वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दू प्रीतम
कोरोना वायरस की वैक्सीन जल्दी तैयार हो, इसके लिए कई देश तेजी से काम कर रहे हैं. WHO के मुताबिक दुनिया भर में 100 से ज्यादा वैक्सीन तैयार हो रहे हैं. अमेरिका, चीन, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन और भारत वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं.
वहीं, इजरायल और नीदरलैंड्स एंटीबॉडी आइसोलेट करने में कामयाब हुए हैं, जो मरीज के शरीर में वायरस का मुकाबला कर सकता है. जबकि वैक्सीन पहले से ही शरीर को बीमारी से लड़ने में सक्षम बनाता है.
वैक्सीन तैयार होने की प्रक्रिया कहां तक पहुंची है और कितनी जल्दी इसका नतीजा हमें देखने को मिल सकता है? इसे लेकर दुनिया के अलग-अलग देशों में क्या चल रहा है, जानते हैं.
1. पाइकोवैक वैक्सीन
चीन की सिनोवेक बायोटेक ने दावा किया है कि उनकी तैयार की गई वैक्सीन बंदरों पर प्रभावी साबित हुई है.
पाइकोवैक नाम की ये वैक्सीन शरीर में जाते ही इम्युन सिस्टम को एंटीबॉडी बनाने पर जोर देती है, और एंटीबॉडी वायरस को खत्म करने लगती है. दरअसल, इस वैक्सीन पर काम करने वाले रिसर्चर्स ने एक तरह के प्रजाति के बंदरों (रीसस मैकाक्स) को ये वैक्सीन लगाई, और फिर 3 सप्ताह बाद बंदरों को नोवेल कोरोना वायरस से इंफेक्ट करवाया. एक सप्ताह बाद, जिन बंदरों को भारी संख्या में वैक्सीन दी गई थी, उनके लंग्स में वायरस नहीं मिला, वहीं जिन बंदरों को ये वैक्सीन नहीं दी गई थी, वे कोरोना वायरस से ग्रसित हैं और उन्हें गंभीर निमोनिया हो गया है.
वैक्सीन डेवलपमेंट किस फेज में है?
कंपनी का कहना है कि वे वैक्सीन क्लीनिकल ट्रॉयल के फर्स्ट फेज में हैं. ये वैक्सीन अब इंसानों के शरीर पर टेस्ट किया जाएगा.
2. ChAdOx1 nCoV-19 वैक्सीन
यूके का नामी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी रिसर्च कर रहा है कि क्या एक वैक्सीन जो मूल रूप “मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम- MERS” के लिए डेवलप की गई थी, वो कोरोना वायरस के खिलाफ भी काम कर सकती है?
ChAdOx1 nCoV-19 वैक्सीन शरीर को वायरस के ‘स्पाइक्स’ को पहचानने में मदद करेगा जो प्रोटीन से बने होते हैं. कोरोना शरीर में संक्रमण फैलाने के लिए इसी स्पाइक प्रोटीन से सेल्स को जकड़ता है.
वैक्सीन डेवलपमेंट किस फेज में है?
पहले से ही MERS के लिए इस वैक्सीन को डेवलप किया जा रहा था, और अभी ये क्लीनिकल ट्रायल स्टेज में है. 800 लोगों पर इसका ट्रायल शुरू हो चुका है.
पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने ट्रायल शुरू होने के साथ ही भारत में इस वैक्सीन के निर्माण के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ पार्टनरशिप की है, ताकि पॉजिटिव रिजल्ट मिलते ही इसके इस्तेमाल में देरी न हो. उम्मीद है कि अगर इंसानों पर इसका ट्रायल सफल रहता है तो ये अक्टूबर तक बाजार में उपलब्ध होगी.
3. BNT162 वैक्सीन
जर्मनी में, BNT162 नाम के वैक्सीन को अमेरिका की फाइजर और जर्मन कंपनी बायोएनटेक डेवलप कर रही है.
वैक्सीन में जेनेटिक मटीरियल मेसेंजर आरएनए (एमआरएनए) का इस्तेमाल किया गया है. एमआरएनए एक जेनेटिक कोड है जो सेल को प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है कि वे वायरस प्रोटीन की नकल करें, जिससे इम्युन रिस्पॉन्स पैदा होता है.
वैक्सीन डेवलपमेंट किस फेज में है?
ये वैक्सीन अभी क्लीनिकल ट्रायल स्टेज में है. 12 पार्टिसिपेंट्स पर इसके असर को परखा जा रहा है. अगले स्टेज में 18 से 55 साल के करीब 200 लोगों में खुराक को बढ़ाया जाएगा और असर देखा जाएगा.
4. mRNA-1273 वैक्सीन
अमेरिका में, बायोटेक कंपनी मॉडर्ना के सहयोग से नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिजीज (NIAID) वैक्सीन mRNA-1273 बना रहा है. ये भी एमआरएनए आधारित वैक्सीन है.
वैक्सीन डेवलपमेंट किस फेज में है?
इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है.
5. इटली का वैक्सीन एडवांस स्टेज पर
टैकिज बॉयोटेक ने एक ऐसा वैक्सीन डेवलप किया है, जो टेस्टिंग के सबसे एडवांस स्टेज पर है. उन्होंने दावा किया है कि ये पहली बार है जब वैक्सीन ने कोरोना वायरस को न्यूट्रलाइज किया है. इस वैक्सीन से चूहों में एंटीबॉडी डेवलप किए गए हैं. ये डेवलप्ड एंटीबॉडी वायरस को सेल्स पर हमला करने से रोकती है. दावा किया गया कि ये ह्यूमन सेल्स पर भी ऐसे ही काम करेगी.
वैक्सीन डेवलपमेंट किस फेज में है?
टैकिज के सीईओ ने इटैलियन न्यूज एजेंसी एएनएसए को बताया कि इस वैक्सीन का जल्द ही ह्यूमन टेस्ट किया जाएगा.
भारत में भी वैक्सीन की तैयारी
इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने 9 मई को कहा कि पुणे की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) में अलग-अलग वायरस स्ट्रेन का इस्तेमाल कर एक स्वदेशी COVID-19 वैक्सीन तैयार करने के लिए भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (MMIL) के साथ साझेदारी की गई है.
वैक्सीन बनाने को लेकर चुनौती
अधिकांश प्रयास अभी क्लिनिकल ट्रायल या ह्यूमन ट्रायल के फेज I और II के बीच में हैं, जहां सैकड़ों स्वस्थ व्यक्तियों को एक्सपेरिमेंटल वैक्सीन लगाए जाते हैं, ताकि ये देखा जा सके कि वे सुरक्षित हैं और उनमें इम्युन रिस्पॉन्स देखने को मिल रहा है या नहीं. ट्रायल के कुल 4 फेज होते हैं.
फेज III - में एक कंट्रोल्ड ग्रुप भी शामिल होता है. जिन्हें वैक्सीन लगाया गया और जिन्हें नहीं लगाया गया यानी कंट्रोल्ड ग्रुप के बीच तुलना होती है. इन्हें एक ऐसे वातावरण में रखा जाता है जहां वायरस अभी भी फैल रहा है. असली चुनौती इस फेज में होती है.
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