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हरियाणा: लखमी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी में फैकल्टी, छात्र और मैनेजमेंट में जंग क्यों?

पक्षपात, शैक्षणिक सत्र में देरी और विरोध– हरियाणा की स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स संकट में है.

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(*अनुरोध पर कुछ नाम बदल दिए गए हैं.)

दिल्ली के उत्तर-पश्चिम में 70 किलोमीटर दूर हरियाणा के रोहतक में शहर के बीचो-बीच स्थित दादा लखमी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स (DLCSUPVA)– फिल्म और टेलीविजन स्टडी का उत्तर भारत का इकलौता सरकारी संस्थान है. इसके अलावा इसमें डिजाइन, फाइन आर्ट्स और आर्किटेक्चर की पढ़ाई के तीन और संस्थान हैं.

36 एकड़ के विशाल परिसर में लाल बलुआ पत्थर की इमारतों वाले विश्वविद्यालय के लॉन में 2 मई 2023 से रोजाना, कम से कम 17 प्रोफेसर एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर बैठते हैं, पहले दोपहर के खाने के दौरान 1-1.30 बजे तक, और फिर कक्षाओं के खत्म होने के बाद शाम 5 से 6 बजे तक.

फैकल्टी की कई मांगों और शिकायतों में उनकी तरफ से आरोप लगाया गया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) से अनुमोदित वेतनमान और एक दशक से ज्यादा समय से पदोन्नति नहीं दे रहा है.

आंदोलनकारी प्रोफेसरों में से एक दुष्यंत कुमार आरोप लगाते हैं, “10 सालों से ज्यादा समय से मैं UGC द्वारा अनुमोदित वेतनमान, जो मेरा हक है, उसका आधा वेतन पा रहा हूं.” वह कहते हैं, “हमारी मांगों को सुनने के बजाय, वे (विश्वविद्यालय प्रशासन) अब हमें कारण बताओ नोटिस दे रहे हैं और हमें अदालतों में घसीट रहे हैं. वे हमें परेशान करने के लिए हर हथकंडे का सहारा ले रहे हैं.”

शिक्षक संघ ने 23 अप्रैल 2023 को विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया है कि सितंबर 2022 के बाद की गई नई भर्तियों में UGC द्वारा अनुमोदित वेतनमान और सातवें CPC के अनुसार वेतन दिया गया, लेकिन फाउंडर फैकल्टी मेंबर्स की उपेक्षा की गई.

पत्र में कहा गया है, “एक दशक से ज्यादा समय से, हम सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न झेल रहे हैं और हमारा परिवार भी हमारे साथ यह सब झेल रहा है. यह निराशाजनक है कि नई भर्ती हुए लोगों को UGC द्वारा अनुमोदित वेतनमान और सातवें CPC के अनुसार वेतन दिया जा रहा है, जबकि फाउंडिंग फैकल्टी मेंबर्स को नजरअंदाज कर दिया गया है और योजना से बाहर रखा गया है.”

हालांकि, दुष्यंत कुमार और दूसरे शिक्षक जो बता रहे हैं, वह सिर्फ एक बानगी भर है. द क्विंट ने कई मौजूदा और पूर्व छात्रों और फैकल्टी मेंबर से बात की, और कई दस्तावेजों का अध्ययन किया, जिसमें बुनियादी ढांचे और संसाधनों की गंभीर कमी, शैक्षणिक सत्र में देरी, प्रबंधन के ऊंचे पदों पर नियुक्तियों में पक्षपात के आरोप और विश्वविद्यालय में समस्या बने दूसरे मुद्दों के अलावा, परिसर में विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों, फैकल्टी सदस्यों और छात्रों को प्रशासन द्वारा डराने-धमकाने की कथित कोशिशों का पर्दाफाश होता है.

यह रिपोर्ट एक-एक करके इनमें से हर समस्या पर गहराई से विचार करती है.

हरियाणा: लखमी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी में फैकल्टी, छात्र और मैनेजमेंट में जंग क्यों?

  1. 1. लेकिन सबसे पहले, यूनिवर्सिटी की पृष्ठभूमि

    दादा लखमी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स (The Dada Lakhmi Chand State University of Performing and Visual Arts) की स्थापना 5 अगस्त 2014 को चार सरकारी टेक्निकल इंस्टीट्यूट्स का विलय करके की गई थी, इनके नाम हैं:

    • स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स (SIFA)

    • स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (SID)

    • स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फिल्म एवं टेलीविजन (SIFT)

    • स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (SIUPA)

    विरोध करने वाले फैकल्टी मेंबर्स को पहले उस समय के राज्य सरकार के वेतनमान के हिसाब से इन तकनीकी संस्थानों के लिए नियुक्त किया गया था. बाद में इन्हें भले ही 2014 में विश्वविद्यालय द्वारा अपने साथ मिला लिया गया, लेकिन उनका वेतनमान नहीं बढ़ाया गया.

    द क्विंट से बात करते हुए विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर (VC) गजेंद्र चौहान दावा करते हैं कि उन्होंने खुद हरियाणा सरकार से इन प्रदर्शनकारी शिक्षकों को UGC द्वारा अनुमोदित वेतनमान देने का अनुरोध किया था.

    चौहान बताते हैं, “कुलपति के रूप में कामकाज संभालने के बाद मैं खुद विभागीय अधिकारियों के पास गया और भले ही उन्हें यूजीसी-अनुमोदित वेतनमान नहीं मिलना चाहिए क्योंकि उन्हें तकनीकी रूप से राज्य सरकार के वेतनमान के अनुसार नियुक्त किया गया था, फिर भी मैंने अधिकारियों से मेरे नाम पर एक पर्सनल फेवर का अनुरोध किया था."

    अगर वीसी चौहान ने मामला सुलझा दिया था तो फैकल्टी सदस्य अब भी क्यों विरोध कर रहे हैं?

    विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ के अध्यक्ष और 2013 से फिल्म और टेलीविजन डिपार्टमेंट में फैकल्टी मेंबर इंद्रोनिल घोष समझाते हैं, “यह बहुत सीधी सा मामला है. यह सच है कि सरकारी तकनीकी संस्थानों में, हमें राज्य सरकार के पे ग्रेड के अनुसार नियुक्त किया गया था. जब इन संस्थानों का एक विश्वविद्यालय बनाने के लिए विलय कर दिया गया तो हमने UGC का अनुमोदित वेतनमान देने की मांग की. UGC का वेतनमान ज्यादा है. नियुक्ति के समय हममें से ज्यादातर राज्य सरकार की व्यवस्था के अनुसार 7,600 पे ग्रेड पर थे. हालांकि UGC सिस्टम में इसके बराबर कोई वेतनमान नहीं था– वेतनमान या तो कम (6,000 पे ग्रेड) था या ज्यादा (7,000 और 8,000 पे ग्रेड) था.”

    घोष कहते हैं, “अगर हम 7,600 वेतनमान पर थे, तो हमें 8,000 वेतनमान पर ले जाया जाना चाहिए. इसके बजाय वे हमें पीछे धकेलते हुए 6,000 पे ग्रेड पर वापस जाने को कह रहे हैं. वे हमें कैसे डाउनग्रेड कर सकते हैं? यह सिर्फ वित्तीय नुकसान नहीं है. यह एक्सपीरियंस का भी नुकसान है क्योंकि ये पे ग्रेड अनुभव के अलग-अलग स्तर के हिसाब से भुगतान करते हैं.”

    इस समय विश्वविद्यालय में 14 प्रोग्राम्स में अंडर ग्रेजुएट डिग्री दी जाती है; फाइन आर्ट्स फैकल्टी में चार, डिजाइन फैकल्टी में चार, फिल्म और टेलीविजन फैकल्टी में पांच, और अर्बन प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर प्रोग्राम में एक.

    इसके अलावा यहां चार पोस्ट ग्रेजुएट कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. इनमें मास्टर इन फैशन डिजाइन, मास्टर ऑफ एप्लाइड आर्ट्स, मास्टर इन मास कम्युनिकेशन (मीडिया प्रोडक्शन) और मास्टर ऑफ प्लानिंग (शहरी और क्षेत्रीय) शामिल हैं. हालांकि, मास्टर इन मास कम्युनिकेशन पाठ्यक्रम 2023-24 सत्र से बंद कर दिया गया है.

    रोहतक से लोकसभा के पूर्व सांसद और हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुडा के बेटे दीपेंद्र हुडा का सपना माने जाने वाले इस विश्वविद्यालय की स्थापना प्रदेश को कला और संस्कृति के अध्ययन के एक केंद्र के रूप में विकसित करने के मकसद के साथ की गई थी.

    विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ के अध्यक्ष और 2013 से फिल्म और टेलीविजन विभाग के एक फैकल्टी इंद्रनील घोष कहते हैं, “यह अफसोसजनक है कि एक ऐसा विश्वविद्यालय जिसमें कला और संस्कृति के अध्ययन में अगुवा होने की क्षमता थी, वह खुद अपनी तबाही में लगा है. जिस साल इसकी स्थापना हुई थी, उसी साल से यह जगह विरोध प्रदर्शनों के लिए मशहूर रही है… चाहे वजह कोई भी रही हो. शिक्षकों द्वारा वेतनमान को लेकर, छात्रों द्वारा पाठ्यक्रम में बदलाव और बुनियादी ढांचे की कमी को लेकर या प्रशासन द्वारा ऊंचे पदों पर लोगों की नियुक्ति करते समय मानदंडों का उल्लंघन करने पर विरोध प्रदर्शन.’'

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  2. 2. कई आरोप और राज्यपाल के नाम पत्र

    विरोध प्रदर्शन के 60 दिन बाद, इंद्रोनिल घोष और दूसरे प्रदर्शनकारी फैकल्टी मेंबर्स ने हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को एक पत्र लिखा. 17 फैकल्टी मेंबर्स के दस्तखत वाले इस पत्र की एक प्रति क्विंट के पास है. इस पत्र में कई आरोप लगाए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:

    • विश्वविद्यालय द्वारा भर्ती किए गए 65 साल से ज्यादा की उम्र के ‘संविदा’ कर्मचारियों के कई उदाहरणों के बारे में बताया गया है. इनमें वीपी नांदल (वर्तमान में प्रशासन के सलाहकार के मामलों का प्रबंधन, वाइस चांसलर के स्पेशल ड्यूटी ऑफिसर, परीक्षा नियंत्रक और रजिस्ट्रार), राजबीर हुडा (2018 से विश्वविद्यालय के विजिटिंग फैकल्टी), प्रेम सिंह (2018 में लाइब्रेरी में कंसल्टेंट नियुक्त. जुलाई 2023 में उन्हें वाइस चांसलर गजेंद्र चौहान का अकादमिक सलाहकार नियुक्त किया गया), और सुनील कुमार (विजुअल आर्ट डिपार्टमेंट फैकल्टी नियुक्त) सहित दूसरे कई शामिल हैं.

    विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)– शिक्षा मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय, जिस पर भारत में उच्च शिक्षा के मानकों में तालमेल, निर्धारण और पालन कराने की जिम्मेदारी है– की तरफ से तय किए मानदंडों के अनुसार UGC से संबद्ध विश्वविद्यालयों में फैकल्टी मेंबर के लिए रिटायरमेंट की उम्र 62-65 साल के बीच होनी चाहिए.

    वाइस चांसलर चौहान ने द क्विंट को बताया कि प्रोफेसरों के आरोपों में ज्यादा दम नहीं है. उन्होंने कहा, “इन लोगों को एडवाइजर और कंसल्टेंट के तौर पर नियुक्त किया गया है, न कि ‘संविदा कर्मचारी’ के रूप में, जैसा कि फैकल्टी ने आरोप लगाया है. इनके पास काम का काफी अनुभव है और कोई भी नियम किसी को भी इन्हें काम पर रखने से नहीं रोकता है.”
    • फैकल्टी ने विश्वविद्यालय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल में नियमित फैकल्टी मेंबर की सही नुमाइंदगी नहीं होने का भी आरोप लगाया है.

