प्रेमचंद को एक साहित्यकार कहें? एक कलाविद जिन्होंने कहानियां लिखीं, कालजयी उपन्यास लिखे. जिन्होंने कई जनरेशन को भारतीयता का पाठ पढ़ाया. जिसने समाज को आईना दिखाया और खुद अपनी रचनाओं के जरिए आईना भी बने. लेकिन वो इतना भर ही थे. दूर से खड़े होकर देखने पर लगता है कि हमें जिन गिने-चुने लोगों पर गर्व है उसमें मुंशी प्रेमचंद भी हैं.
प्रेमचंद की कहानियों को किसी सांचे में ढ़ालकर नहीं देखा जा सकता है. उनके उपन्यासों को किसी भी इज्म से जोड़ भरकर देखा नहीं जा सकता है. वो पूरी तरह से भारतीयता के प्रतीक थे- समाज की सारी अच्छाईयों और बुराइयों को अपने अंदर समेटे.
उस महान हस्ती का 31 जुलाई को जन्म दिन है. उनको जन्मदिन की ढ़ेर सारी शुभकानाएं कह भर देने से काम नहीं चलेगा. इसीलिए हमने उनकी एक महानतम रचनाओं में से एक ईदगाह को आवाज देने की कोशिश की है.
इस रचना को सुनिए और इसमें छिपे मानव संवेदनाओं पर गौर कीजिए. हामिद और उसकी दादी के अनोखे रिश्ते को हमें खोजने और अपने समाज में जीने की जरूरत है. हामिद किसी भी जाति, किसी भी धर्म का हो सकता है. जरूरत है उसे अपने अंदर तलाशने की.
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