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BBC दफ्तर में सर्वे को IT विभाग ने नियमित कार्रवाई बताया, एक्सपर्ट बोले-गैरजरूरी

BBC IT Survey: ट्रांसफर प्राइसिंग की जांच के लिए क्या सर्वे जरूरी था, क्या कहते हैं नियम?

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बीबीसी (BBC) इंडिया के कार्यालयों में इनकम टैक्स के अधिकारियों ने बुधवार, 15 फरवरी को लगातार दूसरे दिन 'सर्वे' किया. यह सर्वे कथित तौर पर "ट्रांसफर मूल्य निर्धारण नियमों के गैर-अनुपालन" (Transfer Pricing) के लिए किया जा रहा है.

BBC के कार्यालयों पर इनकम टैक्स डिमार्टमेंट का यह एक्शन प्रधान मंत्री मोदी और 2002 के गुजरात दंगों में उनकी कथित भूमिका पर आई डॉक्यूमेंट्री पर जारी विवाद के बीच आया है.

जहां एक तरफ विपक्षी नेताओं ने इन 'छापों के समय' पर सवाल उठाया है, वहीं बीजेपी ने कहा है कि यह कदम 'टैक्स चोरी' से संबंधित है और यह सुनिश्चित करने के लिए है कि कोई भी विदेशी कंपनी 'कानून से ऊपर' नहीं है.

आरोप: आयकर विभाग द्वारा शेयर किए गए एक नोट के अनुसार:

"इनकम टैक्स के अधिकारियों ने दिल्ली में बीबीसी के परिसर में एक सर्वे किया, बीबीसी द्वारा ट्रांसफर प्राइसिंग नियमों के साथ जानबूझकर गैर-अनुपालन और इसके मुनाफे के विशाल डायवर्जन के मद्देनजर, यह नोट करना उचित है कि टैक्स अधिकारियों द्वारा किए गए उपरोक्त अभ्यास को 'सर्वे' कहा जाता है, न कि आयकर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार तलाशी/छापेमारी'."

सर्वे के दौरान, बीबीसी इंडिया के कर्मचारियों के फोन और लैपटॉप कथित तौर पर आईटी अधिकारियों द्वारा जब्त कर लिए गए थे, और परिसर के अंदर मौजूद लोगों को ऑफिस छोड़ने की अनुमति नहीं थी.

आई-टी विभाग के नोट में स्पष्ट किया गया है कि इस तरह के सर्वे नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं और इसे सर्च/रेड समझने की भूल न करें.

टैक्स एक्सपर्ट्स असहमत: हालांकि, टैक्स एक्सपर्ट्स को लगता है कि ट्रांसफर प्राइसिंग नियम के उल्लंघन के लिए 'सर्वे' करना अनावश्यक है:

"मुनाफे का डाइवर्जन"/"ट्रांसफर प्राइसिंग" शब्द लोगों के बीच इस सर्वे को वैध बनाने का एक उपाय हो सकता है. हालांकि टैक्स कानूनों के तहत, ट्रांसफर प्राइसिंग का "मूल्यांकन" बिना किसी सर्वे, सर्च और संपत्ति की जब्ती के काफी नियमित रूप से होने वाली प्रैक्टिस है."
ट्विटर पर अकाउंटेंट दीपक जोशी

तो, ट्रांसफर प्राइसिंग क्या है? और क्या 'सर्वे' करना जांच एजेंसी का सही फैसला था? इस एक्सप्लेनर में हम यह समझाने की कोशिश करते हैं.

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ट्रांसफर प्राइसिंग क्या है?

कॉर्पोरेट फाइनेंस इंस्टिट्यूट के अनुसार, "ट्रांसफर प्राइसिंग उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को बताता है जो दो ऐसी कंपनियों के बीच लिया-दिया जाता है जो कॉमन कंट्रोल में हैं"

कॉमन कंट्रोल वाली संस्थाएं वे हैं जो किसी एक पैरेंट कंपनी के नियंत्रण में आती हैं.

इस प्रकार, यदि कोई सहायक कंपनी अपनी होल्डिंग/पैरेंट कंपनी या किसी सहयोगी कंपनी को सामान बेचती है या सेवाएं प्रदान करती है, तो चार्ज की गई कीमत को ट्रांसफर प्राइस कहा जाता है.

ट्रांसफर प्राइसिंग कैसे काम करता है?

आईटी-विभाग की वेबसाइट पर मौजूद एक नोट के अनुसार

"मान लीजिए कि एक कंपनी A 100 रुपये का सामान खरीदती है और इसे अपनी संबद्ध कंपनी B को दूसरे देश में 200 रुपये में बेचती है, जो इसे खुले बाजार में 400 रुपये में बेचती है.

"अगर A ने इस वस्तु को सीधे बेच दिया होता, तो उसे 300 रुपये का फायदा होता. लेकिन इसे B के माध्यम से बाजार में बेचकर A ने फायदे को 100 रुपये तक ही सीमित कर दिया और B को बाकी की राशि को रखने की अनुमति दे दी."

"A और B के बीच लेन-देन आपस में अरेंज किया हुआ है और इसमें बाजार की ताकतों का हस्तक्षेप नहीं है. इस प्रकार 200 रुपये का लाभ B के देश में ट्रांसफर कर दिया जाता है. माल को एक मूल्य (हस्तांतरण मूल्य) पर स्थानांतरित किया जाता है जो मनमाना या अरेंज (200 रुपये) है, नाकि बाजार मूल्य पर जो 400 रुपये है.

ट्रांसफर प्राइसिंग विशेषज्ञों के मुताबिक Google "ट्रांसफर प्राइसिंग मामलों में एक बहुत ही खास केस है."