    UGC के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक्जीक्यूटिव काउंसिल– किसी विश्वविद्यालय के कामकाज को चलाने वाला कार्यकारी निकाय– में कम से कम 9 और ज्यादा से ज्यादा 15 सदस्य होने चाहिए. इनमें वाइस चांसलर, स्कूल ऑफ स्टडीज के डीन में से चार सदस्य (VC द्वारा वरिष्ठता के अनुसार रोटेशन से नियुक्त), एक प्रोफेसर जो वरिष्ठता के अनुसार (VC द्वारा नियुक्त) रोटेशन से डीन नहीं है, वरिष्ठता के अनुसार (VC द्वारा नियुक्त) रोटेशन से नियुक्त एक एसोसिएट प्रोफेसर, राज्य सरकार का एक प्रतिनिधि और रजिस्ट्रार शामिल है.

    हालांकि, VC चौहान इस आरोप का खंडन करते हुए दावा करते हैं कि फैकल्टी कोऑर्डिनेटर या अकादमिक वेलफेयर के डीन को सभी बैठकों में बुलाया जाता है. वह कहते हैं, “मैं घूम-घूम कर हर एक को निमंत्रण नहीं बांट सकता. बैठक में क्या चर्चा हुई, इसके बारे में दूसरों को बताना फैकल्टी कोऑर्डिनेटर का काम है.”

    अक्टूबर 2022 में हुई एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक के मिनट्स, जिसे क्विंट ने देखा है, के अनुसार अकादमिक वेलफेयर के डीन, डॉ. अजय कौशिक को बैठक में आमंत्रित किया गया था. हालांकि, किसी भी फैकल्टी मेंबर या प्रतिनिधि के पास परिषद में स्थायी स्थान नहीं था.

    राज्यपाल को लिखे पत्र में यह भी आरोप लगाया गया:

    • UGC और हरियाणा सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार चयन समिति में विभाग के प्रमुख (HoD) की मौजूदगी के बिना और हरियाणा सरकार के नियमों के तहत सेवा के लिए स्वीकार्य उम्र वाले एक नियमित रजिस्ट्रार के बिना नए फैकल्टी मेंबर्स की भर्ती की गई.

    • दोबारा काम पर रखे गए कर्मचारियों के अनुबंध को तीन साल के लिए बढ़ाने के उदाहरण बताए गए हैं. विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार, वाइस चांसलर सिर्फ छह महीने के लिए नियुक्ति कर सकता है या अनुबंध को बढ़ा सकता है.

    VC चौहान ने द क्विंट को बताया, “नियुक्तियों में अनियमितता की कोई गुंजाइश नहीं है. ये सभी राज्य सरकार की तरफ से भेजे गए पर्यवेक्षक की उपस्थिति में की गई हैं. अगर आरोप सच हैं, तो हम जेल भेजे जा सकते हैं.”

    वह बताते हैं, “एक्जीक्यूटिव काउंसिल ने वाइस चासलर को दोबारा काम पर रखे गए कर्मचारियों के अनुबंध को तीन बार बढ़ाने के लिए अधिकृत किया– पहले 2018 में दो साल के लिए, फिर 2020 में तीन साल के लिए, और अंत में 2022 में पांच साल के लिए.”

    विरोध करने वाले फैकल्टी मेंबर्स में से एक, मितेश* ने बताया, “जब विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही थी, तब यहां पढ़ाए जाने वाले कई कोर्स हरियाणा के किसी दूसरे विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाए जाते थे. अर्बन प्लानिंग और आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट को छोड़कर, दूसरे सभी कोर्स के लिए फैकल्टी मेंबर्स को देश के अलग-अलग हिस्सों से भर्ती किया गया था, जिसमें पश्चिम बंगाल, केरल और दिल्ली सहित अन्य राज्य शामिल हैं.”

    प्रोफेसर कहते हैं, “हालांकि, समस्या यह है कि यह एक बेहद क्षेत्रवादी समाज है. यहां जाति की मजबूत पकड़ है. इसलिए लोग असरदार पदों पर आए और पक्षपात में शामिल रहे. यहां तक कि वाइस चांसलर ने भी इसे बढ़ावा दिया.”

    2014 में अपनी स्थापना के बाद से विश्वविद्यालय में गजेंद्र चौहान समेत चार वाइस चांसलर हो चुके हैं. चौहान ने दिसंबर 2021 में पद संभाला था. चौहान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्य हैं और पूर्व टीवी एक्टर जिन्हें ऐतिहासिक टीवी सीरियल महाभारत में युधिष्ठिर के किरदार के लिए जाना जाता है. 2015 में पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) के अध्यक्ष के रूप में चौहान का कार्यकाल विवादास्पद रहा.

    उन्हें जून 2015 में मार्च 2014 के पूर्ववर्ती प्रभाव से तीन साल के लिए इस पद पर नियुक्त किया गया था. हालांकि, उनकी नियुक्ति पर FTII के छात्रों और पूर्व छात्रों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया, जिनको लगता था कि यह सरकार का “संस्थान का भगवाकरण” करने की कोशिश है. विरोध की वजह से वह आखिर में जनवरी 2016 में ही पद संभाल सके और उन्हें सिर्फ 15 महीने का कार्यकाल मिला.

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  3. 3. ‘हाथ से मौका गया’: छात्रों ने फैकल्टी और प्रशासन को बराबर का जिम्मेदार ठहराया

    जुलाई 2018 में, जब निशा* ने 12वीं कक्षा पास करने के बाद, चित्रकला में स्पेशलाइजेशन के लिए स्नातक की डिग्री हासिल करने के वास्ते विजुअल आर्ट चुनने का फैसला लिया, तो उनके लिए चुनने को बहुत ज्यादा सरकारी विश्वविद्यालय नहीं थे.

