ADVERTISEMENTREMOVE AD

इमरान पर ‘तख्तापलट’ की तलवार? पाक में सेना ने बूट्स तले लोकतंत्र कुचला बार-बार

Pakistan ने अब तक तीन बार देखा है सैन्य शासन; अयूब खान, जिय उल हक और परवेज मुशर्रफ ने किया था तख्तापलट

छोटा
मध्यम
बड़ा

पाकिस्तान (Pakistan) में इन दिनों जिस तरह से सियासी गतिविधियां देखने को मिल रही हैं. उससे एक बार फिर सैन्य तख्तापलट (Military Intervention) की चर्चाएं होने लगी हैं. पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जहां आजादी के बाद से ही राजनीति पर सेना काफी हावी रही है. वर्तमान पीएम इमरान खान (Imran Khan) भी सेना की बदौलत सत्ता में आए थे. लेकिन पिछले कुछ समय से पीएम व सेना के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं.. कई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि सेना और इमरान आमने-सामने आ गए है. जनरल कमर जावेद बाजवा (Qamar Javed Bajwa) से पीएम की नहीं बन रही है, उन पर 'अविश्वास' का खतरा मंडरा रहा, पार्टी में ही विरोध हो रहा. ऐसे में एक बार फिर पाकिस्तान में सैन्य शासन की बातें तेजी से उठने लगी हैं. पाक में अक्सर ही ऐसा होता रहा है. इस देश की 75 साल की कुल जमा उम्र में यहां लोकतंत्र सेना के बूट्स तले 35 साल तक कुचला रहा है. सेना ने तीन बार चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर उसका तख्तापलट किया है. आइए जानते हैं पाकिस्तान के इतिहास में कब-कब सैन्य तख्तापलट देखने को मिला है...

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अभी चर्चा में क्यों यह मुद्दा?

पाकिस्तान में 1957 के बाद पहली बार ऐसा माहौल बन रहा है कि किसी प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने की नौबत आ रही है. 1957 में पाकिस्तान के छठे प्रधानमंत्री इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था जिसके बाद उन्हें पद से हटा दिया गया था. अब 65 साल बाद, पाकिस्तान की मुख्य विपक्षी पार्टियां पाकिस्तान मुस्लिम लीग (N), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मौलाना फजलूर रहमान के नेतृत्व वाली Muttahida Majlis-e-Amal, चुंदरीगर वाली स्थिति ही पीएम इमरान खान पर भी थोपना चाहती हैं.

इमरान के खिलाफ अविश्वास की स्थिति क्यों बनी?

इसकी वजह ये है कि अगस्त 2018 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से इमरान खान देश को प्रभावी ढंग से चलाने में नाकाम रहे हैं.

हाल के मुद्दों की बात करें तो इमरान का मॉस्को दौरा विवादित रहा. जब पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तब इमरान खान मॉस्को में थे. पाकिस्तान के पीएम का पुतिन से मिलना और इसे एक आधिकारिक दौरे का शिष्टाचार बताना पश्चिमी देशों की नाराजगी की वजह बन गया.

कुछ समय पहले पाकिस्तान में भारत के पूर्व हाई कमिश्नर रहे जी पार्थसारथी ने ट्रिब्यून में लिखा था कि पूर्व आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हामिद गुल ने इमरान खान की एंट्री कराई है और यह सच है कि पाकिस्तान सेना के समर्थन से ही इमरान खान की सरकार चल रही है. उन्होंने आगे लिखा था कि पाकिस्तान में अहम बदलाव देखने को मिलेंगे. सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा सितंबर 2022 में रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में वह अपना उत्तराधिकारी चुनेंगे. लेकिन इमरान खान चाहेंगे कि फैज हमीद नए सेना प्रमुख बनें ताकि उनका रास्ता आसान रहे और वे फिर से पीएम बन सकें. ऐसे हालात में सेना और इमरान सरकार में रार बढ़ने वाली है. ऐसे में बहुत संभव है कि पाकिस्तान में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन या सैन्य तख्तापलट हो. हम इसे तख्तापलट इसलिए कह रहे हैं क्यों कि भले ही इमरान के खिलाफ राजनीतिक रास्ते से अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है लेकिन बिना सेना की शह के ये संभव नहीं होगा.

