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जब मैं 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' देखकर घर वापस आया, तो मैं एक ही गाना गुनगुना रहा था- जा जा जा बेवफा. एक खूबसूरत सरप्राइज देते हुए निर्देशक आनंद एल राय ने अतीत की भूली हुई धुनों में से एक को हमारे जेहन में ताजा कर दिया. निन के गद्य में संगीत के कथानक की तरह, गीता दत्त के पास वो आवाज थी, जिसका जादू वक्त के साथ अभी भी बरकरार है.
हिंदी फिल्म संगीत के इतिहास में, हम सभी भारत की सामूहिक चेतना पर मंगेशकर बहनों के प्रभाव से वाकिफ हैं. वे अभी भी उस प्रभाव पर कायम हैं. दूसरी ओर, गीता दत्त एक 'टूटता तारा' थीं, जिनकी उम्र भले ही कम रही, लेकिन उस दौरान उन्होंने अपनी विशिष्ट आवाज से संगीत के लालित्य का एक आदर्श स्थापित किया.
भारत की आजादी से पांच साल पहले गीता दत्त भी उन लाखों बंगाली प्रवासियों में से एक थीं, जो पूर्वी बंगाल को छोड़ कहीं और जाकर बस गए. वो मुंबई आईं और दादर के एक अपार्टमेंट में रहने लगीं. दिलचस्प बात यह है कि लता और गीता, दोनों के करियर की शुरुआत लगभग एक जैसी थी.
ये बात जगजाहिर है कि कैसे गुलाम हैदर ने लता के गायन को सुना और उन्हें अपनी छत्र-छाया में लेकर, उनके हुनर को संवारा, जो आगे चलकर संगीत की दुनिया में एक परीकथा जैसी हकीकत बनी.
गीता के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. एक बार गीता अपने दादर के फ्लैट की बालकनी में गाना गा रही थीं. हनुमान प्रसाद वहां पास से गुजर रहे थे, उन्होंने उनको गाते हुए सुना. वे गीता के गाने पर इतना मोहित हुए कि उनके 'गॉडफादर' बन गए और उनके करियर को शुरू करने में मदद की.
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अपने करियर की शुरुआत में गीता बमुश्किल ही नूरजहां, सुरैया और उस दौर की अन्य गायिकाओं के बनाए मानकों की चुनौती का सामना कर पा रही थीं. लता को रिजेक्ट किए जाने का सामना करना पड़ रहा था और वह अभी तक लाइमलाइट में नहीं आई थीं.
गीता को एसडी बर्मन के साथ जुड़ने का फायदा मिला और 'दो भाई' के हिट गानों से उनके करियर को रफ्तार मिली. गौर करने वाली बात है कि गीता ने उस दौर की दिग्गज गायिकाओं की नाक से आवाज निकालने वाली शैली को नहीं अपनाया. उसकी असल और विशिष्ट आवाज हिट साबित हुई.
नवकेतन फिल्म्स की 'बाजी' उनके करियर में एक मील का पत्थर साबित हुई. एसडी बर्मन ने इस क्राइम थ्रिलर फिल्म में गीता के एक नए पहलू को दुनिया के सामने पेश किया, जहां भजन एक्सपर्ट एक क्लब सिंगर की कामुक आवाज में तब्दील हो गई. आवाज में ये बदलाव गीता दत्त के बहुआयामी हुनर का सबूत है.
'बाजी' ही वो फिल्म थी, जिसने गुरुदत्त के साथ उनका परिचय कराया. कुछ ही वक्त बाद दोनों के बीच प्यार पनपा और उन्होंने शादी कर ली.
जिंदगी और किस्मत जैसे विषयों पर उन्होंने अपने पति के फिल्मों के लिए कुछ बेहतरीन गाने गाए. लेकिन उनकी अपनी शादीशुदा जिंदगी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे. जल्द ही शराब की लत ने उन्हें जकड़ लिया. नाकाम शादी का असर उनके करियर पर भी पड़ने लगा. नतीजतन, उस जमाने के संगीत निर्देशक गीता की 'लय' को बरकरार नहीं रख पाए.
गीता दत्त को गुजरे 45 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. उनकी आवाज में वो खनक थी, जो वैम्प से लेकर संत के किरदार तक फिट बैठती थी. ये हम जान नहीं सकते, सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसा होता अगर वो और ज्यादा गीतों के जरिए अपनी दास्तां बताने के लिए हमारे बीच थोड़े और समय तक रहतीं.
उनकी आखिरी फिल्म, बसु भट्टाचार्य की 'अनुभव' में हमें उनकी बेमिसाल प्रतिभा की झलक मिलती है...जिसमें हमारी जिंदगी और इसके सभी ब्योरों की मौजूदगी एक ही आवाज में महसूस होती है.
(लेखक एक पत्रकार, स्क्रीन राइटर और कंटेंट डेवलपर हैं. उनका ट्विटर हैंडल है: @RanjibMazumder)
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