दिल्ली के जहांगीरपुरी हिंसा (Jahangirpuri Violence) के बाद MCD ने अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई करते हुए इलाके की कई दुकानों को बुलडोजर से गिरा दिया. रोकिया कहती हैं कि मेरी भी दुकान गिरा दी गई है. मेरे तीन बच्चे हैं. इस बेरोजगारी के जमाने में दिन भर में 500 रुपए कमा लेती थी, जिससे बच्चों और परिवार का खर्च चलता था.
'रेहड़ी लगाने के लिए उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने दिया था लाइसेंसे'
रुकैया कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले ही मेरी दुकान तोड़ दी गई. हालांकि, मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन पुलिस वाले मुझे जाने नहीं दिए. मेरे पास दुकान के लिए उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने लाइसेंस भी दिया था. उस समय मुझे कहा गया था कि अगर इसे दिखा दोगे तो कोई भी तुम्हारी दुकान नहीं तोड़ेगा.
रिहाना बेबी जिनकी उम्र 44 साल है. वो कहती हैं कि मेरे पति की तबीयत खराब रहती है. 17 साल से वो बीमार हैं, वो कुछ काम नहीं कर पाते हैं. मैं बच्चे को लेकर दुकान लगाती हूं, जिससे परिवार का खर्च चलता है. वो कहती हैं कि सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक पूड़ी-सब्जी की दुकान लगाती हूं.
'हमारे पति 17 साल से बीमार हैं, रेहड़ी एक सहारा थी वो भी चली गई'
रिहाना कहती हैं कि हमें कुछ नहीं पता था कि दुकानों को तोड़ा जाएगा, इसलिए हम अपनी रेड़ी नहीं हटा पाए. जब सुबह 9 बजे पता चला तो हमने पुलिस वाले को बोला की सर हमें जाने दो हमारी रेड़ी है हम हटा लेंगे, वही हमारी रोजी रोटी है. लेकिन, पुलिस वाले ने कहा कि हम नहीं जाने देंगे क्योंकि हमारे ऊपर भी हमारे ऑफिसर हैं, हमारी नौकरी चली जाएगी. रिहाना कहती हैं कि तोड़ने के बाद भी हमारी रेड़ी नहीं लाने दिए वो अभी तक वहीं पड़ी हुई है.
'हम रोज कमाने खाने वाले हमारा क्या कसूर?'
फरीद अहम की भी दुकान गिरा दी गई है. फरीद जहांगीरपुरी इलाके में चिकन कॉर्नर का काम करते थे. वो कहते हैं कि बिना नोटिस दिए ही दुकान उठाकर सुबह लेकर चले गए. इस बेरोजगारी के समय 4 महीने से हम रेड़ी लगा रहे थे, दिन भर में 400-500 कमा लेते थे, तो घर का खर्च चल जाता था. अब तो रेडी भी चली गई और कमाई भी. फरीद कहते हैं कि इसमें उनका नुकसान हो रहा है जो इस दंगे में शामिल ही नहीं थे, बताइए हमारा क्या कसूर है, हमारी तो रोजी रोटी छिन गई.
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