हिंदी न्यूज चैनल देखने वालों से मुझे बड़ी सिम्पैथी है. तीन दिन तक उन्हें हिंदी न्यूज चैनलों ने बंधक बना लिया. 6 नवंबर को छोटी दिवाली से बड़ी दिवाली और फिर गोवर्धन पूजा तक न्यूज चैनल भक्तिरस से सराबोर रहे और लोग न्यूज के लिए तरस गए.
ऐसा नहीं था कि दुनिया रुकी थी. जिस वक्त न्यूज चैनल कीर्तन कर रहे थे, तब कर्नाटक उपचुनाव में बड़ा उलटफेर हो गया. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी ने एक सदन में बहुमत खो दिया. 2019 चुनाव के लिए बीजेपी सरकार के खिलाफ विपक्ष एकजुट होने लगा. लेकिन न्यूज चैनलों में तो ढोल-मजीरा और झांकी ही चलती रही.
‘दुनिया में कुछ होता रहे, हम कीर्तन करेंगे’
हिंदी न्यूज चैनल में एंकर, रिपोर्टरों का तो क्या कहना, वो गा-गाकर कमेंट्री कर रहे थे या फिर उन्होंने ये सोच लिया था कि जो खबर हम दिखाते हैं, वही खबर है.
मुझे अपने एक मित्र की कॉलेज के दिनों की बात याद आ गई, हम जब क्रिकेट खेलते थे. उस वक्त उसे फील्डिंग से डर लगता था, इसलिए जब बॉल उसकी तरफ आती, तो वो अपनी जगह पर खड़े होकर आंख बंद कर लेता. उसे लगता कि इस तरह वो बच जाएगा. हिंदी न्यूज चैनलों ने भी देश-दुनिया की खबरों की तरफ से आंखें बंद कर ली थीं.
हिंदीभाषी दर्शकों को आखिर न्यूज चैनल क्या समझते हैं?
क्या हिंदी न्यूज चैनल ये समझते हैं कि उनके दर्शकों को भक्ति, भजन और तीर्थ-स्थानों के अलावा किसी और बात में इंटरेस्ट नहीं है? भक्ति का इतना ओवरडोज क्यों है.
जब न्यूज चैनल भक्तिरस में तल्लीन थे, तो देश-दुनिया में क्या-क्या हुआ?
हिंदी चैनलों के लिए दुनिया ठहरी हुई थी. चैनल त्रेता युग में चले गए थे, लेकिन दुनिया चल रही थी.
- कर्नाटक में 5 उपचुनाव के नतीजे उलटफेर कर चुके थे.
- 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी गठबंधन का पहला बड़ा एक्सपेरिमेंट कामयाब रहा
- बीजेपी ने कर्नाटक में सबसे मजबूत किला बेल्लारी खो दिया था.
- अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में हार चुकी थी.
- गुस्से में ट्रंप CNN के एक रिपोर्टर को बुरी तरह डांट भी चुके थे
लेकिन तब भी हिंदी न्यूज चैनल बिना परवाह किए मंजीरा बजाए जा रहे थे.
हिंदी न्यूज चैनलों ने क्या दिखाया
6 नवंबर को जैसे ही कर्नाटक में काउंटिंग और अमेरिका में वोटिंग शुरू हुई, तभी हिंदी न्यूज चैनल त्रेतायुग मोड में चले गए. भक्तिरस से सराबोर होकर. एंकर और रिपोर्टरों का बस कीर्तन करना ही बाकी रह गया था. वैसे वो जो कह रहे थे, वो कीर्तन जैसा ही कुछ था. जैसे अयोध्या में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनेगा. आस्था का मेला है. राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट.
सुबह से सीधे अयोध्या से लाइव प्रसारण दायें रिपोर्टर, बाएं रिपोर्टर, स्टूडियो में एंकर दे दनादन जो मन में आया वो बोला गया.
रावण और मेघनाद से रिपोर्टर का संवाद
रिपोर्टर ने रावण और मेघनाद से संवाद भी कर लिया और आंसू छलकाते हुए बोला, देखिए कितना दिलचस्प है कि रावण और मेघनाद भी राम मंदिर चाहते हैं. लेकिन साथ-साथ लोगों को भड़काने की पक्की व्यवस्था होती रही. जैसे हिंदुओं की आस्था सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं सुनता और पूरे देश के लोग राम मंदिर की मन्नत मांग रहे हैं.
अगले दिन यानी 7 नवंबर को भी लोगों को आस्था और भक्ति का डोज ही मिला. प्रधानमंत्री केदारनाथ पहुंचे, तो वहां की महिमा, बर्फ की सफेदी का रिकॉर्ड बजने लगा. एंकर और रिपोर्टर की कमेंट्री वही थी, बस अब राम की जगह शिव ने ले ली थी. शाम को सब जगह दिवाली चलने लगी.
मॉरल ऑफ द स्टोरी
मॉरल ऑफ द स्टोरी यही है कि हिंदी न्यूज चैनल शायद यही समझते हैं कि हिंदी भाषी दर्शकों के जीवन में मंदिर, धार्मिक कहानियां, पूजा का मुहूर्त, अविश्वसनीय और अकल्पनीय चमत्कार के अलावा कुछ नहीं है.
क्या न्यूज चैनलों को लगता है कि हिंदीवाले हैं, इन्हें हम वही दिखाएंगे, जो हमारी मर्जी है. ये हिंदी वाले अभी मैच्योर नहीं हुए हैं? हम खबर नहीं दिखाएंगे, तो इन्हें कुछ पता ही नहीं चलेगा. लेकिन नहीं जनाब, जमाना बदल गया है. आप नहीं दिखाएंगे, तो भी लोगों को पता चल जाएगा.
सभी न्यूज चैनल को पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की बात याद रखनी चाहिए, “सत्ता का खेल चलता रहेगा, सरकारें आएंगी जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी, लेकिन देश अमर रहना चाहिए देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए”
और लोकतंत्र अमर रखने के लिए मीडिया भी जिम्मेदार होना चाहिए.
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