"मोतियाबिंद का ऑपरेशन सफल नहीं रहा. अस्पताल ने कहा इंफेक्शन फैल सकता है, इसलिए आंख निकलवाने में ही फायदा है. मतलब अब मैं हमेशा के लिए देख नहीं सकता."
बिहार के मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) के एक चैरिटेबल अस्पताल की लापरवाही से राम मुक्ति सिंह की आंखों की रौशनी छिन गई. राम मुक्ति की तरह ही करीब 14 लोग अब आंखों से देख नहीं सकते हैं, क्योंकि 22 नवंबर को बिहार के मुजफ्फरपुर के 'मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल' में मोतियाबिंद (cataract) का ऑपरेशन कराने आए 65 लोगों में से 15 लोगों की आंखों में गंभीर इंफेक्शन हो गया था जिसके बाद ऑपरेशन कर उनकी आंखें निकालनी पड़ी.
अब सवाल है कि ऐसा क्या हुआ जो इतने लोगों की आंखें एक साथ खराब हो गईं? क्या वजह है जो इतने लोगों की आंखों को निकालना पड़ा? कौन इन सबके लिए जिम्मेदार है?
कहां लापरवाही हुई?
मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉक्टर विनय शर्मा ने बताया कि इस पूरे मामले की गहनता से जांच के लिए चार सदस्य डॉक्टरों की टीम बनाई गई है. साथ ही अस्पताल के खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई है. क्विंट से बात करते हुए डॉक्टर विनय शर्मा ने बताया कि जांच कर रही टीम की प्राइमरी रिपोर्ट आ गई है और हमने थाना को रिपोर्ट दे दिया है. हालांकि उन्होंने रिपोर्ट के बारे में फिलहाल ज्यादा कुछ नहीं बताया.
जांच टीम के सदस्य और मुजफ्फरपुर के एडिशनल चीफ मेडिकल अफसर (एसीएमओ) डॉक्टर सुभाष से जब हमने जानने की कोशिश की कि चूक कहां हुई तो उन्होंने कहा,
चूक तो हुई है, लेकिन किस स्तर पर हुई है ये अभी नहीं कह सकते हैं. जांच के लिए मरीजों का स्वैब रिपोर्ट अभी नहीं आया है. माइक्रोबाइलोजी रिपोर्ट बाकी है. इसके आने में 72 घंटे का समय लगता है. लेकिन इसके अलावा हम लोग डॉक्टरों की भी जांच कर रहे हैं, जो डॉक्टर ऑपरेशन में शामिल थे उनसे हमारी मुलाकात नहीं हुई है, क्योंकि डॉक्टर डरे हुए हैं, FIR के डर से मिल नहीं रहे हैं. साथ ही डॉक्टरों की डिग्री की भी जांच होनी है. लेकिन जहां तक मुझे जानकारी है, जो डॉक्टर भी शामिल थे वो बारीक काम करने वाले हैं. बहुत सा ऑपरेशन किया है उन लोगों ने. इसलिए अभी कुछ भी कहना मुश्किल है.
एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
हमने इस पूरे मामले को अलग पहलू से भी समझने की कोशिश की. जिसके लिए हमने बिहार के कुछ बड़े नेत्र विशेषज्ञ से बात की.
नॉर्थ बिहार के दरभंगा में मौजूद नेत्र अस्पताल शेखर नेत्रालय के डायरेक्टर डॉक्टर आशीष से जब हमने मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद लोगों की आंख खराब होने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने हमें एक-एक कर अलग-अलग पहलू से रूबरू कराया.
डॉक्टर आशीष शेखर कहते हैं,
ऑपरेशन में जो प्रॉब्लम होता है जिसे इंफेक्शन कह रहे हैं, वो इंफेक्शन इसलिए होता है क्योंकि हम ऑपरेशन के दौरान एक नहीं दर्जनों चीजें इस्तेमाल करते हैं. सर्जिकल सामान से लेकर दवाएं. और ये सब सामान कंपनियां स्टरलाइज कर के देती हैं. इसे ऐसे समझिए कि अगर किसी मरीज को कोई दवा डॉक्टर देता है और दवा रिएक्ट कर जाता है तो कौन जिम्मेदार होगा? डॉक्टर या कंपनी?
