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World Environment Day: प्लास्टिक से कैसे निपटें, बांग्लादेश से सीख सकता है भारत?

हल्की प्लास्टिक थैलियों को गैरकानूनी घोषित करने वाले पहले देशों में से एक बांग्लादेश था, जिसने 2002 में ऐसा किया था.

अंजल प्रकाश
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>World Environment Day 2023: हर साल 5 जून को, वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे मनाया जाता है</p></div>
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World Environment Day 2023: हर साल 5 जून को, वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे मनाया जाता है

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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5 जून 2023 को, वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे के अवसर पर, प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए आवश्यक व्यक्तिगत और सांप्रदायिक गतिविधियों के महत्व पर प्रकाश डाला जाएगा. समय आ गया है कि इन प्रयासों को आगे बढ़ाने और एक सर्कुलर इकॉनमी बनने का. #BeatPlasticPollution अभियान महत्वपूर्ण है क्योंकि सिंगल-यूज प्लास्टिक सामानों पर हमारी निर्भरता पर्यावरण, समाज, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है.

हैरानी की बात यह है कि दुनिया भर में हर मिनट दस लाख प्लास्टिक की बोतल खरीदी जाती हैं और हर साल पांच ट्रिलियन प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल किया जाता है. उत्पादित सभी प्लास्टिक का आधा हिस्सा केवल एक बार उपयोग के लिए होता है, जिससे समस्या और बढ़ जाती है. प्लास्टिक, विशेष रूप से माइक्रोप्लास्टिक्स, हमारे प्राकृतिक वातावरण में स्पष्ट रूप से मौजूद हैं. कई देशों की तरह भारत भी प्लास्टिक की बड़ी समस्या से जूझ रहा है.

भारत प्लास्टिक कचरे का दुनिया का 15वां सबसे बड़ा उत्पादक है. सेंट्रल पलूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के एक स्टडी के अनुसार, भारत ने 2019 में लगभग 9.46 मिलियन मेट्रिक टन प्लास्टिक कचरा बनाया. अमीर देशों की तुलना में भारत का पर कैपिटा प्लास्टिक उपयोग रिलेटिवली (relatively) कम है.

हालांकि, भारत की विशाल जनसंख्या के कारण, उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक की कुल मात्रा बड़ी है. 2019 में, भारत का पर कैपिटा प्लास्टिक उपयोग लगभग 11 किलोग्राम था. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार, 2022 में भारत की पर कैपिटा खपत में 20 किलोग्राम की वृद्धि होगी.

सिंगल यूज प्लास्टिक पर भारत का प्रतिबंध

भारत में प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में कई कठिनाइयां हैं. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के रिसर्च के अनुसार, देश में उत्पादित प्लास्टिक कचरे का केवल 60% ही रिसाइकल किया जाता है, बाकी 40% लैंडफिल, नदियों या समुद्र में डंप किया जाता है.

द ओशन क्लीनअप की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गंगा और सिंधु नदियां दुनिया भर की टॉप 10 नदियों में शामिल हैं, जो समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान देती हैं. ये नदियां काफी संख्या में प्लास्टिक का कचरा समुद्र में डिस्चार्ज करती हैं.

भारत ने प्लास्टिक प्रदूषण के एक प्रमुख स्रोत, सिंगल-यूज प्लास्टिक से निपटने के लिए काफी काम किया है. 2019 में विभिन्न राज्यों और कस्बों में भारत सरकार द्वारा प्लास्टिक बैग, कप, प्लेट सहित सिंगल-यूज वाले प्लास्टिक को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था. इन प्रतिबंधों को लागू करने पर रीजनल डायवर्सिटी (regional diversity) मौजूद हैं.

भारत का प्लास्टिक रीसाइक्लिंग व्यवसाय विस्तार कर रहा है, लेकिन इसे अभी भी मदद की जरूरत है. अतीत में वेस्ट प्लास्टिक के सबसे बड़े आयातकों में से एक भारत था.

पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों को संबोधित करने के लिए, राष्ट्र ने 2019 में प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाया. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, देश की रीसाइक्लिंग की क्षमता लगभग 60% है, बाकी बची सामग्री को जला दिया जाता है या लैंडफिल में निपटाया जाता है.

बांग्लादेश का सफल प्लास्टिक प्रतिबंध: भारत के लिए सबक

भारत के पड़ोसी बांग्लादेश ने प्रभावी रूप से प्लास्टिक पर व्यापक प्रतिबंध लगाया है, जबकि भारत अपने प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए संघर्ष कर रहा है. बांग्लादेश की स्थिति से हम क्या सीख सकते हैं?

जब प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की बात आती है, तो वास्तव में, बांग्लादेश को सफल माना जाता है. प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए पर्याप्त इनिशिएटिव लेकर बांग्लादेश ने इस क्षेत्र में जबरदस्त प्रगति की है. निम्नलिखित विवरण बांग्लादेश द्वारा प्लास्टिक प्रतिबंध के प्रभावी इम्प्लीमेंटेशन को दर्शाते हैं.

  • हल्के प्लास्टिक की थैलियों को गैरकानूनी घोषित करने वाले पहले देशों में से एक बांग्लादेश था, जिसने 2002 में ऐसा किया था.

  • सरकारी कानून के अनुसार, 50 माइक्रोन से कम की मोटाई वाले प्लास्टिक बैगों को निर्मित, आयात, बिक्री या उपयोग करने की अनुमति नहीं है. बांग्लादेश सरकार द्वारा प्लास्टिक पर प्रतिबंध को गंभीरता से लिया गया था.

बांग्लादेश ने प्लास्टिक प्रदूषण के नेगेटिव परिणामों और प्लास्टिक कचरे को खत्म करने की आवश्यकता के बारे में लोगों को सूचित करने के लिए कई जन जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए. राष्ट्रव्यापी संदेश प्रसारित करने के लिए, इन अभियानों ने टेलीविजन, रेडियो, बिलबोर्ड और सोशल मीडिया सहित अलग-अलग मीडिया का उपयोग किया. विकल्पों पर विचार करने के बाद, बांग्लादेशी सरकार ने रीयूजएबल, पर्यावरण के अनुकूल बैग बनाने और उपयोग करने का समर्थन किया. इसके कारण, प्राकृतिक रेशों से बनी जूट बैग की, प्लास्टिक की थैलियों के रिप्लेसमेंट के रूप में लोकप्रियता में वृद्धि हुई.

प्लास्टिक प्रतिबंध को आगे बढ़ाने और कचरा प्रबंधन पहलों को लागू करने के लिए देश ने तेजी से नेबर्हुड संघों, गैर-सरकारी संगठनों और पर्यावरण समूहों को शामिल किया. इससे लोगों में रीसाइक्लिंग कल्चर को बढ़ावा मिला और उनमें ओनर्शिप की भावना बढ़ी.

बांग्लादेश में प्लास्टिक पर प्रतिबंध के सार्थक परिणाम सामने आए हैं. इसने पूरे देश में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा में काफी कमी की है और सड़कों और जल मार्गों की सफाई करके पर्यावरण में सुधार किया है. निषेध ने अन्य देशों को भी ऐसे उपायों को लागू करने के लिए प्रेरित किया है और प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ वर्ल्ड वाइड लड़ाई के लिए एक टेम्पलेट के रूप में कार्य किया है.

जबकि बांग्लादेश ने काफी प्रगति की है, अभी भी बाधाओं को दूर करना बाकी है, जैसे कि चल रही पब्लिक एजुकेशन और एनफोर्समेंट की आवश्यकता और प्लास्टिक की थैलियों की स्मगलिंग पर रोक. हालांकि, प्लास्टिक पर रोक को लागू करने में देश की इनिशिएटिव और सफलता प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को दूर करने का प्रयास करने वाले दूसरे देशों के लिए एक उल्लेखनीय उदाहरण के रूप में काम करती है.

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भारत के प्लास्टिक खतरे का मुकाबला करने के लिए स्ट्रेटजी

भारत में प्लास्टिक के मुद्दे को कम करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं.

