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मदर टेरेसा, जिनकी ममतामयी सेवा से कई घरों से दूर हुआ अंधेरा

मदर टेरेसा  का असली नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था

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दो लड़कियां घर से दूर, बाहर खेल रही थीं. अचानक आई आंधी से दोनों घबरा गईं और बचने के लिए एक बगीचे में जा पहुंचीं. मसूमों को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि पेड़ की डाल टूटकर उन्हीं पर गिरने वाली है. दोनों लड़कियों को चोट आई, उनमें से एक लड़की जोर-जोर से रोने लगी. तभी दूसरी लड़की ने अपनी चोट को अनदेखा करते हुए झट से अपनी फ्रॉक का एक कोना फाड़ा और दूसरी लड़की की चोट पर बांध दिया.

फ्रॉक बांधते हुए ये बच्ची दूसरी बच्ची को समझा रही थी, ‘’रो मत, तुम्हारी चोट जल्द ठीक हो जाएगी, घर जाकर मलहम लगा लेना.’’ 5 साल की मासूम वो बच्ची थी Aneze Gonxhe Bojaxhiu, जिसे आगे चलकर पूरी दूनिया ने गरीबों की मसीहा मदर टेरेसा के नाम से जाना.

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ऐसी कई कहानियां हैं, जो बताती हैं कि मदर टेरेसा बचपन से ही परोपकारी स्‍वभाव की थीं. महज 12 साल की उम्र में ही उन्होंने अपना घर, सारे रिश्ते-नाते लोगों की सेवा के लिए छोड़ दिया था. इस कठिन फैसले के बारे में मदर टेरेसा का अपने परिवार वालों के लिए सिर्फ एक ही जवाब था:

‘’मैं रिश्तों को ठुकरा नहीं रही हूं, मैं तो सारे संसार को अपनाने जा रही हूं.’’  

26 अगस्त, 1910 में मदर टेरेसा ने मेसेडोनिया के स्कॉप्जे के एक कैथोलिक परिवार में जन्म लिया. रोज चर्च जाना उनकी रुटीन में शामिल था. वे हमेशा एक ही सपना देखती थीं, ईसा मसीह का संदेश पूरी दुनिया में फैलाना. वो सपना था प्यार और शांति बांटने का.

शुरुआत में मदर टेरेसा अल्बानियाई भारतीय रोमन कैथोलिक नन के रूप में मैसेडोनिया में 18 साल तक रहीं. 1929 में वो भारत आ गईं और यहीं रहने लगीं. यही वो जगह थी, जहां मदर टेरेसा ने अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय बिताया.

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‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना

मदर टेरेसा जब भारत पहुंचीं, तो यहां की गरीबी और लोगों के कष्ट ने उन्हें व्याकुल कर दिया था. उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ खोलने का फैसला किया, जहां नशे से पीड़ित, भूखे, बेघर, अपंग, अंधे, कुष्ठरोग के मरीजों को घर जैसा माहौल दिया जाता था.

कोलकाता में 13 सदस्यों से शुरू हुई संस्‍था ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ साल 2007 में 4000 हजार की संख्या में तब्दील हो चुकी थी.

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नोबेल और भारत रत्न से सम्मानित

दूसरों की जिंदगी का अंधेरा दूर करने वाली मदर टेरेसा ने अपने जीवन का ज्‍यादातर हिस्‍सा कोलकता की गंदी बस्तियों में बेसहारा गरीबों और बीमारों की सेवा में बिताया. साल 1979 में मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 1980 में उन्‍हें ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया.

4 सितंबर, 2016 को मदर टेरेसा को वेटिकन सिटी के सेंट पीटर स्क्वायर में पोप फ्रांसिस ने संत की उपाधि दी.
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मदर का अंतिम समय

दिन-रात पीड़ितों की सेवा करते-करते मदर टेरेसा की तबीयत दिन-ब-दिन खराब हो रही थी. सेहत लगातार खराब रहने के कारण उन्‍होंने 1996 में संस्था के पद से इस्तीफा दे दिया. ये खबर पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गई थी.

5 सितंबर 1997 को वो मनहूस घड़ी आ गई, जब मदर टेरेसा ने 87 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

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