डॉक्टर आशीष कहते हैं कि जब आप कहते हैं कि आंख में पस आ गया, आंख निकालना पड़ गया है, वो इसलिए होता है कि डॉक्टर जो सामान इस्तेमाल करते हैं उसमें से कोई एक सामान उस दिन फॉल्टी रहा होगा. ऐसे में एक डॉक्टर होने के नाते मेरे पास कोई तरीका नहीं है कि ये जान सकें कि वो सामान अच्छा है या खराब. कंपनियां जो सामान बनाती हैं उसपर लिखती हैं कि ये सामान स्टरलाइज हैं, मतलब इसमें कोई इंफेक्शन नहीं है. लेकिन फिर इंफेक्शन कैसे हुआ?
सस्ते या फ्री ऑपरेशन की वजह से क्वालिटी से होता समझौता
डॉक्टर आशीष शेखर कहते हैं कि इसके अलावा कई सारे सर्जिकल सामान अस्पताल के भी होते हैं जिसे अस्पताल के स्टाफ स्टरलाइज करते हैं, अब जिस अस्पताल में ये घटना घटी है वो चैरिटेबल अस्पताल है, यहां डॉक्टर आते हैं और ऑपरेशन करके जाते हैं, अब जिस दिन ऑपरेशन हुआ उस दिन ऑपरेशन के सामान को हॉस्पिटल ने स्टरलाइज कराया था या नहीं? ये एक सवाल है? जिसके लिए अस्पताल प्रशासन जिम्मेदार होता है.
डॉक्टर आशीष ने एक और अहम पहलू की तरफ इशारा किया. डॉक्टर आशीष कहते हैं,
"जब इस तरह के कैंप में ऑपरेशन करते हैं तो इसका मतलब है कि आप सस्ते में ऑपरेशन कर रहे हैं, सस्ते में ऑपरेशन होता तो सस्ता सामान भी इस्तेमाल होगा. ऐसे में क्वालिटी का क्या भरोसा. जब कोई कंपनी कोई चीज सस्ता दे रही है तो वो कहां पर समझौता करेगी? क्वालिटी पर ही समझौता होगा. आप खुद सोचिए जिस डॉक्टर ने करोड़ों की मशीन लगाई हो और जहां कुछ लाख की मशीन लगी हो तो फर्क आता ही है."
क्या ज्यादा लोगों के ऑपरेशन की वजह से हुई चूक?
क्या ज्यादा मरीजों का ऑपरेशन भी इस घटना की वजह बनी है? पटना एम्स के आई डिपार्टमेंट के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर रंजीत कुमार कहते हैं,
"ये ऑपेरशन कोई ऐसी चीज नहीं है जिसमें कोई एक आदमी कर रहा हो, इसमें कई लोग शामिल होते हैं, सीनियर डॉक्टर, जूनियर डॉक्टर से लेकर ओटी असिस्टेंट. हम लोग सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में हैं, लेकिन हमारे यहां एक शिफ्ट में 10-15 मोतियाबिंद की सर्जरी करते हैं. लेकिन बाहर में एक दिन में अगर 56 सर्जरी हो रही है तो ये भी एक फैक्टर हो सकता है."
डॉक्टर रंजीत ये भी कहते हैं कि किसी एक चीज को जिम्मेदार नहीं कह सकते हैं, क्योंकि ऑपरेशन थिएटर में लगे बेड से लेकर दवा, सर्जिकल आईटम, डॉक्टर और भी बहुत से फैक्टर हो सकते हैं. फिलहाल जांच हो रही है देखिए जांच में क्या निकल कर आता है.
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