सबसे पहले, हमें वेस्ट मैनेजमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर और तरीकों को सुधारना होगा ताकि प्लास्टिक कचरे को सही तरह से कलेक्ट, सेग्रिगेट और डिस्पोज किया जा सके. इसमें वेस्ट-टू-एनर्जी इनिशिएटिव को बढ़ावा देना, रीसाइक्लिंग सुविधाओं का विस्तार करना और वेस्ट मैनेजमेंट प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाना शामिल है. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां पर्याप्त वेस्ट मैनेजमेंट सुविधाएं कम हैं, प्लास्टिक कचरे के मैनेजमेंट के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और जागरूकता अभियानों को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिए.

दूसरा, मौजूदा सिंगल-यूज वाले प्लास्टिक प्रतिबंधों को बनाए रखना और प्रतिबंध में और अधिक प्लास्टिक सामानों को कवर करना. प्रतिबंधित प्लास्टिक उत्पादों के निर्माण, बिक्री और उपयोग को नियंत्रित करने वाले नियमों का उल्लंघन करने वाले को दंड देना होगा. भारत को रीसाइक्लिंग तकनीकों, बायोप्लास्टिक और वैकल्पिक पैकेजिंग सामग्री बनाने सहित प्लास्टिक कचरे के मैनेजमेंट में रिसर्च और इनोवेशन का भी समर्थन करना चाहिए. हमें प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के स्थायी समाधानों के लिए स्टार्टअपों और कार्यक्रमों का समर्थन करना चाहिए.

तीसरा, हमें सिंगल-यूज वाले प्लास्टिक के ऐसे ऑल्टर्नटिव (alternative) को बढ़ावा देना चाहिए जो एनविरोमेन्टली रिस्पॉन्सिबल और सस्टेनेबल हों. लोगों को रीयूजेबल कंटेनरों, बोतलों और बैगों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. नए, रीयूजेबल और बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री के स्टडी और निर्माण को प्रोत्साहन देना चाहिए. ऐसा करने के लिए, हमें लोगों को प्लास्टिक कचरे से इकोसिस्टम को होने वाले नुकसान के बारे में सूचित करने के लिए व्यापक जन जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना चाहिए. यह लोगों को पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा और सिंगल-यूज वाले प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करेगा.

चौथा, प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी (EPR) प्रिंसिपल, जो EPR कानून को लागू करता है, का भारत में उपयोग किया जाना चाहिए. इस प्रकार उत्पादक कंपनियों को अपने उत्पादों के परिणामस्वरूप होने वाले किसी भी प्लास्टिक कचरे के संग्रह, रीसाइक्लिंग और उचित डिस्पोजल सहित अपने माल के पूरे जीवनकाल के प्रबंधन के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा. यह उत्पादकों को अधिक रीसाइक्लेबल और एनवायरनमेंट फ्रेंडली पैकेजिंग सामग्री का उपयोग करने के लिए बढ़ावा देता है.

पांचवां, भारत के पास पहले से ही रीसाइक्लिंग के लिए एक बड़ा बुनियादी ढांचा है, लेकिन यह असंगठित क्षेत्र (Unorganised Sector) में है और इसे नियंत्रित करना होगा. प्लास्टिक के रीसाइक्लिंग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नॉलजी और सुविधाओं का विकास और विस्तार किया जाना चाहिए. रीसाइक्लिंग कंपनियों के लिए वित्तीय सहायता और दूसरे प्रोत्साहन प्रदान करके रीसाइक्लिंग क्षेत्र का विस्तार किया जा सकता है. हम इस प्रक्रिया के दौरान प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं (Best Practices), रिसर्च और तकनीकी प्रगति का आदान-प्रदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समूहों, सरकारों और स्टेकहोल्डरों के साथ काम कर सकते हैं.

(डॉ. अंजल प्रकाश इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी में एसोसिएट प्रोफेसर (रिसर्च) और रिसर्च डायरेक्टर हैं. वह IPCC रिपोर्ट में योगदान करते हैं. ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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Published: 05 Jun 2023,05:12 PM IST

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