    उन्होंने द क्विंट को बताया, “मैं हरियाणा के भिवानी जिले के एक मामूली गांव से आती हूं. हमारे इलाके में लड़कियों की पढ़ाई कई बातों से तय होती है. सबसे पहले तो, परिवार अपनी लड़कियों को कॉलेज जाने या पेशेवर डिग्री हासिल करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं. फिर ऐसे भी परिवार हैं जो लड़कियों को इस शर्त पर उच्च शिक्षा हासिल करने देते हैं कि उनको मेडिकल, इंजीनियरिंग और टीचिंग जैसे विषय चुनने होंगे. लेकिन सबसे बड़ा कारक जो यह तय करता है कि हरियाणा में एक लड़की कॉलेज जाएगी या नहीं, वह है विश्वविद्यालय परिसर और उनके घर के बीच की दूरी.”

    निशा जैसे बहुत से स्टूडेंट्स के लिए जब फिल्मों, डिज़ाइन, या विजुअल आर्ट की पढ़ाई की बात आती है, तो अभी भी उनकी इकलौती पसंद DLCSUPVA बनी हुई है.

    निशा कहती हैं, “विजुअल आर्ट्स के ज्यादातर सरकारी कॉलेज और विश्वविद्यालय महाराष्ट्र (जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स), पश्चिम बंगाल (रवींद्र भारती विश्वविद्यालय), और गुजरात (महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी) जैसे राज्यों में हैं. मेरे माता-पिता के लिए राहत की बात थी कि हमारे पास हमारे अपने राज्य में एक यूनिवर्सिटी है और यही वजह है कि वे मुझे मेरे सपनों का कोर्स पूरा करने देने के लिए राजी हुए.”

    18 अगस्त 2018 को उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने के लिए पहली बार परिसर में कदम रखा— और यहीं पर निशा के सपनों की दौड़ दम तोड़ गई.

    “ग्रेजुएशन का पहला साल बहुत अच्छा था. हमारे पास वर्कशॉप और सेमिनार थे जहां देश और विदेश से कलाकार आते थे और अपने काम के बारे में बात करते थे. हमारी दूसरे विभागों के स्टूडेंट्स के साथ भी हमेशा बातचीत होती थी. आर्ट की पृष्ठभूमि से बाहर की होने के नाते, मुझे लगा कि मेरी आर्ट की भाषा समृद्ध हो रही है… लेकिन जल्द ही, सब कुछ बर्बादी की ओर जाने लगा. विश्वविद्यालय प्रशासनिक गड़बड़झालों में उलझ गया. स्टूडेंट्स और टीचर्स की हड़तालें हो गईं. हमें कभी भी एक अच्छा पोर्टफोलियो बनाने का मौका नहीं मिला, यही वजह है कि जब मैंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की तो उसके बाद, मैं पीजी डिग्री के लिए कहीं और दाखिला नहीं ले सकी. मुझे अपनी मास्टर डिग्री के लिए यहीं रहने को मजबूर होना पड़ा.” विश्वविद्यालय में क्या गलत हुआ, निशा बड़े विस्तार से इसकी टाइम-लाइन बताती हैं.

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  4. 4. ‘एकेडमिक सेशन में देरी, खराब बुनियादी ढांचा और अनिश्चित भविष्य’

    2017-18 बैच के एक और स्टूडेंट अंकित* जो फिल्म और टीवी स्टडी के छात्र हैं, अभी भी अपना ग्रेजुएशन पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं.

    फोन पर अंकित निराशा भरी आवाज में बताते हैं, “मैं 2017 में इस यूनिवर्सिटी में आया था और तब से सिर्फ बर्बादी चल रही है. उम्मीद है कि मेरे बैच का इस साल ग्रेजुएशन हो जाएगा. तब भी दो साल देर हो चुकी होगी, जो बहुत ज्यादा है. प्रशासन आसानी से देरी के लिए कोविड-19 महामारी को जिम्मेदार ठहरा रहा है, लेकिन इस विश्वविद्यालय का इतिहास और मौजूदा तौर तरीके कुछ और ही इशारा करते हैं.”

    वह कहते हैं, “फैकल्टी मेंबर पूरी तरह निर्दोष नहीं हैं. हमारे सिलेबस में अनियमितताओं के लिए मुख्य रूप से वही जिम्मेदार हैं. प्रशासन के साथ अपनी लड़ाई में उन्होंने छात्रों के भले के बारे में बिल्कुल नहीं सोचा.”

    मौजूदा समय में, फिल्म और टेलीविजन कोर्स के चार साल के डिग्री प्रोग्राम में स्टूडेंट्स के सात बैच एनरोल हैं.

    इनमें शामिल हैं: 2017 का बैच जिसे 2021 में ग्रेजुएट होना था, 2018 का बैच जिसे 2022 में ग्रेजुएट होना था, 2019 का बैच जिसे 2023 में ग्रेजुएट होना था, 2020 बैच जिसके 2024 में ग्रेजुएट होने की उम्मीद है, 2021 का बैच जिसे 2025 में ग्रेजुएट होने की उम्मीद है, और 2022 बैच को 2026 में ग्रेजुएट होने की उम्मीद है.

    उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस की धमकी मिली है. “8 अगस्त 2022 को, रजिस्ट्रार ने कई छात्रों के खिलाफ धमकी देने और विश्वविद्यालय में जबरदस्ती घुसने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की. पुलिस ने छात्रों पर हमला किया गया और उन्हें इधर-उधर धकेल दिया...यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हमने सिलेबस में सुधार और संसाधनों के सही बंटवारे की मांग की थी.”

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  5. 5. अब आगे क्या?

