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ओशो की मृत्यु के 26 साल बाद भी उठ रहे हैं ये 7 सवाल

ओशो के कुछ अनुयायियों का मानना है कि उनके गुरु को उनके ही कुछ विश्वस्त सहयोगियों ने जहर दे दिया था.

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19 जनवरी 1990 को रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु को प्राप्त होने वाले ओशो ने कहा था,’मौत से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसे सेलिब्रेट करना चाहिए.’

भगवान श्री रजनीश के नाम से भी पुकारे जाने वाले ओशो के कुछ अनुयायियों का मानना था कि उनके गुरु को उनके ही कुछ विश्वस्त सहयोगियों ने जहर दे दिया था. उन लोगों की नजर ओशो की अकूत संपत्ति पर थी.

उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही उनके विश्वासपात्र सहयोगियों ने उनके हजारों करोड़ रुपये के ग्लोबल साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी. ऐसा उनकी एक वसीयत की वजह से हुआ. अब इस वसीयत को पुणे में रहने वाले उनके एक शिष्य योगेश ठक्कर ने अदालत में चैलेंज किया है.

योगेश ठक्कर का दावा है कि वसीयत जाली है और उनके विदेशी विश्वासपात्र सहयोगी भारतीय आध्यात्मिक खजाने की तस्करी कर रहे हैं और उसे चोरी-छिपे विदेश ले जा रहे हैं.

उन्होंने दावा किया है कि सार्वजनिक चैरिटीबल ट्रस्ट ओशो चैरिटीबल ट्रस्ट इंटरनेशनल फाउंडेशन से अब तक 100 करोड़ रुपये से अधिक की रकम गैरकानूनी ढंग से ओशो मल्टीमीडिया एंड रेजॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को ट्रांसफर की जा चुकी है, जो एक निजी कंपनी है.

बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर याचिका में ठक्कर ने डॉ. गोकुल गोकानी का एक शपथ पत्र नत्थी किया है, जो ओशो की मृत्यु के समय पुणे आश्रम में मौजूद थे. डॉ. गोकुल ने ही ओशो का डेथ सर्टिफिकेट जारी किया और उन्हें शक था कि ओशो की मृत्यु के 4 घंटे पहले कोई साजिश रची गई थी.

लिहाजा अब ओशो की मृत्यु और उनके उत्तरिधकार पर कब्जे के 26 साल बाद ये 7 सवाल बार-बार उठ रहे हैं.

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1. उस दोपहर 1 बजे क्या गड़बड़ी हुई?

19 जनवरी 1990 को डॉ. गोकुल गोकानी पुणे के अपने घर पर आराम कर रहे थे. अपने शपथपत्र में वह लिखते हैं, ‘उन्हें तुरंत अपनी इमरजेंसी किट और लेटरहेड लेकर ओशो आश्रम पहुंचने को कहा गया. जब उन्होंने पूछा कि क्या कोई गंभीर तौर पर बीमार है या मर गया है, तो उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.’

मैं तुरंत आश्रम पहुंचा. 5 मिनट बाद अमृतो (जॉन एंड्रयू) आए. मुझे गले लगाया और कहा कि ओशो अपना शरीर छोड़ रहे हैं. मेरी आंखों में आंसू थे. जयेश ने कहा, यह उन्हें विदाई देने का सही तरीका नहीं है. उन्होंने मुझे धैर्य रखने और आश्रम के प्रति अपना कर्तव्य निभाने को कहा.
डॉ. गोकानी एक पुराने इंटरव्यू में

अगर ओशो मर रहे थे, तो अमृतो ने डॉ. गोकानी को उन्हें बचाने के लिए क्यों नहीं कहा. आश्रम में कई मेडिकल डॉक्टर थे. उनसे सलाह क्यों नहीं ली गई. ओशो को अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया. डॉ. गोकानी ने लोगों को इसके बारे में क्यों नहीं बताया. उन सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं है.

2. क्या ओशो की मौत शाम 5 बजे हुई?

डॉ. गोकानी अपने शपथपत्र में लिखते हैं कि उन्हें ओशो के कमरे में शाम 5 बजे जाने की अनुमति मिली. कमरे में ओशो का शरीर था और अमृतो और जयेश (माइकल ओ ब्रायन) वहां मौजूद थे.

