भुखमरी से जुड़ी रिपोर्ट अक्सर आप अलग-अलग पब्लिकेशंस में पढ़ते होंगे. कभी-कभी संसद में भी इसकी चर्चा हो जाती है, जैसे कि आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने राज्यसभा में हंगर इंडेक्स के आंकड़ों को ब्योरा देते हुए पूछ लिया कि आखिर ये भुखमरी की समस्या से हम निजात क्यों नहीं पा रहे हैं? और रैंकिंग में इतने नीचे क्यों हैं? संजय सिंह के इस सवाल का जवाब कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने एक उदाहरण के साथ दिया, इस उदाहरण में उन्होंने बताया कि इस देश में कुत्ते के बच्चे भी जब भूखे नहीं रहते तो इंसान के बच्चों के भूखे रहने का सवाल ही नहीं उठता. इसी के साथ केंद्रीय मंत्री ने हंगर इंडेक्स से जुड़ी रिपोर्ट्स पर भी सवाल उठाए.
संजय सिंह के सवाल और केंद्रीय राज्य मंत्री के जवाब देखिए-
सवाल- हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान 2014 में 55 नंबर पर था, 2015 में 80 नंबर पर था, 2016 में 97वें नंबर पर आया, 2017 में 100वें नंबर पर आया, 2018 में 103वें नंबर पर आया, 2019 में 102 नंबर और 2020 में 94वें स्थान पर आया. मंत्री जी ये कह रहे हैं कि हालात में सुधार हुए हैं क्योंकि 2019 में 102वें नंबर पर था 2020 में 94वें स्थान पर आया. मैं बड़ी विनम्रता से पूछना चाहता हूं कि भारत दुनिया के 10 सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है, समस्या उत्पादन नहीं वितरण हैं. तो ऐसे में इस समस्या का समाधान कब होगा. मैं मंत्रीजी से पूछना चाहता हूं कि जब हम उत्पादन में 10वें नंबर पर हैं तो हम भूखमरी में इतने नीचे क्यों हैं?
जवाब-ये जो भुखमरी की बात और बच्चों के भुखमरी की बात हो रही है. कोई एनजीओ आकर ये बता जाता है, सरकार पूछ रही है कि आखिर ये लोग किस आंकड़े के आधार पर रिपोर्ट बनाते हैं. गलियों में जब आवारा कुत्ते घूमते रहते हैं उनके बच्चे जब होते हैं उनको खाना दिया जाता था. मैं भी देने गया था. हमारी माताएं उन्हें भूखा नहीं रहने देतीं. ऐसे में जब ऐसे बच्चों (कुत्ते के बच्चों) की भूख की समस्या का समाधान जिस देश में होता है उस देश में बच्चों के भूख की समस्या जब कोई और बताया तो उसपर बहुत ध्यान देने की जरूरत नहीं हैं. देश में कोई उत्पादकता की कमी नहीं हैं, स्टॉक भी हमारे पास बहुत है.
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