रणबीर कपूर(Ranbir Kapoor), वाणी कपूर(Vaani Kapoor) और संजय दत्त(Sanjay Dutt) स्टारर फिल्म शमशेरा रिलीज हो चुकी है. इस फिल्म से अभिनेता रणबीर कपूर ने चार साल के अंतराल के बाद बड़े पर्दे पर वापसी की है. यशराज बैनर और एक्टर रणबीर कपूर से फैंस को काफी उम्मीदें थी लेकिन ये फिल्म उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी. निर्देशक करण मल्होत्रा ने पीरियड ड्रामा फिल्म को आज के सिनेमा के तौर पर पेश किया है, जो बताता है कि फिल्म की कहानी लिखते समय इस पर ज्यादा रिसर्च नहीं की गई है.
फिल्म की कहानी 1871 से लेकर 1896 के बीच की है. फिल्म में बदला और विद्रोह कहानी का मूलमंत्र साबित हुआ है. फिल्म का मुख्य बिंदू शमशेरा है, जो खमीरान जाति का नेता है और अपने लोगों को एक बेहतर जीवन देने के लिए लड़ाई लड़ता है.ये लोग डकैती करते थे, कहते थे- कर्म से डकैत, धर्म से आजाद. ये इनकी जाति का मूल मंत्र था.
शमशेरा का दूसरा बिंदू दरोगा शुद्ध सिंह है,जिसका किरदार संजय दत्त ने निभाया है, जिसे बडे़ ही उल्लेखनीय रूप से निभाया है. दरोगा शुद्ध बहुत ही खूंखार है, जो जेल में बंद आदिवासियों को अपना गुलाम बनाकर रखता है.
जब शमशेरा अपने लोगों को बेहतर जीवन देने में असफल हो जाता है, तब उसका बेटा बल्ली आता है. ये दोनों किरदार रणबीर कपूर द्वारा निभाए गए हैं, जो एक भी बीट मिस नहीं करते हैं. इसलिए शमशेरा फिल्म हमें थका देती है और बोर करती है.
हम फिल्म में एक बेटे द्वारा अपने बाप की इच्छा पूरी करना देखना चाहते हैं, और इसका इंतजार भी करते हैं, लेकिन फिल्म में विस्तार से समझाने की कमी और ऐतिहासिक सटीकता की अवहेलना इसे एक गन्दा, बेहद उबाऊ फिल्म बनाती है
रणबीर कपूर ने अपनी हर फिल्म की तरह यहां भी अपने दोनों किरदारों में जान डालने की पूरी कोशिश की है. वाणी कपूर बहुत कोशिश करती हैं लेकिन जिस तरह की गंभीरता की आवश्यकता होती है उसे लाने में विफल रहती हैं. इरावती हर्षे. सौरभ शुक्ला और रोनित रॉय को यूं लगता है कि बस फ्रेम मजबूत करने के लिए रख लिया गया है
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