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देशभर में हर साल फागुन में होली का जश्न रहता है. होली मुख्य रूप से रंगों का त्योहार माना जाता है, लेकिन इस त्योहार के कई और भी रूप हैं. देश में अलग-अलग जगहों पर इसके कई रूप देखने को मिलते हैं.
कुछ जगहों पर बिल्कुल अलग तरीके से होली खेली जाती है. बरसाना की लट्ठमार होली से लेकर गोवा तक की होली काफी मशहूर है. दुनियाभर से लोग यहां की खास होली देखने आते हैं.
ब्रज की लट्ठमार होली दुनियाभर में फेमस है. ये मुख्य रूप से मथुरा, वृन्दावन, बरसाना और नंदगाव में मनाई जाती है. यहां सालों से लट्ठमार होली की परंपरा चल रही है. इस परंपरा के तहत महिलाएं बांस के लट्ठ से अनोखे अंदाज में पुरुषों को पीटती हैं और पुरुष ढाल से अपना बचाव करते हैं.
लट्ठमार होली मनाने के पीछे भगवान श्रीकृष्ण और राधा से जुड़ी एक प्रेम कथा बताई जाती है. कृष्ण नंदगाव में रहते थे और राधा बरसाना में. मान्यता के अनुसार, कृष्ण राधा के साथ होली खेलने बरसाना आया करते थे, लेकिन राधा अपनी सहेलियों के साथ मिलकर उन्हें बांस का लट्ठ दिखाकर भगाती थीं. यही आज ब्रजवासियों की परंपरा बन चुकी है.
पश्चिम बंगाल में होली का पर्व 'बसंत उत्सव' के रूप में मनाया जाता है. बंगाल के शांतिनिकेतन में होली का उत्सव नाच, गाने, ट्रेडिशनल ढोल और खूब धूमधाम के साथ अलग ही तरीके से मनाया जाता है. इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. लोग एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं. वहीं महिलाएं खास ट्रेडिशनल येलो कलर की साड़ी पहनकर बसंत उत्सव में शामिल होती हैं.
शांतिनिकेतन में इस बसंत उत्सव की शुरुआत मशहूर बंगाली कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी.
पंजाब के आनंदपुर साहिब में होली का अलग रंग देखने को मिलता है. यहां लोग होली का त्योहार 'होल्ला-मोहल्ला' के रूप में मनाते हैं. इस दौरान भव्य मेले का आयोजन होता है, जहां सिख समुदाय के लोग कुश्ती, मार्शल आर्ट्स और तलवार के साथ करतब दिखाते हैं. इसके साथ ही मेले में घुड़सवारी, ट्रक रेस जैसे पारंपरिक खेलों को भी शामिल किया जाता है. बताया जाता है यहां 'होल्ला-मोहल्ला' उत्सव की शुरुआत साल 1701 में हुई थी.
राजस्थान के उदयपुर में शाही तरीके से होली का त्योहार मनाया जाता है. दो दिन तक चलने वाले इस सेलिब्रेशन के दौरान शाही जुलूस निकाला जाता है. जुलूस में हाथी, घोड़े से लेकर रॉयल बैंड तक शामिल होते हैं.
इसकी खासियत ये है कि यहां राजस्थान की पूरी सभ्यता और परंपरा देखने को मिलती है. राजस्थानी वेशभूषा में लोग होलिका दहन करते हैं और राजस्थान लोकगीत की धुन पर नाचते नजर आते हैं. जमकर आतिशबाजी भी होती है. इस खास जश्न को देखने के लिए दूरदराज से लोग आते हैं.
उत्तर भारत ही नहीं, बल्कि दक्षिण भारत में भी होली का त्योहार खूब धूमधाम से मनाया जाता है. कर्नाटक के हंपी शहर में इस त्योहार की खास धूम देखने को मिलती है. होली वाले दिन सुबह से ही पूरा शहर होली के रंग-रूप में रंग जाता है. पानी वाले रंग, गुलाल, तेज आवाज में गाने के साथ यहां के लोग होली को बेहतरीन बनाते हैं. इस दौरान यहां बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी घूमने आते हैं.
गोवा में वैसे तो पूरे साल टूरिस्टों का जमावाड़ा लगा रहता है, लेकिन होली के दौरान मार्च में यहां खास रौनक होने लगती है. होली के अवसर पर गोवा कार्निवल से लेकर शिगमो उत्सव तक कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. चार दिनों तक चलने वाले गोवा कार्निवल में खान-पान की अलग-अलग वैराइटी के साथ नाच गाने की खास परेड इसका हिस्सा होती है. ऐसा ही कुछ शिगमो उत्सव में भी होता है. नाच गाने की परेड के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
इस मौके पर गोवा के बीचों पर अलग ही जश्न का माहौल होता है. सभी बीचों को रंगों से सजाया जाता है. देश-विदेश से हजारों लोग यहां जुटते हैं और गुलाल से होली खेलते हुए गानों की तेज आवाज पर जमकर झूमते हैं.
बिहार की कुर्ताफाड़ होली भी अपने-आप में बेहद खास है. बिहार के कई इलाकों में सुबह से शाम ढलने तक 'कुर्ताफाड़' होली खेली जाती है. आम तौर पर ऐसी होली युवकों के बीच ही होती है. ग्रुप के लोग आपस में ही एक-दूसरे के कुर्ते फाड़ते हैं. होली खेलने वाली टोलियों में जोगीरा सारारारारा से लेकर रंग बरसे भीगे तक... सब चलता है.
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