    इंद्रोनिल घोष और दूसरे फैकल्टी मेंबर ने द क्विंट से कहा कि वे तब तक अपना विरोध जारी रखेंगे जब तक विश्वविद्यालय या हरियाणा सरकार उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं करती. घोष ने कहा, "हमारे पास इस विरोध प्रदर्शन की कोई अंतिम तारीख नहीं है. प्रशासन प्रोफेसर ने पूछा. शायद अभी हमारी बात नहीं सुन रहा है क्योंकि हमारे विरोध प्रदर्शन से विश्वविद्यालय के रोजमर्रा के कामकाज में रुकावट नहीं आ रही है.”

    एक और फैकल्टी सदस्य, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने कहा कि रोज-रोज के विरोध प्रदर्शन फैकल्टी पर मानसिक और शारीरिक रूप से असर डाल रहे हैं. “हम जो कर रहे हैं, वह करना आसान नहीं है, खासकर सत्ता में मौजूद लोगों की धमकी के सामने. लेकिन हमारे पास दूसरा विकल्प ही क्या है? इतने सालों में ढेर सारे फैकल्टी सदस्यों ने नौकरी छोड़ दी है. यहां तक कि मैंने भी नौकरी छोड़ने के बारे में सोचा था, लेकिन ऐसा कैसे होगा मैंने इस जगह पर जो कड़ी मेहनत की है, क्या उसके साथ इंसाफ होगा?”

    घोष कहते हैं, “ईमानदारी से कहूं तो, अभी भी देर नहीं हुई है अगर वे (प्रशासन) सच में इस गड़बड़ी को दुरुस्त करना चाहते हैं तो हमारे पे ग्रेड्स तय करना और हमें हमारा इन्क्रीमेंट्स देना एक अच्छी शुरुआत हो सकती है.”

    (यह कहानी क्विंट स्पेशल प्रोजेक्ट है. हमारे इस सेगमेंट में हम आपके लिए टेक्स्ट फीचर्स, डॉक्यूमेंट्री, इन्वेस्टिगेशन और फैक्ट चेक पेश करते हैं जो हमें मुख्यधारा के मीडिया के झुंड में अलग खड़ा करते हैं. इस और बाकी दूसरी स्टोरी का समर्थन करने पर विचार करें, और हमारी पत्रकारिता की ताकत बढ़ाएं)

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लेकिन सबसे पहले, यूनिवर्सिटी की पृष्ठभूमि

दादा लखमी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स (The Dada Lakhmi Chand State University of Performing and Visual Arts) की स्थापना 5 अगस्त 2014 को चार सरकारी टेक्निकल इंस्टीट्यूट्स का विलय करके की गई थी, इनके नाम हैं:

  • स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स (SIFA)

  • स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (SID)

  • स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फिल्म एवं टेलीविजन (SIFT)

  • स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (SIUPA)

विरोध करने वाले फैकल्टी मेंबर्स को पहले उस समय के राज्य सरकार के वेतनमान के हिसाब से इन तकनीकी संस्थानों के लिए नियुक्त किया गया था. बाद में इन्हें भले ही 2014 में विश्वविद्यालय द्वारा अपने साथ मिला लिया गया, लेकिन उनका वेतनमान नहीं बढ़ाया गया.

द क्विंट से बात करते हुए विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर (VC) गजेंद्र चौहान दावा करते हैं कि उन्होंने खुद हरियाणा सरकार से इन प्रदर्शनकारी शिक्षकों को UGC द्वारा अनुमोदित वेतनमान देने का अनुरोध किया था.

चौहान बताते हैं, “कुलपति के रूप में कामकाज संभालने के बाद मैं खुद विभागीय अधिकारियों के पास गया और भले ही उन्हें यूजीसी-अनुमोदित वेतनमान नहीं मिलना चाहिए क्योंकि उन्हें तकनीकी रूप से राज्य सरकार के वेतनमान के अनुसार नियुक्त किया गया था, फिर भी मैंने अधिकारियों से मेरे नाम पर एक पर्सनल फेवर का अनुरोध किया था."

अगर वीसी चौहान ने मामला सुलझा दिया था तो फैकल्टी सदस्य अब भी क्यों विरोध कर रहे हैं?

विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ के अध्यक्ष और 2013 से फिल्म और टेलीविजन डिपार्टमेंट में फैकल्टी मेंबर इंद्रोनिल घोष समझाते हैं, “यह बहुत सीधी सा मामला है. यह सच है कि सरकारी तकनीकी संस्थानों में, हमें राज्य सरकार के पे ग्रेड के अनुसार नियुक्त किया गया था. जब इन संस्थानों का एक विश्वविद्यालय बनाने के लिए विलय कर दिया गया तो हमने UGC का अनुमोदित वेतनमान देने की मांग की. UGC का वेतनमान ज्यादा है. नियुक्ति के समय हममें से ज्यादातर राज्य सरकार की व्यवस्था के अनुसार 7,600 पे ग्रेड पर थे. हालांकि UGC सिस्टम में इसके बराबर कोई वेतनमान नहीं था– वेतनमान या तो कम (6,000 पे ग्रेड) था या ज्यादा (7,000 और 8,000 पे ग्रेड) था.”

घोष कहते हैं, “अगर हम 7,600 वेतनमान पर थे, तो हमें 8,000 वेतनमान पर ले जाया जाना चाहिए. इसके बजाय वे हमें पीछे धकेलते हुए 6,000 पे ग्रेड पर वापस जाने को कह रहे हैं. वे हमें कैसे डाउनग्रेड कर सकते हैं? यह सिर्फ वित्तीय नुकसान नहीं है. यह एक्सपीरियंस का भी नुकसान है क्योंकि ये पे ग्रेड अनुभव के अलग-अलग स्तर के हिसाब से भुगतान करते हैं.”

इस समय विश्वविद्यालय में 14 प्रोग्राम्स में अंडर ग्रेजुएट डिग्री दी जाती है; फाइन आर्ट्स फैकल्टी में चार, डिजाइन फैकल्टी में चार, फिल्म और टेलीविजन फैकल्टी में पांच, और अर्बन प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर प्रोग्राम में एक.

