मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ के ओशो जब इंटरव्यू के दौरान मुझ पर भड़के

‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ के ओशो जब इंटरव्यू के दौरान मुझ पर भड़के

इंटरव्यू ठीक-ठाक जा रहा था. घपला तब हुआ, जब मैंने उनसे ये पूछा कि क्या वो अमेरिकी अदालत में माफी मांगकर छूटे हैं?

संजय पुगलिया
नजरिया
Updated:
घपला तब हुआ, जब मैंने ओशो से ये पूछा कि क्या वो अमेरिकी अदालत में अपना गुनाह कबूल कर और माफी मांगकर छूटे हैं?
i
घपला तब हुआ, जब मैंने ओशो से ये पूछा कि क्या वो अमेरिकी अदालत में अपना गुनाह कबूल कर और माफी मांगकर छूटे हैं?
(फोटो: क्‍विंट हिंदी)

advertisement

ओशो यानी शांत, सौम्य, मोहक गुरु और प्रवचनकार. यही छवि है उनकी. लेकिन मैंने उनका गुस्सा देखा है एक बार. दरअसल गुस्से से भी बड़ी बात मुझे ये बतानी है कि मैं ओशो का इंटरव्यू कर चुका हूं. वो भी अमेरिका से भारी विवादों के बाद, भारत वापस आने के बाद का उनका पहला इंटरव्यू, जिसमें मेरे एक सवाल पर वो अपना आपा खो बैठे थे.

बात 86 के उत्तरार्ध की है. महीना और तारीख याद नहीं. तब मैं नवभारत टाइम्स, मुंबई में था. इस वक्‍त ओशो उर्फ रजनीश पर नेटफ्लिक्‍स की एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज 'वाइल्ड वाइल्ड कंट्री' की खूब चर्चा है. इसकी थीम है ओशो का अमेरिका में प्रवास और तब की ड्रग, फैशनेबल अध्यात्म, फ्री सेक्स और साजिशों की सनसनीखेज कहानी और अंत में रजनीश का अमेरिका से पलायन. वो जुलाई-अगस्त 1986 में कई देशों से निर्वासित होते-होते भारत लौट आए थे. उन्‍होंने एक पुराने फॉलोअर और बिजनेसमैन दोस्त के घर अपना पहला डेरा लगाया. कुछ दिनों में उन्होंने अपने प्रवचनों का सिलसिला भी शुरू कर दिया.

यह भी पढ़ें: ओशो की मृत्यु के 26 साल बाद भी उठ रहे हैं ये 7 सवाल

मैंने अपने एक सहकर्मी पत्रकार रमेश निर्मल के साथ मिलकर इंटरव्यू की अर्जी लगाई. थोड़ी मेहनत के बाद ये तय हुआ कि वो अलग से इंटरव्यू नहीं देंगे, लेकिन वही काम उनके प्रवचन सत्र के दौरान हो सकता है. उनके प्रवचन के बाद आप लोग अपने इंटरव्यू के सवाल पूछ लें.
क्या ओशो को अपना संतुलन खोना चाहिए था? (फोटो: द क्विंट)

हम दोनों ने उनसे उनके अमेरिका प्रवास, तबीयत, भारत वापसी और आगे की योजना के सवाल पूछे. राजनीति और समाज के तब के करेंट अफेयर्स वाले सवाल भी पूछे. उन्होंने नेताओं की आलोचना की. ज्‍यादातर सांसदों को मंदबुद्धि का बता डाला. इस बयान से विवाद भड़का. मधु दंडवते जैसे कुछ धुरंधर सांसदों ने रजनीश और हमारे खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव भी रखा. हमें नोटिस भी मिला. रजनीश का पता उनके पास नहीं था, तो उनका नोटिस भी हमको भेज दिया गया कि हम उन तक पहुंचा दें.

बाद में पता नहीं चला कि उस प्रस्ताव का हुआ क्या. हम तो मन ही मन खुश थे कि हमारी चर्चा हो, ये तो अच्छा है. खैर, ये साइड स्टोरी है.

असल स्टोरी ये है कि हमारा इंटरव्यू ठीक-ठाक जा रहा था. वो अच्छे मूड में थे, खुलकर जवाब दे रहे थे. घपला तब हुआ, जब मैंने उनसे ये पूछा कि क्या वो अमेरिकी अदालत में अपना गुनाह कबूल कर और माफी मांगकर छूटे हैं और वापस आए हैं?

