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टाटा-मिस्त्री के बीच ये नौबत क्यों आई? 2016 से अब तक की बात

जैसे ही ये फैसला आया टाटा ग्रुप की कंपनियों में 4% तक की कमजोरी देखने को मिली

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नमक से नैनो तक और चाय से हवाई जहाज के कारोबार में शामिल टाटा संस के साम्राज्य को बड़ी कानूनी पटखनी मिली है, वो भी खुद टाटा संस के चेयरमैन रहे साइरस मिस्त्री से. नेशनल कंपनी लॉ एपेलेट ट्रिब्यूनल यानी NCLAT ने कॉरपोरेट जगत के इतिहास का एक बड़ा फैसला सुनाया है. साइरस मिस्त्री को टाटा संस बोर्ड के चेयरमैन पद से हटाए जाने को NCLAT ने गैरकानूनी बताया है.

NCLAT ने क्या फैसला दिया है?


NCLAT ने साइरस मिस्त्री को टाटा संस बोर्ड के चेयरमैन पद से हटाने को गैरकानूनी बताया है और टाटा संस के इस एक्शन को ओप्रेसिव यानि दमनकारी कहा है. ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि फिर से साइरस मिस्त्री को टाटा संस का चेयरमैन बनाया जाए. इसके अलावा NCLAT ने कहा कि टाटा संस का कंपनी को पब्लिक से प्राइवेट बनाने का फैसला भी गैरकानूनी था और इसे भी बहाल किया जाना चाहिए. टाटा संस के लिए राहत की बात ये है कि ट्राइब्यूनल के फैसले तुरंत लागू नहीं होंगे. टाटा संस के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 4 हफ्ते का वक्त है.

ये नौबत क्यों आई?

2013 में रतन टाटा ने साइरस मिस्त्री को टाटा संस की कमान सौंपी थी और 24 अक्टूबर 2016 का वो दिन था जब टाटा संस के बोर्ड ने मिलकर साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया. इस बीच रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच कई मुद्दों पर असहमति की खबरें बनीं. जिस वक्त साइरस ने कमान संभाली टाटा संस पर भारी कर्ज था और साइसर चाहते थे कि कर्ज वाली कंपनियों जैसे  इंडियन होटल्स, टाटा स्टील लिमिटेड का यूरोपीय कारोबार, टाटा पावर तथा टाटा डोकोमो कंपनियां को बेच दिया जाए या इनमें कॉस्ट कटिंग की जाए.

साइरस और टाटा सन्स में क्या विवाद हुआ था?

साइरस टाटा संस की कंपनियों में मैनजमेंट से लेकर वर्कफोर्स के स्तरों तक बदलाव ला रहे थे. साइरस और टाटा के बीच शुरु में तो खूब अच्छी बनी लेकिन फिर कुछ मुद्दों पर टकराव होने लगा. जैसे टाटा स्टील यूके की बिक्री, वेलस्पन एनर्जी के एसेट्स को खरीदने का फैसला, टाटा और डोकोमो के बीच झगड़ा इन सब मुद्दों ने दोनों के बीच एक दीवार सी खड़ी कर दी.

आगे क्या होगा?

अक्टूबर 2016 में साइरस को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाया गया बाद में उन्हें बोर्ड से भी बाहर कर दिया गया. इसके बाद वो नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल गए. NCLT में साइसर कानूनी लड़ाई हार गए थे  लेकिन NCLAT ने ये फैसला पलट दिया. जैसे ही ये फैसला आया टाटा ग्रुप की कंपनियों में 4% तक की कमजोरी देखने को मिली. साफ है टाटा के मौजूदा मैनेजमेंट के लिए ये एक सेटबैक है. पूरे कॉरपोरेट जगत की दिलचस्पी टाटा संस और साइरस मिस्त्री के इस केस पर थी. हर कोई ये जानना चाहता है कि जिस तरह से साइरस मिस्त्री को एक झटके में कंपनी से निकाल दिया गया क्या किसी कंपनी के चेयरमैन को इस तरह से हटाया जा सकता है?

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इस केस में ट्राइब्यूनल ने सख्त फैसला सुनाया है और साइरस को फिर से बतौर चेयरमैन बहाल करने का आदेश दिया है. वैसे मशहूर वकील सोन शेख सुंदरम का कहना है कि साइरस फिर से टाटा संस में जाना नहीं चाहते. वो तो बस माइनॉरिटी शेयर होल्डर के लिए एक नजीर पेश करना चाहते थे कि अचानक से कोई किसी को बोर्ड से नहीं निकाल सकता. कोशिश इस बात की थी कि आगे फिर किसी कंपनी के कर्ताधर्ता के साथ ऐसा बर्ताव न करे..

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