स्ट्रोक एक मेडिकल स्थिति है जब मस्तिष्क के किसी हिस्से को खून कम पहुंचता है या बाधित होता है. इससे मस्तिष्क के टिश्यू को ऑक्सीजन और पोषण नहीं मिलते हैं. इसकी आवश्यकता इसके काम करने के लिए होती है. नतीजा यह होता है कि मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती हैं. स्ट्रोक का कारण रक्त वाहिनी में बाधा (इशेमिक स्ट्रोक) या लीकेज (हेमोरेज स्ट्रोक) है.
स्ट्रोक के सबसे आम लक्षणों में शामिल हैं – बोलने में अस्पष्टता, चेहरे सुन्न होना, चलने में असुविधा, सांस लेने में असुविधा, चिड़चिड़ापन और भ्रम.
स्ट्रोक के जोखिम कारक
कुछ स्थितियां पहले से मौजूद होती हैं, जिन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इनमें शामिल हैं:
तनाव और हाइपरटेंशन– तनाव से उच्च रक्तचाप हो सकता है, जिसका धमनियों पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है और इस कारण स्ट्रोक आ सकता है. हाइपरटेंशन के कारण धमनियां बाधित हो सकती हैं या फट सकती हैं, जो स्ट्रोक का कारण बन सकता है.
खून के थक्के जमने का इतिहास– क्लॉटिंग (खून के थक्के जमने) का निजी या पारिवारिक इतिहास स्ट्रोक के लिए एक गंभीर जोखिम कारक है.
जीवनशैली से संबंधित आदतें– जीवनशैली से संबंधित खराब आदतें जैसे जंक भोजन और धूम्रपान से धमनियां जाम हो सकती हैं, जिससे स्ट्रोक या कार्डियोवैस्कुलर मामलों की आशंका बढ़ जाती है.
हृदय की धड़कन के मुद्दे– हृदय की धड़कन (रिद्म) से संबंधित मामले जैसे एट्रियल फिब्रिलेशन में हृदय के हिस्से जैसे बाएं एट्रियल अपेंडेज में खून के थक्के बन सकते हैं. यह थक्का बाद में किसी धमनी में बढ़ सकता है और स्ट्रोक का कारण बन सकता है; इस स्थिति में मेडिकल उपचार, अलग करने और यहां तकि उपकरण से हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है ताकि अपेंडेज को बंद किया जा सके.
स्ट्रोक के संकेत वाले किसी व्यक्ति को चिकित्सीय सहायता देना महत्वपूर्ण है और इसमें अंग्रेजी के चार अक्षरों एफ, ए, एस, और टी यानी फास्ट “F.A.S.T” को याद रखा जाए.
F से फेस यानी चेहरा. मरीज से मुस्कुराने के लिए कहिए.
A से आर्म्स यानी बांह. उससे अपने दोनों हाथ ऊपर करने के लिए कहिए.
S से स्पीच यानी वाणी. उसे कुछ दोहराने के लिए कहिए.
T से टाइम यानी समय. अगर वह ये काम नहीं कर पाता है तो तुरंत डॉक्टर को बुलाने का समय है.
स्ट्रोक भारत में मौत के अग्रणी कारणों में से एक है. इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन के अनुसार गुजरे कुछ दशक में स्ट्रोक के मामले लगभग दूने हो गए हैं और हर साल करीब 18 लाख लोग स्ट्रोक के शिकार होते हैं. भारत में स्ट्रोक के मरीजों की संख्या में वृद्धि चिंताजनक है, लेकिन इसका प्रबंध जीवनशैली से संबंधित आदतों में सुधार और स्वस्थ आदत अपनाकर किया जा सकता है.
स्ट्रोक की रोकथाम
नियमित व्यायाम: शारीरिक निष्क्रियता और हाइपरटेंशन स्ट्रोक के अग्रणी रिस्क फैक्टर्स में हैं. दोनों का नियमन नियमित शारीरिक व्यायाम से किया जा सकता है. हालांकि इसके लिए पहले डॉक्टर से सलाह कर लेनी चाहिए.
स्वस्थ्य आहार: मुख्य रूप से कम वसा वाले फल सब्जी आधारित डायट के बारे में जाना जाता है कि ये कोरोनरी और वैस्कुलर स्थितियों का बढ़ना धीमा करता है और यह लोगों को अपना वजन नियंत्रित करने में भी सहायता कर सकता है.
शराब पीने पर नियंत्रण और धूम्रपान छोड़ना: शराब पीना नियंत्रित करके और धूम्रपान छोड़कर धमनी की बीमारी और इस तरह स्ट्रोक्स कम करने में सहायता मिलती है.
तनाव: हाइपरटेंशन वाले व्यक्ति को स्ट्रोक आ सकता है. ऐसा व्यक्ति अगर यह सुनिश्चित करे कि वह तनाव कम करेगा तो स्ट्रोक को रोकने में काफी मदद मिल सकती है.
परिवार से जुड़ाव: अमेरिकी जर्नल ऑफ लाइफस्टाइल साइंसेज के अनुसार परिवार और मित्रों के साथ जुड़े रहने से तनाव कम होता है और इस तरह स्ट्रोक का जोखिम भी.
इसके जोखिम रोकने के कुछ नए तरीके भी हैं जैसे एंटी कोगुलैन्ट मेडिकेशन रीजिम या डिवाइस इंटरवेंशन जैसे ऊपरी चैम्बर और हृदय के बीच खुली छोटी सी जगह को बंद करना. इसे पेटेंट फोरामेन ओवले (पीएफओ) या लेफ्ट एट्रियल अपेंडेज की बंदी कहा जाता है. इनमें से ज्यादातर अपेक्षाकृत सरल प्रक्रियाएं हैं और इसके लिए एक दिन अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है.
वैसे तो स्ट्रोक बढ़ती मेडिकल समस्या है, जिस पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है लेकिन एकदम जमीनी स्तर पर और जागरुकता होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोगों को स्ट्रोक के मरीजों का प्राथमिक उपचार करना आता हो.
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचना जानकारी के लिए ही है और इसका मकसद कोई मेडिकल या चिकित्सीय सलाह देना नहीं है. ज्यादा जानकारी के लिए अपने चिकित्सक से संपर्क करें.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)