इसके अलावा यहां चार पोस्ट ग्रेजुएट कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. इनमें मास्टर इन फैशन डिजाइन, मास्टर ऑफ एप्लाइड आर्ट्स, मास्टर इन मास कम्युनिकेशन (मीडिया प्रोडक्शन) और मास्टर ऑफ प्लानिंग (शहरी और क्षेत्रीय) शामिल हैं. हालांकि, मास्टर इन मास कम्युनिकेशन पाठ्यक्रम 2023-24 सत्र से बंद कर दिया गया है.

रोहतक से लोकसभा के पूर्व सांसद और हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुडा के बेटे दीपेंद्र हुडा का सपना माने जाने वाले इस विश्वविद्यालय की स्थापना प्रदेश को कला और संस्कृति के अध्ययन के एक केंद्र के रूप में विकसित करने के मकसद के साथ की गई थी.

विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ के अध्यक्ष और 2013 से फिल्म और टेलीविजन विभाग के एक फैकल्टी इंद्रनील घोष कहते हैं, “यह अफसोसजनक है कि एक ऐसा विश्वविद्यालय जिसमें कला और संस्कृति के अध्ययन में अगुवा होने की क्षमता थी, वह खुद अपनी तबाही में लगा है. जिस साल इसकी स्थापना हुई थी, उसी साल से यह जगह विरोध प्रदर्शनों के लिए मशहूर रही है… चाहे वजह कोई भी रही हो. शिक्षकों द्वारा वेतनमान को लेकर, छात्रों द्वारा पाठ्यक्रम में बदलाव और बुनियादी ढांचे की कमी को लेकर या प्रशासन द्वारा ऊंचे पदों पर लोगों की नियुक्ति करते समय मानदंडों का उल्लंघन करने पर विरोध प्रदर्शन.’'

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कई आरोप और राज्यपाल के नाम पत्र

विरोध प्रदर्शन के 60 दिन बाद, इंद्रोनिल घोष और दूसरे प्रदर्शनकारी फैकल्टी मेंबर्स ने हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को एक पत्र लिखा. 17 फैकल्टी मेंबर्स के दस्तखत वाले इस पत्र की एक प्रति क्विंट के पास है. इस पत्र में कई आरोप लगाए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • विश्वविद्यालय द्वारा भर्ती किए गए 65 साल से ज्यादा की उम्र के ‘संविदा’ कर्मचारियों के कई उदाहरणों के बारे में बताया गया है. इनमें वीपी नांदल (वर्तमान में प्रशासन के सलाहकार के मामलों का प्रबंधन, वाइस चांसलर के स्पेशल ड्यूटी ऑफिसर, परीक्षा नियंत्रक और रजिस्ट्रार), राजबीर हुडा (2018 से विश्वविद्यालय के विजिटिंग फैकल्टी), प्रेम सिंह (2018 में लाइब्रेरी में कंसल्टेंट नियुक्त. जुलाई 2023 में उन्हें वाइस चांसलर गजेंद्र चौहान का अकादमिक सलाहकार नियुक्त किया गया), और सुनील कुमार (विजुअल आर्ट डिपार्टमेंट फैकल्टी नियुक्त) सहित दूसरे कई शामिल हैं.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)– शिक्षा मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय, जिस पर भारत में उच्च शिक्षा के मानकों में तालमेल, निर्धारण और पालन कराने की जिम्मेदारी है– की तरफ से तय किए मानदंडों के अनुसार UGC से संबद्ध विश्वविद्यालयों में फैकल्टी मेंबर के लिए रिटायरमेंट की उम्र 62-65 साल के बीच होनी चाहिए.

वाइस चांसलर चौहान ने द क्विंट को बताया कि प्रोफेसरों के आरोपों में ज्यादा दम नहीं है. उन्होंने कहा, “इन लोगों को एडवाइजर और कंसल्टेंट के तौर पर नियुक्त किया गया है, न कि ‘संविदा कर्मचारी’ के रूप में, जैसा कि फैकल्टी ने आरोप लगाया है. इनके पास काम का काफी अनुभव है और कोई भी नियम किसी को भी इन्हें काम पर रखने से नहीं रोकता है.”
  • फैकल्टी ने विश्वविद्यालय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल में नियमित फैकल्टी मेंबर की सही नुमाइंदगी नहीं होने का भी आरोप लगाया है.

UGC के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक्जीक्यूटिव काउंसिल– किसी विश्वविद्यालय के कामकाज को चलाने वाला कार्यकारी निकाय– में कम से कम 9 और ज्यादा से ज्यादा 15 सदस्य होने चाहिए. इनमें वाइस चांसलर, स्कूल ऑफ स्टडीज के डीन में से चार सदस्य (VC द्वारा वरिष्ठता के अनुसार रोटेशन से नियुक्त), एक प्रोफेसर जो वरिष्ठता के अनुसार (VC द्वारा नियुक्त) रोटेशन से डीन नहीं है, वरिष्ठता के अनुसार (VC द्वारा नियुक्त) रोटेशन से नियुक्त एक एसोसिएट प्रोफेसर, राज्य सरकार का एक प्रतिनिधि और रजिस्ट्रार शामिल है.

हालांकि, VC चौहान इस आरोप का खंडन करते हुए दावा करते हैं कि फैकल्टी कोऑर्डिनेटर या अकादमिक वेलफेयर के डीन को सभी बैठकों में बुलाया जाता है. वह कहते हैं, “मैं घूम-घूम कर हर एक को निमंत्रण नहीं बांट सकता. बैठक में क्या चर्चा हुई, इसके बारे में दूसरों को बताना फैकल्टी कोऑर्डिनेटर का काम है.”

अक्टूबर 2022 में हुई एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक के मिनट्स, जिसे क्विंट ने देखा है, के अनुसार अकादमिक वेलफेयर के डीन, डॉ. अजय कौशिक को बैठक में आमंत्रित किया गया था. हालांकि, किसी भी फैकल्टी मेंबर या प्रतिनिधि के पास परिषद में स्थायी स्थान नहीं था.