पाकिस्तान में कब-कब सैन्य शासन रहा?

पाकिस्तान में 1956 से 1971, 1977 से 1988 तक और फिर 1999 से 2008 तक सैन्य शासन रहा है.

किस-किस ने किया तख्तापलट?

जनरल अयूब खान, जनरल जिया उल हक और जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान सरकार को गिराकर सैन्य शासन किया.

किन-किन की सरकारें तख्तापलट का शिकार हुईं? 

  • अक्टूबर 1958 में जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा की सरकार का तख्तापलट किया.

  • जनरल जिया उल हक ने 5 जुलाई, 1977 को सैन्य तख्तापलट किया और जुल्फिकार अली भुट्टो को प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटा दिया.

  • 12 अक्टूबर 1999 को जनरल परवेज मुशर्रफ के वफादार अफसरों ने पीएम नवाज शरीफ और उनके मंत्रियों को गिरफ्तार कर तख्तापलट किया.

अब कहानी विस्तार से...

पाकिस्तान को 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिली थी. लेकिन आजादी के 9 साल बाद तक पाकिस्तान में संविधान नहीं बन पाया था. उस दौर में वहां राजनीतिक अस्थिरता भी काफी थी. बिना संविधान और अस्थिर राजनीति के बीच पाकिस्तान में 4 प्रधानमंत्री, 4 गवर्नर जनरल और एक राष्ट्रपति ने देश पर शासन भी कर लिया था.

संविधान में थी प्रधानमंत्री को किसी भी वक्त बेदखल करने की ताकत

23 मार्च 1956 को पाकिस्तान में जो संविधान लागू हुआ था. जिसमें 58 (2 बी) में कुछ ऐसी बातें डाली गई थीं कि राष्ट्रपति वहां के प्रधानमंत्री को किसी भी वक्त बस यूं ही सत्ता से निकाल बाहर कर सकते थे. तब राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने इसी ताकत का इस्तेमाल कर चार प्रधानमंत्री का शिकार किया था. वो चार नाम ये रहे:

  • चौधरी मोहम्मद अली : 12 अगस्त 1955 से 12 सितंबर 1956

  • हुसैन शहीद सोहरावर्दी : 12 अक्तूबर 1956 से 17 सितंबर 11957

  • इब्राहिम इस्माइल चुंद्रीगर : 17 अक्तूबर 1957 से 16 दिसंबर 1957

  • फिरोज खान नून : 16 दिसंबर 1957 से 7 अक्तूबर 1958

17 अप्रैल से 12 अगस्त 1955 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे मोहम्मद अली बोगरा का इस्तीफा संविधान लागू होने से पहले लिया गया था.

पाकिस्तान में शुरुआती दौर में जिस तरह से प्रधानमंत्री बदल रहे थे उस बारे में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु से जुड़ी इस बात का किस्सा अक्सर दोहराया जाता है. पंडित नेहरु ने कहा था कि 'मैं तो इतनी जल्दी धोतियां भी नहीं बदलता जितनी जल्दी पाकिस्तान अपने प्रधानमंत्री बदल लेता है.'

जब शिकारी खुद शिकार हो गया, रातभर में पलटा पांसा

संविधान की ताकत से कई प्रधानमंत्रियों का शिकार करने वाले राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने 1958 में पाकिस्तान के संविधान को निरस्त करते हुए जनरल अयूब खान को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक बनाया था. लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को अपने अंदर समेटे जनरल अयूब खान ने महज कुछ ही सप्ताह में राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर मिर्जा की सरकार का तख्तापलट कर दिया. यह पहला मौका था जब पाकिस्तान सैन्य शासन के अधीन आया था.

