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बजट की ABCD : क्या होता है 'गवर्नमेंट बोरोइंग' और क्या हैं इसके तरीके ?

सरकारी उधारी में बढ़ोतरी आमतौर पर कैपिटल मार्केट के लिए नकारात्मक होती है

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क्विंट हिंदी आपके लिए लाया है स्पेशल सीरीज बजट की ABCD, जिसमें हम आपको बजट से जुड़े कठिन शब्दों को आसान भाषा में समझा रहे हैं... इस सीरीज में आज हम आपको ‘सरकारी उधार’ यानी ‘गवर्मेंट बोरोइंग’ का मतलब समझा रहे हैं.

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असल में सरकार का खर्च हमेशा उसकी आय से ज्यादा होता है इसलिए सरकार देश में श‍िक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे कल्याण और विकास कार्यों के लिए जो रकम उधार लेती है, उसे गवर्नमेंट बोरोइंग (सरकारी उधारी) कहते हैं.

स्वाभाविक तौर पर इस उधार का असर ब्याज भुगतान के दबाव के रूप में सरकारी खजाने पर पड़ता है, इसलिए सरकारी उधारी में बढ़ोतरी आमतौर पर कैपिटल मार्केट के लिए नकारात्मक होती है.

तीन तरीकों से सरकार उधार मांगती है

नई करेंसी छापकर - सरकार रिजर्व बैंक को आदेश देती है कि इतनी मात्रा में नयी करेंसी छापो और सरकार को उधार दो. मगर इसके लिए सरकार को 200 करोड़ की संपत्ति जिसमें 115 करोड़ का सोना और 85 करोड़ की विदेशी संपत्तियां RBI में जमा करना अनिवार्य है. इससे देश में महंगाई दर बढ़ जाती है और चीजों और सेवाओं की कीमत ज्यादा हो जाती है.

घरेलू स्रोतों से -इसमें सरकार, रिज़र्व बैंक के पास पहले से मौजूद रुपया ही उधार मांगती है. इसके अलावा प्राइवेट बैंकों, सरकारी बैंकों से भी उधार लेती है. इसके लिए सरकार कई तरह के बॉन्ड जारी करती है, जिन्हें आम जनता, बैंक या दूसरे वित्तीय संस्थान खरीद सकते हैं.

विदेशी स्रोतों से - सरकार अपने मित्र देशों (अमेरिका, जापान, कनाडा, रूस इत्यादि), अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक समूह, अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (IMF), एशियाई विकास बैंक (ADB), एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश बैंक (AIIB) से ऋण लेती है.

सरकार को इस प्रकार के ऋणों को चुकाने के लिए डॉलर, पौण्ड और यूरो जैसी मुद्राओं में ऋण के साथ साथ मूलधन का भुगतान करना पड़ता है. जिससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो जाता है. यहां पर यह ध्यान रहे कि भारत सरकार अपनी कुल आय का 18 से 19% हिस्सा केवल ऋण भुगतान के रूप में खर्च करना पड़ता है.

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