अमृतो ने कहा, ओशो ने अभी-अभी अपना शरीर छोड़ा है. आपको उनका डेथ सर्टिफिकेट लिखना है. मैंने ओशो का वास्तविक नाम और शरीर पर निशान के बारे में जानने के लिए उनका पासपोर्ट मांगा. उनका शरीर अभी भी गर्म था. साफ है कि उन्होंने अपना शरीर एक घंटे से पहले नहीं छोड़ा होगा.
डॉ. गोकानी

डॉ. गोकानी इस बात पर अचरज करते हैं कि अमृतो और जयेश ने ओशो की मृत्यु का इंतजार क्यों किया? आश्रम में इतने सारे डॉक्टर थे. उनमें से किसी को डेथ सर्टिफिकेट लिखने के लिए क्यों नहीं बुलाया गया.

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3. मौत की असली वजह क्या थी?

ओशो के मुंह से थोड़ा खाना और उल्टी निकलने की निशानी थी. उनके चोगे की एक बांह पर यह निशान था. ओशो के लिए इस तरह की उल्टी करना या बांह पर भोजन गिराना स्वाभाविक नहीं लग रहा था. लेकिन ऐसा देख कर मुझे आश्चर्य हुआ था.
डॉ. गोकुल गोकानी

डॉ. गोकुल गोकानी कहते हैं, ‘उन्होंने ओशो को अंतिम सांस लेते नहीं देखा. इसलिए उन्होंने जयेश और अमृतो से उनकी मृत्यु की वजह पूछी. उन्होंने गोकानी से सर्टिफिकेट में दिल से संबंधित बीमारी के बारे में लिखने को कहा ताकि ओशो के शव का पोस्टमार्टम न हो सके.’

अगर गोकानी का विश्वास किया जाए तो ओशो की मौत की असली वजह अब तक नामालूम है. अगर ओशो मृत्यु से पहले उल्टियां कर रहे थे, तो इसकी वजह क्या थी. डॉ. गोकानी ने इसके बारे में क्यों नहीं पूछा.

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4. अंतिम संस्कार में इतनी हड़बड़ी क्यों?

अमृतो और जयेश ने कहा कि ओशो अपने ‘21 सदस्यों’ के इनर सर्किल के बीच अपना अंतिम संस्कार चाहता था. वो चाहते थे कि तुरंत उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाए.

दोनों ने किसी को भी उनके नजदीक से दर्शन करने की इजाजत नहीं दी. इनर सर्किल के सदस्यों को ओशो की मृत्यु के बारे में बात करने से कड़ाई से मना कर दिया गया.

ओशो की मृत्यु की छोटी सी सार्वजनिक सूचना देने के 1 घंटे के भीतर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. उनके अंतिम संस्कार में इतनी हड़बड़ी को लेकर आज भी सवाल उठाए जा रहे हैं.

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5. ओशो की मां को अंधेरे में क्यों रखा गया?

ओशो की सेक्रेट्री नीलम से कहा गया कि वे उनकी मां को इस मृत्यु की सूचना दे दें. ओशो की मां आश्रम में ही थीं.

जब मैंने ओशो को यह कहा कि भगवान रजनीश ने अपना शरीर छोड़ दिया है तो उन्होंने छूटते ही कहा- ‘नीलम उन्होंने उसे मार दिया है.’ मैंने उन्हें यही समझाया कि यह किसी पर आरोप लगाने का सही समय नहीं है.
एबीपी न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में नीलम

ओशो अगर मृत्यु की ओर बढ़ रहे थे, तो उनकी मां को दोपहर एक बजे ही यह सूचना क्यों नहीं दी गई? और उनकी मां ने सीधे उन लोगों पर हत्या का आरोप क्यों लगाया?

6. ओशो की वसीयत गुप्त क्यों रखी गई?

योगेश ठक्कर अपने शपथ-पत्र में दावा करते हैं कि 1989 में बनी ओशो की वसीयत के बारे में आश्रम में किसी को भी पता नहीं था. इसे पहली बार 2013 में अमेरिका की एक अदालत में एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान पेश किया गया.