सात और आठ अक्तूबर 1958 की दरमियानी शाम पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति जनरल इस्कंदर मिर्जा ने संविधान को निलंबित कर दिया था, असेंबली भंग कर दी थी और राजनीतिक पार्टियों को प्रतिबंधित करके पाकिस्तान के इतिहास का पहला मार्शल लॉ लगा दिया और उस वक्त के सेना प्रमुख जनरल अयूब खान को मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया था.

इस घटना के बाद अयूब खान को पाकिस्तान का राष्ट्रपति बनाया गया. यह पहला मार्शल लॉ आधिकारिक तौर पर 44 महीने तक चला था, लेकिन जनरल अयूब खान ने 1969 में ही पद छोड़ दिया और जनरल आगा मोहम्मद याह्या खान को अपना उत्तराधिकारी नामित किया. अयूब खान की तरह जनरल याह्या खान मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अयूब खान ने पूरे 9 साल पाकिस्तान पर राज किया था. उसके बाद जनरल याह्या खान ने सैन्य शासन किया. 1971 के युद्ध में भारत से मिली करारी हार के बाद जनरल याह्या खान अपने उत्तराधिकारी का चयन नहीं कर सके थे तब आम चुनावों में विजयी हुए जुल्फिकार अली भुट्टो के नाम अलावा कोई विकल्प नहीं था. याह्या खान ने 20 दिसंबर 1971 को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया.

भुट्टो से जिया उल ने छीना हक, दी मौत

जब 1973 में जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने जिया उल हक को सेना प्रमुख बनाया. समय बीता और पाकिस्तान ने 4-5 जुलाई 1977 के दरमियान दूसरा सैन्य तख्तापलट देखा जनरल जिया उल हक व उनकी सेना ने संसद को भंग कर दिया और भुट्टो को नजरबंद कर दिया. इसके बाद 4 अप्रैल, 1979 को भुट्टो को फांसी दे दी गई.

जिया उल द्वारा सत्ता संभालने के साथ ही पाकिस्तान में तीसरी बार मार्शल लॉ देखने को मिला. ये पाकिस्तान के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाला मार्शल लॉ था. दिसंबर 1985 में मार्शल लॉ को आधिकारिक तौर पर हटा लिया गया था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को जनरल जिया उल हक के हाथों अपदस्थ किए जाने के लगभग आठ महीने बाद 18 मार्च 1978 को लाहौर हाई कोर्ट ने उन्हें सजा-ए-मौत सुनाई थी.

जिया उल हक शुरू में पहले से बेहतर व ज्यादा निष्पक्ष चुनाव का वादा करके सत्ता में आया था, लेकिन जल्द ही यह पता चल गया था कि जिया उल हक का पद छोड़ने का कोई इरादा नहीं है. दिसंबर 1985 में मार्शल लॉ को आधिकारिक तौर पर हटा लिया गया था जिसके बाद पाकिस्तान के कई हिस्सों में हिंसा देखने मिली थी जोकि काफी भयावह थी. उस दौर में पाकिस्तान में काफी उथल-पुथल थी, जिया ने यह दिखावा किया कि सब कुछ नियंत्रण में है लेकिन हकीकत कुछ और ही थी. 17 अगस्त 1988 को बहावलपुर से उड़ान के दौरान उनके विमान में विस्फोट होने से उनकी मृत्यु हो गई. विमान हादसे में जिया उल हक की मौत हो गई, लेकिन पाकिस्तान में सैन्य शासन बदस्तूर जारी रहा.

इसके बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी दोबारा से सत्ता में आई और जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो को पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री घोषित कर दिया गया. बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री थी. इसके अलावा, वह मुस्लिम देश का नेतृत्व करने वाली पहली महिला थीं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शरीफ को मुशर्रफ ने सत्ता और देश से किया बेदखल

1988 से 1999 पाकिस्तान में तक चार सरकारें आईं और चली गईं. 1997 के आम चुनावों में जब नवाज शरीफ जीत के साथ प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने जनरल परवेज मुशर्रफ को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया था. 1998 के दौर में पाकिस्तान में परमाणु परीक्षण और कुछ हिस्सों में रक्तरंजित हिंसा की वजह से चिंता बढ़ने लगी थीं. अक्टूबर 1998 में प्रधानमंत्री ने सेना आलाकमान यानी जनरल पर जल्दी सेवानिवृत्ति के लिए दबाव डाला. 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने करगिल युद्ध को लेकर मुशर्रफ को आर्मी चीफ के पद से हटाने का फैसला किया था.

