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यूपी: बागपत का लाक्षागृह- मजार विवाद क्या है? मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज

मुस्लिम पक्ष के वकील बोले, "हमारा मुकदमा खारिज हो गया है. हम आगे के लिए तैयार हो रहे हैं. मामले की अपील करेंगे."

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यूपी के बागपत (Baghpat) में ऐतिहासिक स्थल लाक्षागृह (महाभारत काल से जुड़ाव) और मजार विवाद को लेकर सिविल अदालत ने फैसला सुनाया है. आदेश में मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करने की बात कही गई है. हालांकि हिंदू पक्ष के वकील बताया कि सिविल जज ने सुनवाई करते हुए साफ तौर पर कहा है कि बरनावा में दरगाह नहीं बल्कि लाक्षागृह की जमीन है.

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लाक्षागृह- मजार विवाद क्या है?

साल 1970 में मुस्लिम समुदाय की ओर से एक मुकदमा दायर किया गया. इस मुकदमे में मुस्लिम पक्ष ने लाक्षागृह को बकरुद्दीन की मजार-कब्रिस्तान होने का दावा किया था. वहीं हिंदू पक्ष के दावा है कि लाक्षागृह की 100 बीघा जमीन पर हिंदूओं का अधिकार है. फिलहाल इस जगह पर मजार और कब्रिस्तान है.

बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने साल 1970 में मेरठ की अदालत में लाक्षागृह मामले में मुकदमा दायर किया था. हिंदू समुदाय की ओर से इस मुकदमे में गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज प्रतिवादी (Responder) की भूमिका में थे. हालांकि अब दोनों का स्वर्गवास हो चुका है.

रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है दरगाह और कब्रिस्तान की जमीन

मुकीम खान और ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज के देहांत के बाद अब इस मामले में कई दूसरे लोग जुड़ गए थे. जिला अलग होने के बाद अब यह मामला बागपत जिला न्यायालय में चल रहा था. दोनों पक्षों के वकीलों ने कोर्ट में लाक्षागृह पर अपने दावे को लेकर सबूत पेश किए थे. कोर्ट में पेश किए गए साक्ष्य के आधार पर ये माना कि वहां दरगाह और कब्रिस्तान की जमीन राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है.

मुस्लिम पक्ष क्या विकल्प चुनेगा?

इस मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से अय्यूब, मुन्ना समेत अन्य और दूसरे पक्ष से गांधी धाम समिति के प्रबंधक राजपाल त्यागी थे. मुस्लिम पक्ष के वकील शाहिद अली का कहना है कि वह मामले का आगे अध्ययन करेंगे और नए सिरे से अपील फाइल करेंगे.

वकील शाहिद अली बोले, "हमारा मुकदमा खारिज हो गया है. हम आगे के लिए तैयार हो रहे हैं. मामले की अपील करेंगे."

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