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बिहार का दंगल खत्म होने के बाद क्यों 'दंड-बैठक' कर रहे नीतीश कुमार

नीतीश कुमार भले ही नंबर 3 पर पहुंच गए हैं लेकिन सरेंडर करने वालों में से नहीं

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नीतीश चुनाव 'हारने' के बाद आखिर इतनी मेहनत क्यों कर रहे हैं? कभी निर्दलीय को मंत्री बना रहे हैं कभी बीएसपी का इकलौता विधायक जमां खां तोड़कर ला रहे हैं और कभी चिराग के दीयों और जुगनुओं को बुझा रहे हैं. अब अपने पुराने दोस्त और फिर दुश्मन हो गए उपेंद्र कुशवाहा को बेस्ट बडी बना लिया है. उपेंद्र कुशवाहा नीतीश से गले मिल गए हैं और पार्टी को जेडीयू में मिला दिया है. नीतीश ने भी उन्हें आते ही संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया है. लेकिन नीतिश के लिए अब संभलने से क्या फायदा जब 'चिड़िया' चुग गई खेत?

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'नॉर्मल' नहीं हैं नीतीश

नीतीश की सियासत नॉर्मल नहीं रही, ये हाल फिलहाल कई बार देखने को मिला है. कभी वो पत्रकारों पर बिगड़ते हैं तो कभी विधानसभा में विपक्ष को डांटने लग जाते हैं. दरअसल विधानसभा चुनावों में बिहार में कोई हारा है तो वो हैं नीतीश कुमार. सीधे नंबर तीन पर पहुंच गए हैं. इस करारी हार ने जेडीयू को झकझोर कर रख दिया है. जिस सोशल इंजीनियरिंग पर उन्हें इतना भरोसा था वो भी तार-तार हो गई. नीतीश को अब इस कड़वी सच्चाई के साथ जीना है. तो यदा कदा कड़वाहट बाहर भी आ रही है. बीजेपी ने अपने वादे के मुताबिक मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन वो असहज हैं. मुख्य तो अब बीजेपी है, मुख्यमंत्री नीतीश रह गए हैं.

नीतीश इतने लंबे समय तक बिहार में नंबर 1 रह चुके हैं कि इससे अलग सियासत उन्हें समझ नहीं आती. चुनाव प्रचार के दौरान भले ही कह दिया कि ये मेरा आखिरी चुनाव है लेकिन चुनावी चकल्लस और बात है, नीतीश आखिर हैं नीतीश कुमार, इतनी आसानी से नहीं मानेंगे हार. नीतीश जमीन से जुड़े नेता हैं. राष्ट्रीय पार्टियों के बीच से अपनी राजनीति चमकाने वाले नेता हैं. मंत्रालयों के बंटवारे में भी नीतीश ने अपना यही जुझारूपन दिखाया था. तो ऐसा लगता है कि वो अभी से अपनी जर्जर इमारत की मरम्मत में जुट गए हैं.

दुश्मन पहचान गए नीतीश?

चुनाव में हार के बाद नीतीश का ये बयान याद कीजिए कि उनसे दोस्त और दुश्मन पहचानने में गलती हो गई. चुनाव के दौरान ये आम चर्चा थी कि चिराग को बागी बनाकर बीजेपी ने ही नीतीश के खिलाफ चक्रव्यूह खड़ा किया है. चुनाव के दौरान इस सवाल से नीतीश बचते रहे. लेकिन चुनाव नतीजों से इन सवालों का जवाब अपने-आप मिल गया. तो क्या अब वाकई में नीतीश ने असली दुश्मन को पहचान कर दवा करने की शुरुआत कर दी है?

उपेंद्र ने राजनीति नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही शुरू की थी. उसके बाद कुशवाहा उनसे दो बार अलग हुए. नवंबर 2009 में अपनी राष्ट्रीय समता पार्टी को JDU में मर्ज किया था. पिछले विधानसभा में सूपड़ा साफ होने के बाद कुशवाहा भी नई सियासी जमीन तलाश रहे हैं. और इसके लिए उन्होंने नीतीश की नाव का सहारा लिया है.

ये ठीक है कि लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव तक अभी दूर हैं और जो लोग आए हैं उनके आने से विधानसभा में नीतीश नंबर गेम में बहुत आगे निकल जाएंगे ऐसा भी नहीं हैं. लेकिन पॉलिटिकल मैसेजिंग के तौर पर ये हालिया एक्विजिशन अहम हैं. रह-रहकर नीतीश का नोटिफिकेशन आता रहे तो बीजेपी अलर्ट रहेगी.

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