Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Zindagani Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Zindagi ka safar  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019पानी की तरह दिल की गहराइयों में उतर जाते हैं सलिल चौधरी के नगमे

पानी की तरह दिल की गहराइयों में उतर जाते हैं सलिल चौधरी के नगमे

सलिल चौधरी ने पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण चारों दिशाओं के संगीत को अपने अंदर समा लिया था.

स्मृति चंदेल
जिंदगी का सफर
Updated:
सलिल चौधरी ने पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण चारों दिशाओं के संगीत को अपने अंदर समा लिया था.
i
सलिल चौधरी ने पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण चारों दिशाओं के संगीत को अपने अंदर समा लिया था.
(फोटो: स्मृति चंदेल) 

advertisement

"कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए..." फिल्म 'आनंद' का ये गाना हर किसी के दिल में बिल्कुल पानी की तरह बहता चला जाता है. यही जादू है संगीतकार सलिल चौधरी के गीतों का. गीतकार, स्क्रिप्ट राइटर और बेहतरीन संगीतकार यानी एक मुकम्मल कलाकार...

बंगाल के 24 परगना जिले के गांव में 19 नवंबर, 1922 को सलिल का जन्म हुआ. उन्हें शुरू से ही वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक का शौक था, इसलिए हमेशा उनके पास इसका भारी-भरकम कलेक्शन हुआ करता था. उनका बचपन मोजार्ट, बीथोवियन, जैसे क्लासिकल मेस्ट्रो के संगीत की छाया में गुजरा, और यहीं से उनके अंदर म्यूजिक की यूनिवर्सल अप्रोच ने जन्म लिया.

इसी वजह से वह शायद खुद को मजाक में मोजार्ट रिबॉर्न भी कहते थे. उन्होंने चाय के बागानों में काम कर रहे मजदूरों से फोक म्यूजिक की तालीम भी हासिल की. पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण चारों दिशाओं के संगीत को उन्होंने अपने अंदर समा लिया था.

महज 6, 7 साल की नन्ही उम्र में ही उन्होंने हारमोनियम, सितार, फ्लूट बजाना शुरू कर दिया था. वह अंग्रेजी हुकूमत का दौर था, जिसके विरोध में सलिल दा ने अपना पहला जन संगीत "बिचार पति तुमार बिचार", कंपोज किया जो कि क्रांति के दौर में काफी पॉपुलर हुआ. यह गीत उन्होंने 1945 में अंडमान जेल से लौटने के बाद लिखा था.

उन्हीं दिनों वे स्टूडेंट मूवमेंट में कूद पड़े और कम्युनिस्ट पार्टी की आर्ट विंग "ईप्टा" जॉइन कर ली. उनके खिलाफ कई मुकदमे भी रजिस्टर्ड हुए और उन्हें भागकर सुंदरबन में फरारी भी काटनी पड़ी. ऐसे वक्त में भी सलिल ने गाना लिखना और कंपोज करना नहीं छोड़ा. 1944 में वर्ल्ड वॉर के दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने बंगाल के चावल उत्‍पादन को हड़प लिया, जिसके कारण लगभग 50 लाख लोगों की भूख से मौत हो गई.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सलिल दा ने इसी वेदना पर एक फिल्म की कहानी लिखी, जिसे उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी के माध्यम से विमल रॉय तक पहुंचाई. इस तरह यह कहानी साल 1953 में फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ के रूप पर्दे पर नजर आई.

म्यूजिक कंपोजर के तौर पर साल 1949 में आई ‘परिवर्तन’ सलिल चौधरी की पहली फिल्म थी. सलिल दा ने बांग्‍ला, हिंदी, मलयालम समेत 13 भारतीय भाषाओं में कई फिल्मों में संगीत दिया.

फोक, क्लासिकल, वेस्टर्न सभी का फ्लेवर सलिल दा के कंपोजिशन में दिखाई देता था, उन्होंने जागो मोहन प्यारे, जागते रहो, 1956, आ जा रे परदेसी ,मधुमति, ओ सजना बरखा बहार आई जैसे कई खूबसूरत गीत बनाए.

सलिल चौधरी ने हेमंत कुमार, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और मुकेश जैसे महान गायकों के साथ के बेहतरीन गाने रिकॉर्ड किए, जो आज भी संगीत के चाहने वालों के दिल के बेहद करीब हैं.

"मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने", या फिर "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा", हर गीत ने मानो युगों का सफर तय किया हो.

5 सितंबर 1995 को 65 साल की उम्र में सलिल का कोलकाता में निधन हो गया. उनका ये गाना उनके जाने के बाद उन्हीं की यादें ताजा कर देता है. ‘न जाने क्यों होता है यह जिंदगी के साथ, अचानक ये मन, किसी के जाने के बाद करे फिर उसकी ही याद... छोटी छोटी सी बात, न जाने क्यों"

यह भी पढ़ें: मदर टेरेसा, जिनकी ममतामयी सेवा से कई घरों से दूर हुआ अंधेरा

यह भी पढ़ें: ऋषिकेश मुखर्जी:जिनके किरदार आज भी वक्त की खिड़कियों से झांकते हैं

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 05 Sep 2019,10:52 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT