मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 लॉकडाउन से पहले बेहतरीन थी दुनिया, इस कल्पना से बाहर निकलिए

लॉकडाउन से पहले बेहतरीन थी दुनिया, इस कल्पना से बाहर निकलिए

पर्यावरण संकट ने हमें याद दिलाया कि इस महामारी के संकट के अलावा हमारी पृथ्वी भी एक गंभीर बीमारी से जूझ रही है.

बहार दत्त
नजरिया
Published:
पर्यावरण संकट ने हमें याद दिलाया कि इस महामारी के संकट के अलावा हमारी पृथ्वी भी एक गंभीर बीमारी से जूझ रही है.
i
पर्यावरण संकट ने हमें याद दिलाया कि इस महामारी के संकट के अलावा हमारी पृथ्वी भी एक गंभीर बीमारी से जूझ रही है.
(फोटोः Altered By Quint)

advertisement

आज जैसे ही विश्व पर्यावरण दिवस के लिए मैं अपनी ख्वाहिशों की फेहरिस्त लिखने बैठी, तो मैंने सोचा कि क्या वाकई मुझे नीले आसमान और सुंदर प्रकृति बात करनी चाहिए. वो भी ऐसे समय में जब दुनिया में इतना बड़ा स्वास्थ्य संकट सामने है. लाखों-करोड़ों लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं. लाखों प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घर की ओर चले जा रहे हैं. मैं जानती हूं कि दुनिया और हमारा देश इस समय कई झंझावातों से जूझ रहा है.

पहले भारत-पाकिस्तान टिडि्डयों के संकट के लिए एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते रहे. टिडि्डयों के आतंक से कृषि संकट पैदा हो गया. इसके बाद दक्षिण भारत के शहर विशाखापट्‌टनम में केमिकल प्लांट की गैस लीक होने से हजारों लोग बेहोश हो गए. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये सब तबाही का मंजर हमने सिर्फ बीते छह हफ्ते में देखा है. और अब विश्व पर्यावरण दिवस के ठीक एक दिन पहले ही हमें केरल से एक दुखभरी खबर मिलती है, जिसमें दो हथिनियों की मौत हो गई.

बिना रोडमैप अनलॉक करने की जल्दबाजी

पर्यावरण संकट ने किसी महामारी का इंतजार नहीं किया. बल्कि ये तब भी जारी रहा, जब राहत और बचाव कार्य में लगी एजेंसियां लॉकडाउन, कंटेनमेंट जोन और सोशल डिस्टेंसिंग के दौरान पूरी मुस्तैदी से अपना काम कर रही थीं. पर्यावरण संकट ने हमें याद दिलाया कि इस महामारी के संकट के अलावा हमारी पृथ्वी भी एक गंभीर बीमारी से जूझ रही है.

अगर आपको लगता है कि लॉकडाउन से पहले दुनिया एक बेहतरीन जगह थी और सब कुछ अच्छा हो रहा था तो आपको इस कल्पनालोक से बाहर आना चाहिए. क्योंकि सच्चाई इससे कहीं दूर है. हमारी दुनिया एक पर्यावरणीय तबाही से दूसरी तबाही में जा रही है. ये सब हमारी जिंदगी और आजीविका की कीमत पर हो रहा है और हम इसे होने दे रहे हैं.

मैंने इस विश्व पर्यावरण दिवस पर एक नए विकास के क्रम की ख्वाहिश जाहिर की है, लेकिन ये विकास इस कीमत पर नहीं होगा कि हमने कितने जंगल काटकर सड़कें बनाईं. या फिर कृषि योग्य भूमि पर कितने कोयला संयत्र स्थापित कर दिए.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

पर्यावरण का ध्यान में रखते हुए शहरों को रिस्टार्ट करने की जरूरत

लेकिन, रुकिए, ये सिर्फ ख्याली पुलाव नहीं है. चलिए जरा ध्यान से चीजों को देखते हैं. ये मेरी छह सिफारिशें है एक नजरिया पेश करने के लिए कि आखिर 'न्यू नॉर्मल' है क्या?

