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सोमवार की तपती दुपहरिया में पटना के बापू सभागार में युवा जेडीयू के सम्मेलन का आयोजन था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरे लौ पर थे. निशाने पर थे राज्य विधानसभा में नौजवान नेता प्रतिपक्ष और आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव.
बातों-बात में उन्होंने शराबबंदी का जिक्र भी किया. उन्होंने अपनी सरकार के कड़े शराबबंदी कानून की खूबियां और उसके सकारात्मक परिणाम भी गिनाए. साथ ही साथ, उन्होंने आने वाले वक्त में इस कड़े कानून में तब्दीली के भी संकेत दिए.
नीतीश कुमार के मुताबिक इस बारे में सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद कुछ बदलाव कर सकती है. उन्होंने कहा, “सुधार की गुंजाइश तो हर जगह बनी रहती है. कब, कहां, क्या जरूरत है, सुधार की क्या-क्या आवश्यकता है, इस पर मंथन चल रहा है. हम 15-16 के बाद फिर से बैठेंगे और कुछ मामलों में जो संशोधन करना है, वह करेंगे.... राज्य में नए शराबबंदी कानून को 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन से लागू किया था. उस समय विज्ञापन निकालकर लोगों से राय ली गई थी. राजनैतिक दलों से राय ली गई थी. अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में है. ऐसा न समझा जाए कि हम किसी की सुनते नहीं हैं. विचार-मंथन कर रहे हैं. अकारण लोगों को कष्ट न झेलना पड़े, ये देखेंगे.” इस बात से राज्य में शराबबंदी कानून में संशोधन की उम्मीद बढ़ गई है.
राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो अगले साल लोकसभा चुनाव को देखते हुए नीतीश कुमार को इस बारे में मजबूर होना पड़ा. जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “कोई मानें या न मानें, शराबबंदी मुद्दा तो है. हमें इसे लेकर खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की खासा सहयोग मिल रहा है. हालांकि, इस कानून को लेकर पिछड़ी, अति पिछड़ी और दलित वर्ग में हमें आलोचना भी झेलनी पड़ रही है. यह भी उतना बड़ा सच है. समय रहते राज्य सरकार इस बारे में सुधार का कदम उठाना चाहती है.”
साथ ही, इसे लेकर 1.10 लाख FIR भी दर्ज किए, जिसके मुताबिक हर दिन पूरे बिहार में इस कानून के तहत 150 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. इस बीच में राज्य में पुलिस और आबकारी विभाग ने कुल मिलाकर 7 लाख से ज्यादा रेड किए. साथ ही, 25 लाख लीटर से ज्यादा विदेशी शराब और बीयर भी जब्त की गई. पुलिस अधिकारियों की मानें तो यह अपने-आप में एक रिकॉर्ड है.
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शुरुआत में बिहार में शराबबंदी के फैसले की मतदाताओं, खास तौर पर महिलाओं और वरिष्ठों, ने खुले दिल से तारीफ की. हालांकि, अब हालात वैसे नहीं रहे.
आबकारी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया, “यह सच है कि इस कानून से सबसे ज्यादा नुकसान दलितों और पिछड़ों को हो रहा है. ऊंची जातियों के बामुश्किल 10-15 फीसदी ही अरेस्ट होते हैं. बाकी की डील थाने पर ही हो जाती है. दलितों और पिछड़ों के पास न तो गांव में रुतबा है और न ही पैसा. इसीलिए उन्हें गिरफ्तार करना आसान होता है.”
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इस मुद्दे को लेकर कुमार विपक्षी दलों के निशाना पर हैं. आरजेडी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने तो इसे लेकर बकायदा मोर्चा खोल रखा है. मांझी के मुताबिक, इस कानून ने दलितों को बर्बाद किया, जबकि शराब के अवैध कारोबारी को मालामाल बना दिया है.
वहीं, इस कानून की वजह से राज्य में संगठित अपराधियों की एक नई खेप तैयार हो गई है, जो मुख्य रूप से शराब के कारोबार में ही जुटी हुई है. ये अपराधी नई तकनीकों से लैस हैं और पुलिस को छकाने के लिए रोज नए-नए गुर अपना रहे हैं.
मिसाल के तौर पर बीते दिनों पटना में पुलिस ने एक ऐसे गैंग को पकड़ा था, जो कारों को जानबूझकर कबाड़ बना दिया करता था. फिर उस बेकार कार के जरिये शराब का कारोबार करता था. वहीं, शराब की डिलीवरी के लिए अपराधी अब व्हाट्सऐप के साथ-साथ दूसरे मैसेजिंग ऐप का भी सहारा लेने लगे हैं. इनसे टक्कर लेना राज्य पुलिस के लिए दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है.
मुख्यमंत्री इन आंकड़ो को तो स्वीकारते हैं, लेकिन इसके सकारात्मक परिणामों की ओर भी इशारा करते हैं. हालांकि, कुमार के इस तर्क से इत्तेफाक रखने वाले लोग कम ही हैं. राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक जन मानस और विपक्षी हमले के हमलों की वजह से ही मुख्यमंत्री अब इस बारे में किसी “मंथन” को तैयार हुए हैं. हालांकि, यहां यह भी याद रखना चाहिए कि 2016 में भी नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून में संशोधन की बात कही थी, लेकिन आखिर में उन्होंने इस बारे में किसी भी रियायत से साफ इनकार कर दिया.
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