दो साल बाद बिहारी शादियों में जाने का मौका मिला. लिट्टी चोखा, समोसे में जब तक आलू, बिहार में तब तक है लालू जैसी बातें वर्ल्ड फेमस हैं, ठीक उसी तरह बिहारी शादी भी हम बिहारियों के लिए किसी चुनावी महासभा से कम नहीं है.
शादी में शरीक होने के लिए मैं तो पूरे जोश से पहुंचा, पर वहां मेजबान और मेहमान के चेहरे और हरकतों में जोश नदारद था, सब कुछ फीका फीका लग रहा था.
ना नागिन डैंस (डांस) था, ना ताड़ी थी. दारू पीकर उधम मचाने वाले चाचा सीधी लाइन पर चले जा रहे थे, तो बियर की जिद करते दूल्हे के दोस्त थके हारे चले जा रहे थे.
कुछ भी तो नहीं था. जमीन में धूल उड़ाता बुआ की ननद के पति का भतीजा, कमरिया टॉप लागे लू पर मौसी के साथ पापा जी का डांस, 4-5 घंटे देर से पहुंचने वाली बारात, ये सब कहीं मिसिंग था मानो शरीर से आत्मा निकाल ली गई हो ऐसी बिहारी शादी से जैसे जीवन निकाल लिया गया है.
मतलब बारात ऑन टाइम, फूफा जी के मुंह से दारू की महक की जगह पान की लाली, पापा के साथ चाचा और उनके दोस्तों की खोखली हंसी, सात समुंदर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गया वाले गाने पर मार्च पास्ट कर रहे दोस्त और बाकी बाराती. टोटल सभ्य टाइप.
बारात निकलने से लेकर शादी संपन्न होने और लड़की की विदाई तक मुझे तो ऐसे नजारा नहीं दिखा जिससे लगे वाकई में बिहार में बहार है...
ऐसा नहीं है कि वहां शादी के तौर-तरीके बदल गए हैं. ये अब भी वैसा ही है, जैसा सालों से होता आ रहा है. अगर कुछ बदला है तो वो है बारात की शान माने जाने वाले बारातियों का व्यवहार. ये सब हो पाया है उस शराब की वजह से जिसके बगैर कुछ साल पहले तक बिहारी शादी की कल्पना तक अधूरी थी. लेकिन ‘सुशासन बाबू’ ने जब से राज्य में शराबबंदी लागू की है, नशे में टुल्ल रहने वाले लोग सज्जन हो गए हैं.
विलुप्त होने की कगार पर नागिन डांस
शराबबंदी ने नागिन डांस के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है. उसी नागिन डांस को, जिसके बिना बिहारी शादी अधूरी मानी जाती रही है. बिहार में शादी हो और नागिन डांस न हो, ऐसा सोचना भी गुनाह के बराबर था. नागिन डांस का ही प्रताप था कि सज-धजकर लड़की के घर पहुंचने वाले बाराती नागिन की धुन बजते ही सड़क पर धूल कीचड़ की परवाह किए बिना लोटने लगते थे.
लेकिन अब शराब मिलती नहीं, तो बारातियों पर नागिन की धुन का कोई असर होता नहीं. इसलिए बिहारी शादी की पहचान रही नागिन डांस की कला विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई है.
समय से पहुंचने लगे हैं बाराती
आजकल बाराती समय के बड़े पाबंद हो गए हैं. वही बाराती जो दो साल पहले तक लड़की वाले के घर पहुंचने में रात के 12-1 बजा देते थे. अब शाम ढलते ही बड़ी आसानी से लड़की वाले के घर पहुंच जाते हैं. अब ‘सोमरस’ मिलता नहीं तो भला देर करने का मतलब रहा नहीं.
शरीफ हो गए हैं बाराती
पहले टशन में रहने वाले बाराती अब शरीफ से हो गए है. शराफत भी ऐसी की एकबार उन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो ये अपने दोस्त-रिश्तेदार के शादी में नहीं, बल्कि किसी भजन-सत्संग में शामिल होने आए हैं.
जुगाड़ अब भी काम कर ही जाता है
बिहारियों को जुगाड़ टेक्नोलॉजी में महारात हासिल है. इसलिए कुछ गिनी चुनी या रुतबेदार शादियों में जुगाड़ चल जाता है. कुछ ऐसे एक्सपर्ट लोग होते हैं जो बैन लगने के बावजूद अपनी तलब पूरा करने के लिए कहीं न कहीं से जुगाड़ कर ही लेते हैं. हां ब्रांड से समझौता करना पड़ता है.
शराब बंदी से पहले जिस छोटे-मोटे ब्रांड को लोग पूछते नहीं थे. जो 75-100 रुपये में मिलता था, उसके लिए अभी 1000 से 1200 रुपये तक देने पड़ते हैं.
लेकिन फूफा और जीजा अब भी नाराज हैं
शादियों में इतने बदलाव देखने को मिल रहे हैं, लेकिन एक चीज जो अब भी नहीं बदली है. वो है फूफा और जीजा का रवैया. पहले ये लोग पीने के बाद नाराज होते थे, अब पीने को नहीं मिलता तो नाराज हो जा रहे हैं. अब उनको मुंह फुलाए बैठे देखकर अंदाज लग जाता है कि नहीं मिलने से गुस्सा हैं.
सबसे अच्छा और रोचक पहलू यही है कि बारातियों का मजा भले चला गया हो पर लड़की के पिता और उनके घरवालों के चेहरे पर शांति और सुकून देखकर शराब ना मिलने का पछतावा नहीं होता.
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