राज्यपाल को लिखे पत्र में यह भी आरोप लगाया गया:

  • UGC और हरियाणा सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार चयन समिति में विभाग के प्रमुख (HoD) की मौजूदगी के बिना और हरियाणा सरकार के नियमों के तहत सेवा के लिए स्वीकार्य उम्र वाले एक नियमित रजिस्ट्रार के बिना नए फैकल्टी मेंबर्स की भर्ती की गई.

  • दोबारा काम पर रखे गए कर्मचारियों के अनुबंध को तीन साल के लिए बढ़ाने के उदाहरण बताए गए हैं. विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार, वाइस चांसलर सिर्फ छह महीने के लिए नियुक्ति कर सकता है या अनुबंध को बढ़ा सकता है.

VC चौहान ने द क्विंट को बताया, “नियुक्तियों में अनियमितता की कोई गुंजाइश नहीं है. ये सभी राज्य सरकार की तरफ से भेजे गए पर्यवेक्षक की उपस्थिति में की गई हैं. अगर आरोप सच हैं, तो हम जेल भेजे जा सकते हैं.”

वह बताते हैं, “एक्जीक्यूटिव काउंसिल ने वाइस चासलर को दोबारा काम पर रखे गए कर्मचारियों के अनुबंध को तीन बार बढ़ाने के लिए अधिकृत किया– पहले 2018 में दो साल के लिए, फिर 2020 में तीन साल के लिए, और अंत में 2022 में पांच साल के लिए.”

विरोध करने वाले फैकल्टी मेंबर्स में से एक, मितेश* ने बताया, “जब विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही थी, तब यहां पढ़ाए जाने वाले कई कोर्स हरियाणा के किसी दूसरे विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाए जाते थे. अर्बन प्लानिंग और आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट को छोड़कर, दूसरे सभी कोर्स के लिए फैकल्टी मेंबर्स को देश के अलग-अलग हिस्सों से भर्ती किया गया था, जिसमें पश्चिम बंगाल, केरल और दिल्ली सहित अन्य राज्य शामिल हैं.”

प्रोफेसर कहते हैं, “हालांकि, समस्या यह है कि यह एक बेहद क्षेत्रवादी समाज है. यहां जाति की मजबूत पकड़ है. इसलिए लोग असरदार पदों पर आए और पक्षपात में शामिल रहे. यहां तक कि वाइस चांसलर ने भी इसे बढ़ावा दिया.”

2014 में अपनी स्थापना के बाद से विश्वविद्यालय में गजेंद्र चौहान समेत चार वाइस चांसलर हो चुके हैं. चौहान ने दिसंबर 2021 में पद संभाला था. चौहान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्य हैं और पूर्व टीवी एक्टर जिन्हें ऐतिहासिक टीवी सीरियल महाभारत में युधिष्ठिर के किरदार के लिए जाना जाता है. 2015 में पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) के अध्यक्ष के रूप में चौहान का कार्यकाल विवादास्पद रहा.

उन्हें जून 2015 में मार्च 2014 के पूर्ववर्ती प्रभाव से तीन साल के लिए इस पद पर नियुक्त किया गया था. हालांकि, उनकी नियुक्ति पर FTII के छात्रों और पूर्व छात्रों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया, जिनको लगता था कि यह सरकार का “संस्थान का भगवाकरण” करने की कोशिश है. विरोध की वजह से वह आखिर में जनवरी 2016 में ही पद संभाल सके और उन्हें सिर्फ 15 महीने का कार्यकाल मिला.

‘हाथ से मौका गया’: छात्रों ने फैकल्टी और प्रशासन को बराबर का जिम्मेदार ठहराया

जुलाई 2018 में, जब निशा* ने 12वीं कक्षा पास करने के बाद, चित्रकला में स्पेशलाइजेशन के लिए स्नातक की डिग्री हासिल करने के वास्ते विजुअल आर्ट चुनने का फैसला लिया, तो उनके लिए चुनने को बहुत ज्यादा सरकारी विश्वविद्यालय नहीं थे.

उन्होंने द क्विंट को बताया, “मैं हरियाणा के भिवानी जिले के एक मामूली गांव से आती हूं. हमारे इलाके में लड़कियों की पढ़ाई कई बातों से तय होती है. सबसे पहले तो, परिवार अपनी लड़कियों को कॉलेज जाने या पेशेवर डिग्री हासिल करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं. फिर ऐसे भी परिवार हैं जो लड़कियों को इस शर्त पर उच्च शिक्षा हासिल करने देते हैं कि उनको मेडिकल, इंजीनियरिंग और टीचिंग जैसे विषय चुनने होंगे. लेकिन सबसे बड़ा कारक जो यह तय करता है कि हरियाणा में एक लड़की कॉलेज जाएगी या नहीं, वह है विश्वविद्यालय परिसर और उनके घर के बीच की दूरी.”

निशा जैसे बहुत से स्टूडेंट्स के लिए जब फिल्मों, डिज़ाइन, या विजुअल आर्ट की पढ़ाई की बात आती है, तो अभी भी उनकी इकलौती पसंद DLCSUPVA बनी हुई है.

निशा कहती हैं, “विजुअल आर्ट्स के ज्यादातर सरकारी कॉलेज और विश्वविद्यालय महाराष्ट्र (जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स), पश्चिम बंगाल (रवींद्र भारती विश्वविद्यालय), और गुजरात (महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी) जैसे राज्यों में हैं. मेरे माता-पिता के लिए राहत की बात थी कि हमारे पास हमारे अपने राज्य में एक यूनिवर्सिटी है और यही वजह है कि वे मुझे मेरे सपनों का कोर्स पूरा करने देने के लिए राजी हुए.”

18 अगस्त 2018 को उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने के लिए पहली बार परिसर में कदम रखा— और यहीं पर निशा के सपनों की दौड़ दम तोड़ गई.

