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Gaslight रिव्यू: ऑडियंस को डराती है, क्लाइमेंस बेहतर होता तो अच्छी लगती फिल्म

पवन कृपलानी की फिल्म 'गैसलाइट' फिल्म की कहानी 'मीशा' के इर्द-गिर्द घूमती है.

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पवन कृपलानी की फिल्म 'गैसलाइट' फिल्म की कहानी मीशा (सारा अली खान) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक आखिरी बार अपने पिता रतन (जिसे अक्सर राजा जी कहा जाता है) के साथ खटास में पड़े रिश्ते को ठीक करने के लिए वापस घर आती है.

उसकी सौतेली मां रुक्मणी (चित्रांग्दा सिंह) उसका स्वागत करती है, और बताती है कि उसके पिता किसी बिजनेस के सिलसिले में बाहर गए हैं. मीशा अपने माता-पिता के अलग होने के लिए अक्सर रुक्मणी को दोषी ठहराती है.

कहानी आगे बढ़ती है और मीशा ये पता लगाने कि कोशिश करती है कि उसके पिता के साथ क्या हुआ है. इसी बीच उसके आसपास सभी लोग उसे 'गैसलाइट' करते हैं कि सबकुछ ठीक है.

मीशा के रोल में, सारा अली खान की परफॉर्मेंस मिली-जुली है. वो अपने किरदार को मजबूती देने की कोशिश करती हैं, लेकिन ज्यादा कामयाब नहीं हो पातीं. हालांकि, फिल्म के फाइनल सीक्वेंस में वो बेहतर लगती हैं.

चित्रांगदा ने अपने किरदार को पूरी तरह से स्वीकार किया है. खासकर फिल्म के सेकेंड हाफ में, उनके रोल में काफी लेयर्स देखने को मिलती हैं.

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शरलॉक होम्स की तरह खोजबीन में मीशा का साथ कपिल (विक्रांत मैसी) देता है, जो एस्टेट का मैनेजर है और राजा जी का ऋणी. मैसी की एक्टिंग अच्छी है, लेकिन 'गैसलाइट' जैसा किरदार वो पहले भी कर चुके हैं.

'फोबिया' की तरह ही, कृपलानी हॉरर जॉनर को अलग तरह से दिखाते हैं. वर्मीयर और गोया जैसे आर्टिस्ट के आर्ट पीस उन भावनाओं की ओर इशारा करते हैं, जिन्हें फिल्ममेकर ने जगाने की कोशिश की है, और कई हिस्सों में डराने की ये कोशिश काम भी करती है.

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दिक्कत ये है कि फिल्म अपने आधार से दूर चली जाती है और पूरी जिम्मेदारी जैसे क्लाईमैक्स पर आ जाती है.

रगुल धारुमान की सिनेमैटोग्राफी कई खूबसूरत फ्रेम दिखाती है और कई जगहों पर ऑडियंस को डराती भी है. चंदन अरोड़ा की टाइट एडिटिंग और गौरव चैटर्जी का बैकग्राउंड स्कोर भी काम करता है.

'गैसलाइट' का क्लाईमैक्स अगर बेहतर होता, तो फिल्म और बेहतर हो सकती थी.

(क्विंट स्टार- 2.5/5)

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