कार्लोस वर्गास एलेनकास्त्रे ने  International Tax Review के लिए लिखा कि "इस वैश्विक कंपनी ने 2007 से 2010 तक आयरलैंड और नीदरलैंड के माध्यम से अपने अधिकांश अपतटीय मुनाफे को बरमूडा में ट्रांसफर करके अपने टैक्स को $ 3.1 बिलियन कम कर दिया." एलेनकास्ट्रे कहते हैं,

"Google की प्रैक्टिस इंडस्ट्रीज की एक विस्तृत श्रृंखला में काम करने वाली अनगिनत अन्य वैश्विक कंपनियों के समान हैं."
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ट्रांसफर प्राइसिंग क्यों करते हैं?

ट्रांसफर प्राइसिंग के जरिए मूल कंपनी या एक विशिष्ट सहायक कंपनी टैक्स लगने के योग्य इनकम को कम या लेनदेन पर अत्यधिक नुकसान दिखाती है. आयकर विभाग की वेबसाइट के अनुसार

"एक समूह जो एक उच्च टैक्स वाले देशों में उत्पादों का निर्माण करता है, उन्हें टैक्स हेवन देश में स्थित अपनी संबद्ध बिक्री कंपनी को कम लाभ पर बेचने का निर्णय ले सकता है. वह कंपनी बदले में उत्पाद को आर्म लेंथ प्राइस (मनमुताबिक कीमत) पर बेचेगी और नतीजन (बढ़े प्रॉफिट) पर उस देश में बहुत कम या कोई टैक्स नहीं देना होगा. यह राजस्व का नुकसान है और विदेशी मुद्रा भंडार के लिए भी एक नुकसान है."

नोट: IT विभाग के मुताबिक, बीबीसी पर लाभ के आवंटन में "आर्म लेंथ प्राइस की व्यवस्था" का पालन नहीं करने का आरोप लगाया गया है.

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क्या बीबीसी के मामले में एक सर्वे उचित था?

एक वरिष्ठ कॉर्पोरेट वकील एचपी रानिना ने एक समाचार चैनल को बताया, "मुझे आश्चर्य है कि यह स्थिति उत्पन्न हो गई है. ट्रांसफर प्राइसिंग के मुद्दे पर सर्वे के लिए कोई जगह नहीं है,"

तो फिर सामान्य प्रोटोकॉल क्या होना चाहिए?

एकाउंटेंट और वकील दीपक जोशी ने ट्विटर पर लिखा कि

ट्रांसफर प्राइसिंग एक ऐसा मुद्दा है जिसे केवल 'मूल्यांकन/असेसमेंट' द्वारा तय किया जा सकता है न कि सर्वे द्वारा.

ट्रांसफर प्राइसिंग का मुद्दे डॉक्यूमेंट की जांच से जुड़ा है. ये डॉक्यूमेंट ट्रांसफर प्राइसिंग ऑफिसर (टीपीओ) के पास ट्रांसफर प्राइसिंग रिपोर्ट में पहले से ही उपलब्ध हैं, जिस पर मूल्यांकन किया जाता है.

“आमतौर पर, हम एक ट्रांसफर प्राइसिंग कार्यवाही के लिए सर्वे / सर्च नहीं करते हैं. वे उन्हीं डॉक्यूमेंट को जब्त करेंगे जो उनके सामने पहले से मौजूद हैं!"
दीपक जोशी

अगर उल्लंघन का शक है... आईटी-विभाग ने कहा है कि बीबीसी द्वारा ट्रांसफर प्राइसिंग नियमों का उल्लंघन 'लंबे समय से' चल रहा है. ऐसे में एचपी रानिना का मानना है कि अगर यह सच था, तो टैक्स अधिकारियों को पहल करनी चाहिए थी ,ट्रांसफर प्राइसिंग ऑडिट होता, मूल्यांकन पूरा किया जाता, और बीबीसी को ट्रिब्यूनल में अपील करने की अनुमति दी जानी चाहिए थी.

उन्होंने कहा, "इस समय किसी सर्वे की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि यह ऐसा मामला है जहां सभी डॉक्यूमेंट उन्हीं के पास हैं."

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इससे पहले ऐसे मामलों से कैसे निपटते थे?

ओलंपस कॉर्प की सहायक कंपनी ओलंपस मेडिकल सिस्टम्स इंडिया (भारत बनाम ओलंपस मेडिकल सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड 2022) से जुड़े ट्रांसफर प्राइसिंग मामले में अधिकारियों ने इस तरह कार्रवाई शुरू की:

  • कर अधिकारियों द्वारा एक ट्रांसफर प्राइसिंग ऑडिट शुरू किया गया था

  • ऑडिट के बाद टैक्स अथॉरिटी में मामले में असेसमेंट/आकलन शुरू किया

  • इस मामले की सुनवाई तब भारत के एक आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण में हुई थी, जिसमें कहा गया था कि इकाई को अपनी संबद्ध कंपनियों के वित्तीय ऑडिट के डिटेल प्रस्तुत करने चाहिए.

भारत में केलॉग (इंडिया बनाम केलॉग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, 2022) से जुड़े ट्रांसफर प्राइसिंग मामले में:

  • ट्रिब्यूनल में कार्यवाही कंपनी द्वारा तैयार 'ट्रांसफर प्राइसिंग रिपोर्ट' पर आधारित थी

  • आयकर विभाग ने रिपोर्ट के आधार पर 'असेसमेंट' जारी किया

  • ट्रिब्यूनल ने भारतीय इकाई के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया था कि आर्म्स लेंथ सिद्धांत (ALP) में कोई समायोजन करने की आवश्यकता नहीं है.

(एनडीटीवी, आईटीआर और कॉरपोरेट फाइनेंस इंस्टीट्यूट से इनपुट्स के साथ.)

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