Jammu & Kashmir Exit Poll 2024: जम्मू कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस मिलकर सरकार बनाती दिख रही है. हालांकि उसे बहुमत के आंकड़ें के पार जाने के लिए मदद की जरूरत भी पड़ सकती है और ऐसी स्थिति में पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियां और निर्दलीय विधायक किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं. यह भविष्यवाणी 10 साल बाद हुए विधानसभा चुनावों के लिए आए तमाम एग्जिट पोल कर रहे हैं.
जम्मू और कश्मीर में 90 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें 7 एससी के लिए और 9 एसटी के लिए आरक्षित हैं. तीन चरणों में हुई वोटिंग के बाद नतीजे तो 8 अक्टूबर को काउंटिंग के बाद सामने आएंगे लेकिन शनिवार, 5 अक्टूबर को एग्जिट पोल की भविष्यवाणियां सबके सामने आ गई हैं.
पोल ऑफ एग्जिट पोल्स का अनुमान है कि नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन 42 सीटों के आसपास रह सकता है जबकि बीजेपी 27 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है. वहीं पीडीपी 7 सीटों के साथ बहुमत के आंकड़ें के लिए अहम कड़ी साबित हो सकती है. 14 सीटों के साथ अन्य पार्टियां और निर्दलीय उम्मीवार भी सरकार बनाने की कवायद में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.
चलिए समझने की कोशिश करते हैं कि एग्जिट पोल की भविष्यवाणियों में क्या संदेश नजर आ रहा है.
पीडीपी या पीपुल्स कॉन्फ्रेंस बनेगी किंग मेकर?
पीडीपी को कभी पूरी घाटी में मजबूत उपस्थिति की वजह से एनसी के बराबर टक्कर का माना जाता था. 2002 में इसने सत्ता हासिल की और 2014 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन 2014 में बीजेपी के साथ सरकार बनाने के पार्टी के फैसले ने कई कश्मीरियों को नाराज कर दिया.अभी पार्टी स्पष्ट रूप से अपनी जमीन खोती दिख रही है. यह केवल घाटी की लगभग आधी सीटों और पुंछ और राजौरी जिलों में मजबूती से मुकाबले में दिखी.
पीडीपी की सीटों की संख्या दस से नीचे रह सकती है, लेकिन जैसा कि एग्जिट पोल अनुमान लगा रहे हैं, सरकार बनाने के लिए आधा दर्जन सीटें भी महत्वपूर्ण हो सकती हैं.
पीडीपी या पीपुल्स कॉन्फ्रेंस एनसी-कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होने का विकल्प चुन सकते हैं. जम्मू-कश्मीर कांग्रेस ने भी कह दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो समान-विचार वाली पार्टियों और विधायकों से समर्थन लेने को तैयार है. वहीं पीडीपी ने बीजेपी के साथ गठबंधन की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया है और केवल "धर्मनिरपेक्ष गठबंधन" की बात कर रही है.
यह देखना बाकी है कि क्या एनसी और कांग्रेस बहुमत के आंकड़ें के लिए इंजीनियर रशीद और जमात गठबंधन के उम्मीदवारों की ओर हाथ बढ़ाती है कि नहीं. क्विंट के पॉलिटिकल एडिटर आदित्य मेनन लिखते हैं कि यह विशेष रूप से कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा क्योंकि इससे राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को उसके खिलाफ एक मुद्दा मिल सकता है.
क्या कांग्रेस जम्मू में और जोर लगा सकती थी?
सवाल है कि क्या कांग्रेस जम्मू में और जोर लगाती तो सीटों की संख्या बेहतर हो सकती थी? क्विंट के लिए एक ओपिनियन पीस में लेखक डेविड देवदास लिखते हैं कि अगर कांग्रेस ने अपना पूरा जोर लगाया होता तो इंडिया गठबंधन निश्चित रूप से बहुमत हासिल कर लेता, लेकिन देश की मुख्य विपक्षी पार्टी ने ऐसा नहीं किया. नेशनल कान्फ्रेंस की कड़ी मेहनत कांग्रेस के कमजोर चुनावी कैंपेन के विपरीत थी. यहां तक कि खुद उमर अब्दुल्ला ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि कांग्रेस को केवल कश्मीर में प्रचार करने के बजाय जम्मू को प्राथमिकता देनी चाहिए, जहां उसके पास अधिकांश सीटें हैं.
यही वजह है कि यदि बहुमत में कुछ सीटें कम रह जाती हैं, तो एनसी-कांग्रेस गठबंधन को पीडीपी या सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस में से किसी एक को अपने साथ जोड़ने की जरूरत पड़ सकती है.
गौरतलब है कि सीट-शेयर समझौते के अनुसार नेशनल कॉन्फ्रेंस 51 सीटों पर, कांग्रेस 32 सीटों पर और CPI (M) एक सीट पर चुनाव लड़ रही है.
थर्ड प्लेयर्स के आने से नेशनल कान्फ्रेंस को ही लाभ हुआ?
नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, पीडीपी और बीजेपी के अलावा जमात-ए-इस्लामी (J-e-I) और 'इंजीनियर' रशीद की अवामी इत्तिहाद पार्टी (AIP) के मैदान में होने से चुनाव रोचक हुआ. हालांकि माना जा रहा है कि अधिकांश सीटों जहां J-e-I या AIP के उम्मीदवार मजबूती से मैदान में थे, वहां उन्होंने वास्तव में नेशनल कॉन्फ्रेंस की मदद ही की है. डेविड देवदास के अनुसार इसकी वजह है कि J-e-I ने वैसे बहुत सारे वोट ले लिए जो अन्यथा पीडीपी को जाते (दरअसल J-e-I ने 2002 से गुप्त रूप से ही सही, पीडीपी का पुरजोर समर्थन किया है). वहीं AIP के लिए माना जा रहा है कि वह सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के वोट काट सकती है. दोनों ही स्थिति में सीधा फायदा नेशनल कॉन्फ्रेंस को ही होगा.
5 मनोनित विधायकों से बदलेगा नंबर गेम?
जम्मू-कश्मीर में किसकी सरकार बनेगी, इस सवाल के जवाब में 5 मनोनित विधायक अहम कड़ी बन सकते हैं. दरअसल जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन कानून के अनुसार गृह मंत्रालय की सलाह के आधार पर उपराज्यपाल इन सदस्यों को नामित करेंगे. हालांकि कानून में यह नहीं बताया गया है कि ये मनोनित विधायक सरकार बनाने में भूमिका निभाएंगे या नहीं.
अगर इन 5 मनोनित विधायकों को सरकार गठन के पहले चुना जाता है तो विधानसभा की ताकत (कुल विधायक) बढ़कर 95 हो जाएगी, जिससे सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 48 सीटों तक पहुंच जाएगा. ऐसे में बीजेपी का हाथ मजबूत होगा क्योंकि केन्द्र में उसकी सरकार है और एक तरह से उसे 5 विधायक और मिल जाएंगे.
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सरकार गठन से पहले विधायकों के नॉमिनेशन का विरोध किया है. उनका कहना है कि उपराज्यपाल को जम्मू-कश्मीर की नई सरकार के मंत्री परिषद की सिफारिश पर इन 5 मनोनित विधायकों को चुनना चाहिए.
आखिर में एक अहम बात. एग्जिट पोल्स जो तस्वीर पेश कर रहे हैं वो सिर्फ अनुमान हैं. असल नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे और कहानी एकदम जुदा भी हो सकती है. लेकिन साथ ही हमें उन सवालों का जवाब भी मिलेगा जिनका जिक्र हमने उपर किया है.
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