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नवरात्रि (Navratri 2020) के इस त्योहार में मां के विभिन्न रूपों की उपासना हो रही है. शरदीय नवरात्र का आज पांचवा दिन स्कंदमाता के नाम है. क्योंकि ये शक्ति का त्योहार है, इसलिए नवरात्रि के नौ दिनों में हम आपको नव दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों के साथ-साथ देश की नारी शक्ति की भी कहानियां बताएंगे.
नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित हैं. स्कंदमाता नौ रूपों में पांचवां रूप हैं. आज भक्त मां स्कंदमाता की पूजा-आराधना और उपासना करते हैं. शास्त्रों में नवरात्र पूजन के पांचवें दिन का पुष्कल महत्व बताया गया है. आज के दिन साधक की सभी बाहरी क्रियाओं एवं चित्तवृतियों का लोप हो जाता है और वह चैतन्य स्वरुप की ओर अग्रसर होता है. उसका मन समस्त लौकिक, सांसारिक और मायिक बंधनों से विमुक्त होकर स्कंदमाता के स्वरुप में तल्लीन हो जाता है.
स्कंदमाता यानी स्कंद की माता. शिवपुत्र कार्तिकेय का दूसरा नाम स्कंद है. इसलिए जब माता पार्वती ने कार्तिकेय को जन्म दिया, तब से वह स्कंदमाता भी कहलाने लगीं. पुराणों के मुताबिक, मान्यता है कि मां दुर्गा ने बाणासुर के वध के लिए अपने तेज से 6 मुख वाले सनत कुमार को जन्म दिया, जिनको स्कंद भी कहते हैं. माता को इनके पुत्र के नाम से भी पुकारा जाता है, इसलिए स्कंदमाता की पूजा में कुमार कार्तिकेय का होना जरूरी होता है. स्कंदमाता की उपासना से बालरूप कार्तिकेय की उपासना स्वयं ही हो जाती है, इसलिए साधक को स्कंदमाता की उपासना पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण मां का उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है. इसलिए मन को एकाग्र और पवित्र रखते हुए माता की आराधना करने वाले भक्त को किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आती है. जिन लोगों को संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो, उन्हें मां के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए. मां का यह स्वरूप संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण करने वाला माना गया है. स्कंदमाता को केले का भोग प्रिय है. मां को केसर खीर का प्रसाद भी चढ़ाना चाहिए.
मां से ग्रहण कर सकते हैं यह सीख:
मां स्कंदमाता का स्वरूप:
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
चार भुजाओं वाली स्कंदमाता का वाहन सिंह है. मां की दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं तथा नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है. बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में है तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प हैं. इनका वर्ण पूरी तरह से शुभ्र है. स्कंदमाता कमल के आसन पर भी विराजमान रहती हैं. इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है.
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी ISRO की अनुभवी वैज्ञानिक और देश के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन “गगनयान” की कमान जिस नारी शक्ति के हाथ में है, उनका नाम डॉ. वी.आर. ललिताम्बिका (Dr. V. R. Lalithambika) है. मैथेमैटीशियन और इंजीनयरों के बीच तिरुवनंतपुरम में पली-बढ़ी ललिताम्बिका 1988 में इसरो से जुड़ने के बाद सौ से ज्यादा स्पेस मिशन का हिस्सा रह चुकी हैं.
द यूथ नामक न्यूजवेबसाइट को दिए गए इंटरव्यू में, डॉ. ललिताम्बिका ने कहा था कि उनके दादा जी की वजह से साइंस और टेक में उनकी रुचि बढ़ी. डॉ. ललिताम्बिका के दादा जी गणितज्ञ थे, इसके अलावा वे लेंस, टेलिस्कोप और माइक्रोस्कोप जैसे गैजेट भी तैयार करते थे. दादा जी के अलावा ललिताम्बिका को बचपन से ही रॉकेट लॉन्च की आवाज सुनने को मिलती रही है.
दरअसल तिरुवनंतपुरम में स्थित उनका घर थुंबा रॉकेट टेस्टिंग सेंटर से काफी नजदीक था, इसलिए उनको लॉन्च की आवाज सुनाई देती थी. जब कोई रॉकेट लॉन्च होने वाला होता तो दादा शाम को ही इस बारे में उन्हें बता देते थे. उसके बाद दादा और पोती, दोनों उस समय का इंतजार करते, जब लॉन्च होने का टाइम आता. दादा उन्हें इसरो के कामों के बारे में बताते थे, जिससे बचपन से ही ललिताम्बिका के मन में इसरो के प्रति लगाव पैदा हो गया और आज वे इसरो के ही एक प्रतिष्ठित और चैलेंजिंग प्रोजेक्ट को डायरेक्ट कर रही हैं.
डॉ. ललिताम्बिका कंट्रोल सिस्टम इंजीनियर हैं. इसरो के साथ उनका जुड़ाव तीन दशक से भी ज्यादा पुराना है. उन्हें ‘गगनयान' की जिम्मेदारी उनके पिछले आउटस्टैंडिंग कामों को देखते हुए दी गई है. ललिताम्बिका ने भारत के रॉकेट पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) और एक भारतीय स्पेस शटल के लिए काम किया है. जब इसरो ने एक साथ 104 सेटेलाइट को लॉन्च करके रिकॉर्ड बनाया, तो इस प्रोजेक्ट में भी उनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका थी.
'नौ दिन, नौ नारी शक्ति की कहानी' की पहली चार कहानियां आप नीचे क्लिक कर पढ़ सकते हैं:
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