  • इकनॉमी को ऐसे शुरू करें कि वो कोयला सेक्टर को बढ़ावा देने पर निर्भर न रहे, जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री ने ऐलान किया. बल्कि फोकस जंगलों, वेटलैंड और मैंग्रोव को बचाने पर हो. क्यों न प्रवासी मजदूरों के लिए हरित रोजगार योजना का ऐलान किया जाए. क्यों नहीं उन कंपनियों को इनाम दिया जाए जो कार्बन उत्सर्जन घटाती हैं.
  • क्यों न हम शहरों के बारे में अपना नजरिया बदलें और उन्हें इस तरह डिजाइन करें कि वो पैदल चलने वालों और साइकिल वालों के लिए जगह हो? और क्या हम सेंट्रल विस्टा पर खर्च किए जाने वाले 20 हजार करोड़ रुपए को पब्लिक हेल्थ पर खर्च कर सकते हैं?
  • क्या हम अरुणाचल प्रदेश के दिबांग बेसिन में बनने जा रहे 3097 मेगावाट के इटालिन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर फिर से विचार कर सकते हैं, क्योंकि इससे ऐसे हजारों हेक्टेयर जंगल नष्ट होने वाले हैं, जहां कई तरह के विलुप्तप्राय जानवर रहते हैं. या उन 16 और प्रोजेक्ट पर फिर विचार कर सकते हैं जिनकी योजना दिबांग घाटी में बनाई गई है. (जाहिर है यही बात बाकी देश के लिए भी सही है)

प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों के खिलाफ अच्छे वकील लगा सकते हैं क्या?

  • पर्यावरण पर असर के जिन नियमों पर अभी पर्यावरण मंत्रालय विचार कर रहा है, क्या हम उसपर नए सिरे से सोच सकते हैं, ताकि पर्यावरण के लिए लड़ने वालों को और ताकत मिले न कि पर्यावरण तोड़ने वालों को छूट?
  • क्या हम प्रशिक्षित वकीलों का एक समूल खड़ा कर सकते हैं जो उन अदालतों में उन बड़े नेताओं और वकीलों का सामना कर सकें जो प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों के लिए लड़ते हैं.
  • और आखिर क्या हम उन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली कंपनियों और नेताओं का पर्दाफाश करने वाले पत्रकारों नौकरी से निकालने की धमकी और बिना मेहनताना के आर्टिकल देने को कहने के बजाय कोई सुरक्षा कवर दे सकते हैं, ताकि वो वो निडर होकर अपना काम कर सकें- सत्ता से प्रदूषण को लेकर सवाल पूछ सकें, या जंगलों की कटाई और पर्यावरण को लेकर हमारे देश में चल रही गड़बड़ियों पर सवाल उठा सकें?

ग्रीन इकनॉमी ऐसे ही नहीं बन जाती

एक ग्रीन इकनॉमी एवोकैडो फार्म पर आधारित हिप्पी ड्रीम नहीं है (हालांकि मैं हिप्पियों के खिलाफ नहीं हूं.) यह वास्तविक है और यह संभव है. दूसरे देश रास्ता दिखा रहे हैं. पेरिस की मेयर ऐन हिडाल्गो कह चुकी हैं कि महामारी के बाद कारों से भरे शहर की तरफ लौटने का सवाल ही नहीं है. ब्रिटिश सरकार ने लॉकडाउन खत्म होने के बाद लोगों को साइकिलिंग और पैदल चलने की तरफ प्रोत्साहित करने के लिए £2 बिलियन (€2.25 बिलियन) के निवेश की घोषणा की है.

परमानेंट बाइक लेन्स और बस कॉरिडोर्स के साथ शहरों की पुनर्कल्पना के लिए कोशिशें जारी हैं और जर्मनी जलवायु संरक्षण पर करीबी नजर रखते हुए अपनी इकनॉमी को वित्तीय प्रोत्साहन दे रहा है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT