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कुंभ के मौके पर प्रयागराज में लाखों की तादाद में लोग संगम में स्नान कर रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि शुभ मौकों पर पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य मिलता है. लेकिन पुण्य बटोरने की इस आपाधापी में कई बार लोग उन नियमों को भूल जाते हैं, जो नदियों की उपयोगिता और पवित्रता बरकरार रखने के मकसद से बनाए गए हैं.
नदियों में स्नान से जुड़ी सावधानियों के साथ-साथ नहाने से होने वालों की फायदों की पूरी लिस्ट हम आगे दे रहे हैं.
देश में ऐसे कई पर्व-त्योहार हैं, जिनमें नदियों में स्नान करने का खास महत्व होता है. जब बात कुंभ की हो, तो स्नान केवल एक नित्यकर्म न रहकर मोक्ष पाने के साधन जैसा बन जाता है.
जैसा कि सभी जानते हैं, जल ही जीवन है, इसलिए पानी के स्रोतों को साफ बनाए रखना बेहद जरूरी है. इसी बात को ध्यान में रखकर शास्त्रों में नदी और जलाशयों की पूजा करने का विधान बनाया गया है. साथ ही इन्हें किसी भी तरह से गंदा करने की सख्त मनाही है.
मलं प्रक्षालयेत्तीरे तत: स्नानं समाचरेत् (मेधातिथि)
मतलब, जिस तरह आज के दौर में स्विमिंग पूल में छलांग मारने से पहले अलग जाकर नहाते हैं, उसी तरह नदियों में नहाने से पहले शरीर की शुद्धता का ध्यान रखा जाना चाहिए.
शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि पवित्र तीर्थ में सुबह ही स्नान कर लेना चाहिए. ऐसा करने से दो तरह के फायदे बताए गए हैं. इससे शरीर स्वच्छ और नीरोग तो रहता ही है, साथ ही पुण्य मिलता है और पाप नष्ट होते हैं.
इसी मान्यता की वजह से कुंभ जैसे बड़े मौकों पर अहले सुबह ही नहाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. सार यह है कि आकाश में उषा की लालिमा दिखने के वक्त से पहले ही नहा लेना चाहिए.
एक धर्मशास्त्र में तो स्नान करने के 10 बड़े फायदे गिनाए गए हैं. दक्ष स्मृति में कहा गया है कि स्नान करने वालों में ये 10 गुण आ जाते हैं:
शास्त्र कहता है कि वेद और स्मृतियों में जितने तरह के कर्मकांड बताए गए हैं, उनमें स्नान सबसे कॉमन है. इसलिए लक्ष्मी चाहने वालों, पुष्ट और नीरोग देह चाहने वालों को हर रोज स्नान करना चाहिए.
वैसे तो ठंड का सीजन शुरू होते ही हर वॉट्सऐप ग्रुप पर स्नान के प्रकार की चर्चा शुरू हो जाती है. स्नान के उन तरीकों में हास्यबोध ज्यादा होता है. लेकिन धर्मशास्त्रों में इस बारे में विस्तार से चर्चा है.
'आचारमयूख' में स्नान के जिन 7 प्रकार की चर्चा है, उसे आप आगे कार्ड में देख सकते हैं.
जो लोग कमजोर और बीमार हैं, उनके लिए भी नहाने का तरीका बताया गया है. कहा गया है कि ऐसे लोगों को सिर पर पानी न डालकर उससे नीचे के अंगों को भिगोना चाहिए. जो ऐसा करने में भी समर्थ न हों, उन्हें गीले साफ कपड़े से पूरा शरीर पोंछ लेना चाहिए.
ऐसा नहीं है कि सारा पुण्य केवल वैसे लोग ही बटोर ले जाएंगे, जिन्हें पवित्र नदियों में नहाने का सौभाग्य मिलेगा. लोग अपने घर में स्नान करने के वक्त पवित्र नदियों का स्मरण करते हुए स्नान का आध्यात्मिक लाभ उठा सकते हैं.
इसलिए नहाते समय इस श्लोक को पढ़ना चाहिए:
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय।
स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्।।
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