आनंद बक्शी (Anand Bakshi) एक ऐसा नाम जिसने अपने गानों से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री (Hindi Film Industry) को मोहब्बत करना सिखाया. एक ऐसा नाम जिसने गानों में जान फूंक दी. एक ऐसा नाम जिसने रोमांस को एक नई जुबान दी.
मशहूर गीतकार आनंद बक्शी (Anand Bakshi) की आज 20वीं पुण्यतिथि है. आनंद बक्शी साहब ने 1970 और 80 के दशक में एक से बढ़कर एक बेहतरीन और सदाबहार गाने लिखे. फिल्मी गीतों को उन्होंने एक नई ऊंचाई प्रदान की.
पाकिस्तान में हुआ था जन्म
अपने गीतों के जरिए करोड़ों दिलों पर राज करने वाले आनंद बक्शी (Anand Bakshi) का जन्म 21 जुलाई 1930 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. आनंद बक्शी जब 5 साल के थे तब उनका परिवार दिल्ली आ गया. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान बक्शी की उम्र 17 साल थी. इसके बाद उनका परिवार पूना चला गया. फिर उत्तर प्रदेश के मेरठ और अंत में उनका परिवार वापस दिल्ली में आकर बस गया.
सेना से फिल्मों में आए
आनंद बक्शी (Anand Bakshi) को बचपन से ही सिंगर बनने का शौक था. जुनून ऐसा कि 14 साल की उम्र में घर से भागकर मुंबई आ गए. शुरुआत में मौका नहीं मिला तो जिंदगी चलाने के लिए उन्होंने कई साल तक पहले नौसेना और फिर सेना में काम किया.
सेना में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्हें मंच मिला. आनंद बक्शी (Anand Bakshi) की इस प्रतिभा को सेना के अधिकारियों ने प्रोत्साहित किया. 1956 में वो गीतकार बनने के लिए फिर मुंबई आ गए.
1958 में पहला ब्रेक मिला
1958 में आनंद बक्शी ने भगवान दादा की फिल्म 'भला आदमी' के लिए चार गानें लिखे. फिल्म तो नहीं चली, लेकिन गीतकार के रूप में उनकी गाड़ी चल पड़ी. इसके बाद उन्हें फिल्में मिलती रहीं. 'काला समंदर', 'मेहंदी लगी मेरे हाथ' जैसी फिल्मों के लिए उनकी थोड़ी-बहुत चर्चा होती रही.
1965 में आई दो फिल्मों ने आनंद बक्शी को शीर्ष के गीतकारों की सूची में लाकर खड़ा कर दिया. 'हिमालय की गोद में' और 'जब-जब फूल खिले' फिल्मों से उनकी लोकप्रियता अचानक आसमान छूने लगी. 'मैं तो एक ख्वाब हूं' से लेकर 'परदेसियों से न अखियां मिलाना' जैसे गाने हर जुबां की पसंद बन गए.
इसके आराधना, कटी पतंग, शोले, अमर अकबर एंथनी, हरे रामा हरे कृष्णा, कर्मा, खलनायक, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, ताल, गदर-एक प्रेमकथा और यादें तक 4 दशक से भी ज्यादा समय तक वे अपने गीतों के जरिए लोगों के दिलों पर राज करते रहे.
1972 में पूरी हुई बचपन की मुराद
आनंद बक्शी साहब का गाना गाने की मुराद साल 1972 पूरी हुई. फिल्म मोम की गुड़िया में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ उन्होंने अपना पहला गाना गाया–’मैं ढूंढ रहा था सपनों में’. इसके बाद उन्होंने लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के साथ ‘बागों में बहार आई, होठों पे पुकार आई’ गाना गाया. इसके बाद तो उन्होंने शोले, महाचोर, चरस और बालिकावधू जैसी कई फिल्मों में अपनी आवाज दी.
भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने एक बार खुश होकर आनंद बक्शी (Anand Bakshi) को एक कलम भेंट की थी. कहा जाता है कि इसी कलम से आनंद बक्शी ने 'जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वे फिर नहीं आते' जैसा सदाबहार गीत लिखे थे.
आनंद बक्शी के सुपरहिट गाने
गीतकार आनंद बक्शी के सुपरहिट गानों की लिस्ट बहुत लंबी है. उन्होंने ‘बड़ा नटखट है किशन कन्हैया’, ‘कुछ तो लोग कहेंगे’, ‘आदमी मुसाफिर है’, ‘दम मारो दम’ और ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम’ जैसे 4 हजार से भी ज्यादा गाने लिखे.
'मेरे मेहबूब कयामत होगी', 'सावन का महीना', 'कोरा कागज था', 'हम तुम एक कमरे में बंद हों', 'ओम शांति ओम', 'इश्क बिना', 'दो दिल मिल रहे हैं' जैसे कई यादगार गीत उनकी कलम से निकले. जिसे आज भी लोग गुनगुनात हैं.
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