अक्टूबर 2016 में अचानक एक बड़ी खबर सामने आई कि 78 साल के रतन टाटा ने 48 साल के साइसर मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन के पद से हटा रहे हैं. पूरे बिजनेस जगत के लिए ये खबर किसी धमाके से कम नहीं थी. रतन टाटा ने एक बार फिर कंपनी को अपने हाथों में ले लिया और बताया गया कि प्रिंसिपल शेयर होल्डर टाटा ट्रस्ट ने ये फैसला किया है.
अब नेशनल कंपनी लॉ एपेलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने अपने फैसले में सायरस मिस्त्री को हटाए जाने को गैरकानूनी बताया है. इस मौके पर जानिए आखिर रतन टाटा ने 2016 में सायरस मिस्त्री को क्यों हटाया और इसके पीछे क्या बड़े कारण थे?
डोकोमो से विवाद
साइसर मिस्त्री की मौजूदगी में टाटा डोकोमो की हैंडलिंग ठीक से नहीं हो पाई थी. इसे भी एक बड़ा कारण माना गया. इसे लेकर भी कई सवाल खड़े हुए थे. इस मामले में कई केस हुए. इसमें कंपनी को हर्जाना भी भरना पड़ा. अमेरिका के कोर्ट में केस चल रहे हैं. इस पर कंपनी भी खासी नाराज हुई थी. डोकोमो से ये झगड़ा टाटा की इमेज के लिए एक बुरी खबर थी.
साइसर मिस्त्री चेयरमैन बनते ही कहते आ रहे थे कि कुछ धंधों को कम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा था कि इस वक्त धंधा बढ़ाया नहीं जा सकता है. जबकि रतन टाटा तब कहा करते थे कि यहां से बहुत तेजी से ग्रोथ होनी चाहिए. 2021 तक बिजनेस बढ़कर 500 मिलियन डॉलर के आसपास हो जाना चाहिए. दोनों में ये मतभेद भी मिस्त्री के जाने का एक कारण थे.
बोर्ड के फैसले पर उठे थे सवाल
साइसर मिस्त्री को हटाने से पहले टाटा संस बोर्ड में अजय पिरामल, वेणु श्रीनिवासन और अमित चंद्रा जैसे लोगों को शामिल किया गया. इसीलिए पहले ही इस बड़े फैसले की तैयारी कर ली गई थी. साइरस मिस्त्री को हटाने के बाद एक सर्च कमेटी बनाई गई. जिसे जिम्मेदारी दी गई कि वो अगले चेयरमैन का नाम घोषित करेगी. इस कमेटी में रतन टाटा, वेणु श्रीनिवासन, अमित चंद्रा, लॉर्ड भट्टाचार्य और रौनेन सेन जैसे नाम शामिल थे.
इस पूरे धमाके के बाद एक सबसे बड़ा सवाल ये उठा था कि साइसर को हटाने में बोर्ड की दादागिरी चली है या फिर शेयर होल्डर्स से पूछकर फैसला लिया गया है. इसके बाद साइरस मिस्त्री ने इस फैसले को चुनौती दी थी.
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