एक दिन जब जनरल परवेज मुशर्रफ श्रीलंका में थे, तब नवाज शरीफ ने उन्हें शक के आधार पर सेनाध्यक्ष के पद से हटा दिया. इसके बाद जनरल अजीज को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बना दिया गया. नवाज शायद ये नहीं जानते थे कि जनरल अजीज परवेज मुशर्रफ के ही आदमी हैं और फिर वही हुआ जिसका नवाज को डर था.

श्रीलंका से लौटते ही परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार का तख्तापलट कर दिया. मुशर्रफ ने नवाज शरीफ और उनके मंत्रियों को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया और सत्ता हथिया ली. फिर मुशर्रफ ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया. इसके बाद सन 2000 में सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को देश से बाहर भी करवा दिया. 2007 की शुरुआत में मुशर्रफ ने राष्ट्रपति पद के लिए फिर से चुनाव की मांग शुरू कर दी थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी थी. आखिरकार 2008 में आसिफ अली जरदारी के नए राष्ट्रपति बनने के साथ ही पाकिस्तान में आखिरी सैन्य तख्तापलट समाप्त हो गया.

मुशर्रफ और नवाज के बीच मतभेद आईएसआई के प्रमुख की नियुक्ति की वजह से शुरू हुए थे. नवाज ने लेफ्टिनेंट जनरल जियाउद्दीन बट को डीजी आईएसआई बनाया था, जिसकी वजह से मुशर्रफ को अपने पूर्व आईएसआई के करीबी सहयोगी लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान को मजबूरन चीफ ऑफ जनरल स्टाफ नियुक्त करना पड़ा था. बट पीएम नवाज के बहुत करीब आ गए थे और न केवल देश में बल्कि विदेशी दौरों पर भी उनके साथ रहते थे. इस घटना में आईएसआई प्रमुख को गिरफ्तार किया गया था. इस मतभेद के बाद 1999 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और बट दोनों को कर्नल शहीद ने गिरफ्तार कर लिया. पाकिस्‍तान के इतिहास में यह पहली बार हुआ था, जब किसी सेवारत आइएसआइ प्रमुख को गिरफ्तार किया गया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब इमरान को सता रहा है सत्ता परिवर्तन का डर

पाकिस्तान के अब तक के इतिहास में सैन्य और राजनीतिक वर्ग के बीच सत्ता के लिए खेल चलता रहा है. इसी टकराव की वजह से तीन बार देश में सैन्य तख्तापलट हो चुका है और देश को दशकों तक सैन्य शासकों के एकछत्र राज में रहना पड़ा है. वहां संवैधानिक ढांचे में अप्रत्यक्ष रूप से चुने हुए राष्ट्रपति के पास संसद को बर्खास्त करने का अधिकार था. इसी के चलते देश का सैन्य नेतृत्व अपनी मर्जी के मुताबिक लोगों के वोटों के आधार पर चुनी हुई सरकारों को बाहर का रास्ता दिखाता रहा है. 2008 में जरदारी राष्ट्रपति चुने गए और उन्होंने देश की व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव किया. एक संवैधानिक संशोधन के जरिए उन्होंने बतौर राष्ट्रपति संसद को भंग करने का अधिकार छोड़ दिया. इस संशोधन ने सेना को भी भविष्य में इस काबिल नहीं छोड़ा कि वह सैन्य शासन की सूरत में चुनी हुई संसद को भंग कर सके.

2013 में पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार पांच साल के नागरिक शासन के बाद तय समय पर चुनाव हुए थे. लेकिन इस समय जो महौल दिख रहा है उससे लगता है कि कहीं इमरान खान को समय से पहले सत्ता से हाथ न धोना पड़े.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×