फिर इस वसीयत को 2013 के बाद अचानक एक यूरोपीय कोर्ट में भी पेश किया गया.

ठक्कर का दावा है कि यह वसीयत ओशो की मृत्यु के बाद तैयार की गई. यह वसीयत उसी समय सामने आई, जब इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का सवाल उठाया गया. इस वसीयत से ओशो की सभी चीजें ओशो इटंरनेशनल फाउंडेशन के ट्रस्टी जयेश के पास चली गईं.

ओशो आश्रम की पुणे में जो प्रॉपर्टी है, उन्हीं की कीमत 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है. भारत के बाहर ओशो की जो संपत्तियां हैं, उनके बारे में मुझे जानकारी नहीं है. हर साल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स से ट्रस्ट को 100 करोड़ रुपये की कमाई होती है. जब मैंने उनसे वसीयत के बारे में पूछा तो उन्होंने मेरा पुणे आश्रम में प्रवेश बंद करवा दिया. उन्होंने यूरोप में 20 अन्य कंपनियां बनाई हैं और इसमें चुपचाप अब तक कम से कम 800 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए हैं.
योगेश ठक्कर, याचिकाकर्ता, ओशो फ्रेंड्स फाउंडेशन
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7. क्या ओशो के दस्तख्त की फोटो कॉपी कराई गई?

ठक्कर ने यह कथित वसीयत नई दिल्ली, जर्मनी और इटली के डॉक्यूमेंटेशन एक्सपर्ट्स को भेजी. उनका कहना है कि ओशो के दस्तख्त की फोटोकॉपी कराई गई. ठक्कर ने उन्हें वह किताब दिखाई, जिससे दस्तख्त की नकल की गई थी.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि किसी शख्स के 2 दस्तख्त कभी नहीं मिलते. जबकि वसीयत और किताब के दस्तख्तों के बीच गजब की समानता है.

ओशो की विश्वस्त और विवादास्पद शिष्या रह चुकीं आनंद शीला (शीला पटेल) ने अपनी किताब ‘डोंट किल हिम’ में ओशो की संदिग्ध मृत्यु को लेकर कई सवाल उठाए थे. (उन्हें 1984 में रजनीशपुरम के बायोटेरर अटैक का दोषी ठहराया गया था और अमेरिका की एक संघीय जेल में उन्होंने 20 साल की सजा काटी थी.)

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कोर्ट ने मांगी असली वसीयत

बांबे हाई कोर्ट ने पुणे पुलिस से ओशो की असली वसीयत खोज कर उसे भारत लाने को कहा है. हाई कोर्ट की बेंच ने हिमांशु ठक्कर को आरबीआई और ईडी के साथ इस बारे में दायर याचिका का पार्टी रेस्पांडेंट बनने की इजाजत दे दी है, ताकि इस मामले में मनी लांड्रिंग के पहलू से जांच हो सके.

जबकि हमने पुणे आश्रम की एक पदाधिकारी मा साधना से इस कहानी के दूसरे पहलू को भी टटोलना चाहा. हमने उनसे वसीयत के बारे में बात की.

यह पूरी तरह गलत है. मामला अदालत में है, इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगी.
अमृत साधना, एडिटर, ओशो टाइम्स इंटरनेशनल

जब, हमने उनसे ओशो की संदिग्ध मौत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा-

कोई भी कुछ भी कह सकता है. ओशो को मारा गया, इसका क्या सबूत है?
अमृत साधना, एडिटर, ओशो टाइम्स इंटरनेशनल

द क्विंट ने ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के प्रशासकों में से एक और अमृतो और जयेश के करीबी मुकेश सारदा से बात करने की कोशिश की. लेकिन उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

बहरहाल, मशहूर रहस्यवादी गुरु रजनीश की जिंदगी की तरह ही उनकी मृत्यु भी रहस्यमयी रही. ओशो समुदाय में उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर उत्सव होते हैं. लेकिन उनके कुछ शिष्य अब भी अचानक हुई उनकी संदिग्ध मृत्यु का शोक मना रहे हैं.

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