“ग्रेजुएशन का पहला साल बहुत अच्छा था. हमारे पास वर्कशॉप और सेमिनार थे जहां देश और विदेश से कलाकार आते थे और अपने काम के बारे में बात करते थे. हमारी दूसरे विभागों के स्टूडेंट्स के साथ भी हमेशा बातचीत होती थी. आर्ट की पृष्ठभूमि से बाहर की होने के नाते, मुझे लगा कि मेरी आर्ट की भाषा समृद्ध हो रही है… लेकिन जल्द ही, सब कुछ बर्बादी की ओर जाने लगा. विश्वविद्यालय प्रशासनिक गड़बड़झालों में उलझ गया. स्टूडेंट्स और टीचर्स की हड़तालें हो गईं. हमें कभी भी एक अच्छा पोर्टफोलियो बनाने का मौका नहीं मिला, यही वजह है कि जब मैंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की तो उसके बाद, मैं पीजी डिग्री के लिए कहीं और दाखिला नहीं ले सकी. मुझे अपनी मास्टर डिग्री के लिए यहीं रहने को मजबूर होना पड़ा.” विश्वविद्यालय में क्या गलत हुआ, निशा बड़े विस्तार से इसकी टाइम-लाइन बताती हैं.

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‘एकेडमिक सेशन में देरी, खराब बुनियादी ढांचा और अनिश्चित भविष्य’

2017-18 बैच के एक और स्टूडेंट अंकित* जो फिल्म और टीवी स्टडी के छात्र हैं, अभी भी अपना ग्रेजुएशन पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं.

फोन पर अंकित निराशा भरी आवाज में बताते हैं, “मैं 2017 में इस यूनिवर्सिटी में आया था और तब से सिर्फ बर्बादी चल रही है. उम्मीद है कि मेरे बैच का इस साल ग्रेजुएशन हो जाएगा. तब भी दो साल देर हो चुकी होगी, जो बहुत ज्यादा है. प्रशासन आसानी से देरी के लिए कोविड-19 महामारी को जिम्मेदार ठहरा रहा है, लेकिन इस विश्वविद्यालय का इतिहास और मौजूदा तौर तरीके कुछ और ही इशारा करते हैं.”

वह कहते हैं, “फैकल्टी मेंबर पूरी तरह निर्दोष नहीं हैं. हमारे सिलेबस में अनियमितताओं के लिए मुख्य रूप से वही जिम्मेदार हैं. प्रशासन के साथ अपनी लड़ाई में उन्होंने छात्रों के भले के बारे में बिल्कुल नहीं सोचा.”

मौजूदा समय में, फिल्म और टेलीविजन कोर्स के चार साल के डिग्री प्रोग्राम में स्टूडेंट्स के सात बैच एनरोल हैं.

इनमें शामिल हैं: 2017 का बैच जिसे 2021 में ग्रेजुएट होना था, 2018 का बैच जिसे 2022 में ग्रेजुएट होना था, 2019 का बैच जिसे 2023 में ग्रेजुएट होना था, 2020 बैच जिसके 2024 में ग्रेजुएट होने की उम्मीद है, 2021 का बैच जिसे 2025 में ग्रेजुएट होने की उम्मीद है, और 2022 बैच को 2026 में ग्रेजुएट होने की उम्मीद है.

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस की धमकी मिली है. “8 अगस्त 2022 को, रजिस्ट्रार ने कई छात्रों के खिलाफ धमकी देने और विश्वविद्यालय में जबरदस्ती घुसने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की. पुलिस ने छात्रों पर हमला किया गया और उन्हें इधर-उधर धकेल दिया...यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हमने सिलेबस में सुधार और संसाधनों के सही बंटवारे की मांग की थी.”

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अब आगे क्या?

इंद्रोनिल घोष और दूसरे फैकल्टी मेंबर ने द क्विंट से कहा कि वे तब तक अपना विरोध जारी रखेंगे जब तक विश्वविद्यालय या हरियाणा सरकार उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं करती. घोष ने कहा, "हमारे पास इस विरोध प्रदर्शन की कोई अंतिम तारीख नहीं है. प्रशासन प्रोफेसर ने पूछा. शायद अभी हमारी बात नहीं सुन रहा है क्योंकि हमारे विरोध प्रदर्शन से विश्वविद्यालय के रोजमर्रा के कामकाज में रुकावट नहीं आ रही है.”

एक और फैकल्टी सदस्य, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने कहा कि रोज-रोज के विरोध प्रदर्शन फैकल्टी पर मानसिक और शारीरिक रूप से असर डाल रहे हैं. “हम जो कर रहे हैं, वह करना आसान नहीं है, खासकर सत्ता में मौजूद लोगों की धमकी के सामने. लेकिन हमारे पास दूसरा विकल्प ही क्या है? इतने सालों में ढेर सारे फैकल्टी सदस्यों ने नौकरी छोड़ दी है. यहां तक कि मैंने भी नौकरी छोड़ने के बारे में सोचा था, लेकिन ऐसा कैसे होगा मैंने इस जगह पर जो कड़ी मेहनत की है, क्या उसके साथ इंसाफ होगा?”

घोष कहते हैं, “ईमानदारी से कहूं तो, अभी भी देर नहीं हुई है अगर वे (प्रशासन) सच में इस गड़बड़ी को दुरुस्त करना चाहते हैं तो हमारे पे ग्रेड्स तय करना और हमें हमारा इन्क्रीमेंट्स देना एक अच्छी शुरुआत हो सकती है.”

(यह कहानी क्विंट स्पेशल प्रोजेक्ट है. हमारे इस सेगमेंट में हम आपके लिए टेक्स्ट फीचर्स, डॉक्यूमेंट्री, इन्वेस्टिगेशन और फैक्ट चेक पेश करते हैं जो हमें मुख्यधारा के मीडिया के झुंड में अलग खड़ा करते हैं. इस और बाकी दूसरी स्टोरी का समर्थन करने पर विचार करें, और हमारी पत्रकारिता की ताकत बढ़ाएं)

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