ावा ही मिलता है. ये जो हो रहा है वो अपने देश की रूह पर स्थायी घाव होंगे.
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