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31 जुलाई को कथा सम्राट प्रेमचंद के जन्मदिन पर उनके गांव लमही में सरकारी और गैर सरकारी आयोजनों के जरिये हर साल श्रद्धांजलि दी जाती है. लमही में उनके स्मारक पर इसकी तैयारियां भी जोर-शोर से होती हैं. पर क्या आपको पता है कि कभी 'लमही के लाल' के इसी स्मारक पर उनकी जयंती मनाने वाले उत्साही नवयुवकों को नक्सली करार दिया गया था और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने से रोकने के लिए पीएसी लगा दी गयी थी. चौंकाने वाली बात यह कि पीएसी लगाने में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए स्थापित प्रतिष्ठित संस्था नागरी प्रचारिणी सभा के पदाधिकारियों का हाथ था.
प्रेमचद की जयंती मनाने वाले नौजवानों की टोली के सक्रिय सदस्य रहे वरिष्ठ पत्रकार वशिष्ठ मुनी ओझा और योगेन्द्र नारायण उन दिनों को याद करते हुए बताते है कि 70 के दशक की शुरुआत की बात है, शायद साल 1972 या 73 रहा होगा. उन दिनों अमेरिका के प्रतिष्ठित कवि एलेन गिन्सबर्ग बनारस आये थे. उन्होंने प्रेमचंद के स्मारक को देखने की इच्छा जाहिर की. प्रख्यात कवि और साहित्कार त्रिलोचन शास्त्री उन्हें लेकर लमही गये. स्मारक की दशा बहुत ही खराब थी, उन लोगों के साथ साथी पत्रकार एस अतिबल भी गये थे. उन्होंने स्मारक की दुर्दशा की कहानी बयां करती एक फोटो खींचकर 'धर्मयुग' (उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिका) में प्रकाशित करने के लिए भेज दिया. फोटो धर्मयुग में प्रकाशित हुई. उसके बाद तो हंगामा मच गया.
वशिष्ठ मुनी ओझा और योगेन्द्र नारायण बताते हैं कि तब स्मारक की देख-रेख नागरी प्रचारिणी सभा के जिम्मे थी. पूरे देश मे सभा की छीछालेदर होने लगी. इसी दौरान नौजवानों की टोली में सुधेन्धु पटेल, अशोक मिश्र, नरेन्द्र नीरव आदि मित्रों ने प्रेमचंद जयंती पर एक गोष्ठी करने का फैसला किया. इसकी सूचना जब नागरी प्रचारिणी सभा के पदाधिकरियों को लगी तो उन्हें यह नागवार गुजरा और उन्होंने स्मारक पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए उन लोगों को नक्सली करार देते हुए वहां दो ट्रक पीएसी के जवानों की तैनाती करा दी. पूरे स्मारक को पीएसी ने घेर लिया था. सभा के पदाधिकारियों ने प्रशासन को दलील दी कि ये सभी लोग नक्सली हैं और प्रेमचंद स्मारक में लगी प्रतिमा को तोड़ने आ रहे हैं. टोली के सदस्यों की मंशा तो कुछ ऐसी थी ही नहीं. जब पीएसी के जवानों को पूरी बात पता चली तो उनका भी सहयोग टोली को मिला.
योगेन्द्र नारायण बताते हैं कि सन 1980 में साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था 'समवेत' की ओर से प्रेमचंद की जयंती पर काशी से लमही तक यात्रा का आयोजन किया गया. गोदौलिया से शुरू यात्रा तकरीबन दस किलोमीटर की दूरी तय कर लमही पहुंची थी. यात्रा में बड़ी संख्या में छात्र, पत्रकार, साहित्यकार, शिक्षाविद, रंगकर्मी शामिल हुए. इनमें प्रो. त्रिभुवन सिह, प्रो. शुकदेव सिंह, डॉ रामनारायण शुक्ल, वशिष्ठ मुनि ओझा, एस अतिबल, अशोक मिश्र, अरविंद चतुर्वेद, महेशशिरा, कुमार विजय, अफलातून देसाई, चंचल मुखर्जी, रंजीत कुमार रघुवंश और खुद योगेन्द्र नारायण की सक्रिय हिस्सेदारी रही.
यह प्रस्तर खंड नागरी प्रचारिणी सभा ने लगवाया था. सभा की इस गलती के लिए यात्रा मे शामिल लोगों ने आक्रोश जताया था. प्रेमचंद की जयंती पर इतनी बड़ी संख्या में शहर के बुद्धिजीवियों का शायद यह पहला जुटान रहा होगा. प्रेमचंद जयंती पर निकली इस यात्रा की रिपोर्ट उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिका 'दिनमान' में प्रकाशित भी हुई थी.
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