बिहार में एनडीए का लीडर कौन होगा इसे लेकर खींचतान मच गई है. जेडीयू चाहता है राज्य में नीतीश कुमार को आगे रखकर एनडीए उतरे. लेकिन रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी ने भी मोलभाव शुरू कर दिया है.
बीजेपी के लिए ये बड़ी टेंशन वाली बात है. विपक्षी मोर्चाबंदी का मुकाबला करने के लिए जरूरी है एनडीए के साथ ही एकजुट रहें. लेकिन संतुलन कैसे बनाया जाए?
फिलहाल तनाव कम करने के लिए सुशील मोदी ने कहा बिहार पीएम के नाम और नीतीश कुमार के काम पर वोट करेगा.
चुनाव 2019 में हैं, आम चुनाव में अभी करीब एक साल बाकी है, लेकिन बिहार में राजनीतिक सरगर्मियां काफी तेज हैं. एक तरफ जहां विपक्ष एकजुट हो रहा है, वहीं बिहार में एनडीए के घटक दल उसे आंखें दिखा रहे हैं.
नीतीश कुमार की जेडीयू ने तो ऐलान कर दिया है कि 2019 के चुनाव में बिहार में नीतीश ही एनडीए का चेहरा होंगे.
अब 7 जून को बिहार में सभी घटक दलों के साथ एनडीए की बैठक होनेवाली है. इसके नतीजे जो भी आए, लेकिन इससे पहले जेडीयू ने अचानक पार्टी बैठक बुलाकर बीजेपी पर दबाव बनाने की शुरुआत कर दी है.
जेडीयू की सबसे बड़ी दावेदारी
अगले चुनाव में नीतीश के नेतृत्व के साथ-साथ जेडीयू ने ये भी ऐलान कर दिया है कि उसे राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 25 सीटें चाहिए. पार्टी का तर्क है कि बिहार में वो अभी बड़ी पार्टी है, ऐसे में उसे सबसे ज्यादा सीटें चाहिए. पार्टी ने इशारों-इशारों में जोकीहाट सीट पर हुए उचुनाव में पार्टी की हार का ठीकरा भी केंद्र की मोदी सरकार पर मढ़ दिया.
जोकीहाट चुनाव परिणाम के बाद जेडीयू महासचिव केसी ने त्यागी ने कहा:
‘’पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने से देशभर में नाराजगी है. तेल का दाम लगातार बढ़ना भी इस तरह के चुनाव परिणाम के पीछे एक वजह है. इसलिए इनके दाम में तुरंत कमी होनी चाहिए.’’
इससे पहले नीतीश कुमार ने नोटबंदी के वक्त बैंकों के कामकाज पर सवाल उठाए थे. नीतीश ने नोटबंदी पर बयान देकर सबको हैरत में डाल दिया था.
“मैं नोटबंदी का समर्थक रहा हूं, लेकिन कितने लोगों को इसका फायदा मिला? कुछ शक्तिशाली लोगों ने अपना पैसा एक जगह से दूसरी जगह पर कर लिया.”
2019 में भले ही राज्य की आधे से ज्यादा सीटों पर जेडीयू अपने दावेदारी पेश कर रहा है, लेकिन 2014 के चुनाव में एनडीए से अलग होकर लड़ने पर पार्टी को महज 2 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था.
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कुशवाहा क्यों हो जाते हैं नाराज
एनडीए की सहयोगी आरएलएसपी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा पिछले एक साल में एनडीए और बीजेपी के खिलाफ कई बार नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. कुशवाहा ने कई बार ये कहा है कि एनडीए में सहयोगियों की बात नहीं सुनी जाती है.
अभी कुशवाहा ने फिर कहा है कि एनडीए में तालमेल की भारी कमी है जिसे दूर किया जाना चाहिए. उन्होंने मांग उठाई है कि चुनाव से पहले यह तय हो जाना चाहिए कि कौन सी पार्टी अगले चुनाव में कितनी सीटों पर लड़ेगी.
कुशवाहा ने बीजेपी को सलाह दी कि उसे अपने से ज्यादा एनडीए को तरजीह देनी चाहिए. उपचुनावों में बीजेपी को मिल रही हार, पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर भी कुशवाहा सरकार को सोचने के लिए बोल चुके हैं. एम्स में जब लालू यादव भर्ती थे, उस दौरान कुशवाहा ने उनसे मुलाकात कर अटकलों के बाजार को गर्म कर दिया था
पिछले चुनाव में बीजेपी ने आरएलएसपी को चार सीटें दी थी, जिसमें से 3 सीटों पर वो जीती थी. लेकिन अब 2019 में पार्टी इससे ज्यादा सीटों पर दावा कर रही है.
रामविलास की भी गारंटी नहीं
बिहार में एनडीए के लिए एलजेपी भी मुश्किलें पैदा कर सकती है. एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान ने कई बार इशारों-इशारों में बगावती तेवर दिखाए हैं. और अभी हाल ही में उन्होंने साफ किया है अगर एससी-एसटी एक्ट पर सरकार की तरफ से अध्यादेश नहीं लाया गया तो 2019 में मुश्किल होगी.
पासवान भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग के साथ दलितों के लिए प्रमोशन में भी रिजर्वेशन की मांग कर रहे हैं.
वैसे भी रामविलास पासवान का पिछला रिकॉर्ड किसी भी गठबंधन के लिए अच्छा नहीं रहा है. अपने फायदे के हिसाब से वो पाला बदलते रहे हैं. 1999 में पासवान उस समय की अटल सरकार का हिस्सा थे तो 2004 में पाला बदलकर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए में शामिल हो गए. 2014 में मोदी लहर को भांपते हुए उन्होंने फिर से बीजेपी का दामन थाम और सत्ता के भागीदार बने. अब 2019 में वो क्या करेंगे इस पर सबकी नजर है.
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डैमेज कंट्रोल के मूड में बीजेपी
भले ही फिलहाल बिहार विधानसभा में जेडीयू को बीजेपी से ज्यादा सीटें है. लेकिन इस बात की उम्मीद कम ही है कि अगले लोकसभा चुनाव में जेडीयू को ज्यादा सीटें मिलें. जेडीयू के सीटों को लेकर दिए बयान पर बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने बहुत सधे हुए शब्दों में जवाब दिया है.
सीट बंटवारे को लेकर कोई विवाद नहीं है. बिहार में जो वोट मिलेगा वो नरेंद्र मोदी के नाम पर और नीतीश कुमार के काम के नाम पर मिलेगा. इसमें विरोधाभास नहीं है.सुशील मोदी, बीजेपी नेता
भले ही सुशील मोदी सीट बंटवारे को लेकर कोई विवाद नहीं बता रहे हैं. लेकिन 2019 में बीजेपी के लिए सीट बंटवारा किसी चुनौती से कम नहीं होगा. कारण साफ है पिछले चुनाव में जेडीयू एनडीए के साथ नहीं थी. ऐसे में उसे अलग से सीट देना और साथ ही आरएलएसपी और एलजेपी जैसे सहयोगी दलों से मिल रही चुनौतियों से बिहार में बीजेपी की राह आसान नहीं दिख रही है.
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