इस पर वो एकाध सेकेंड रुके, तमतमाए और हमें ये चरित्र प्रमाणपत्र दे दिया, "आप पत्रकार लोग सड़ी हुई नाली के गंदे कीड़े हैं."

रजनीश भी मेरी नजर में कई कदम आगे थे, लेकिन उनके स्कोरकार्ड में एक नंबर मैं काटूंगा. (फोटो: Twitter)

इसके बाद अपने को बेदाग बताते हुए, अमेरिका में हुई नाइंसाफी की कुछ बात कहते हुए उन्होंने अपना जवाब खत्म किया. बातचीत की लय बिगड़ चुकी थी. दो-एक और सवालों के बाद इंटरव्यू खत्म हो गया. हम चकराए हुए थे कि हमारा इरादा नेक और साफ था. कोई बदमजगी हो, ये बात दूर-दूर तक दिमाग में नहीं थी. वैसे रमेश निर्मल का कहना था कि चलो, कॉपी तो मजेदार बनेगी.

मुंबई में रिपोर्टिंग के दौरान नेताओं से, ट्रेड यूनियन वालों से, खोजी खबरों से जुड़े अफसरों और कारोबारियों से, अपने बारे में ऐसे करेक्टर सर्टिफिकेट पाने की तब तक आदत पड़ चुकी थी. तो ओशो की बात निजी तौर बुरी नहीं लगी, लेकिन मैं एक अफसोस के साथ लौटा.

अध्यात्म, ज्ञान और विवेक के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति तटस्थ, निरपेक्ष और निर्विकार होते हैं. क्या उन्हें अपना संतुलन यूं खोना चाहिए? एक सीधा सा सवाल था, तथ्यों पर आधारित था. वो ये कह सकते थे कि सवाल गलत है, आरोप झूठे हैं. लेकिन उन्हें गुस्सा आया!
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

और ये तब हुआ, जब कि रजनीश की किस्सागोई, धर्म खासकर जैन और बौद्ध धर्म के नए इंटरप्रेटेशन के कारण मेरी निजी राय रजनीश के बारे में अच्छी थी. मैं न उनका समर्थक था, न आलोचक, लेकिन मैं उनको और उनके कामों को जब 13 साल का था, तब से फॉलो करता था. उनके कई शिष्य मेरे संपर्क में रहते थे. बाद में मैं पुणे आश्रम भी आता जाता रहा.

रजनीश मुझे एक दिलचस्प विषय लगते हैं. गुस्‍सा एक स्वाभाविक इमोशन है, लेकिन बेहद नेगेटिव इमोशन है. उस पर काबू पाने वाले हम जैसे मामूली लोगों से कई कदम आगे होते हैं. रजनीश भी मेरी नजर में कई कदम आगे थे, लेकिन उनके स्कोरकार्ड में एक नंबर मैं काटूंगा. परिष्कृत मन में क्रोध की जगह नहीं हो सकती.

लौटते हैं वाइल्ड वाइल्ड कंट्री पर, जो मुझे फिर से याद दिलाती है कि स्वामी से भगवान और फिर ओशो बने रजनीश भारतीय अध्यात्म का ग्लोबलाइजेशन करने की चाहत लेकर अमेरिका गए. ओरेगोन में अपना रजनीशपुरम बनाया. एक खुश दुनीय बनाने का इरादा था, जो लोकल लोगों और शिष्यों के झगड़े में तब्दील हो गया. इस कहानी में सेक्स, ड्रग, गन, सस्‍पेंस, पुलिस, अदालत, सजा, देशनिकाला- सब कुछ है.

अमेरिकी कानून के तहत माफी मांगकर वहां से बड़ी मुश्किल से निकल पाए थे रजनीश.

अमेरिका के जिन युवा फिल्मकारों ने ये फिल्म बनाई है, उनसे रश्क होता है. इन भाइयों के हाथ भूले-बिसरे वीडियो फुटेज हाथ लग गए. फिर उन्होंने ओशो की मुख्य सहयोगी मां आनंद शीला को ढूंढ निकाला, जो अपनी कहानी कहने को बेताब थीं. यूं नेटफ्लि‍क्स के हाथ बढ़िया डॉक्युमेंट्री लग गई, जो भारत और दुनिया में भी खूब देखी जा रही है. ये रजनीश का रंगीन किस्सा रीविजिट करने का सही वक्‍त है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 03 Apr 2018,04:59 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT