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Chandrayaan 3: चांद पर अब तक कौन-कौन देश पहुंचे? वहां पहुंच क्या मिला?

Chandrayaan 3 Landing: 'चंद्रयान- 3’ ने आज भारत का नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज कर दिया.

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भारत
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Chandrayaan 3 Landing: भारत के ISRO की कम लागत से बने ‘चंद्रयान- 3’ ने आज भारत का नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज कर दिया. दुनिया भर में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन हिंदुस्तान ने वो कर दिखाया जिसकी बाकी देशों ने बस कल्पना की होगी.

साथ ही ‘चंद्रयान- 3’ सफलतापूर्वक चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कर दुनिया का चौथा देश भी बन गया है.

ऐसे में आइए जानते हैं चांद पर पहुंचने वाले देशों में कौन-कौन शामिल हैं? मून मिशन के प्रकार और किस देश ने भेजे किस तरह के मिशन? चंद्रमा पर अब तक क्या पाया गया है? क्यों देश अभी भी चंद्रमा पर मिशन की योजना बना रहे हैं?

Chandrayaan 3: चांद पर अब तक कौन-कौन देश पहुंचे? वहां पहुंच क्या मिला?

  1. 1. चांद पर पहुंचने वाले देशों में कौन-कौन से देश शामिल हैं?

    दुनिया के 11 देश हैं, जो चंद्रमा पर अपने कई प्रकार के मिशन भेज चुके हैं, लेकिन उनमें से केवल 4 देश ही चंद्रमा पर पहुंच सके हैं और हमारा देश उनमें से एक है.

    भारत, अमेरिका, रूस और चीन ये उपलब्धि हासिल कर चुके हैं. अभी तक सिर्फ अमेरिका ने चंद्रमा पर इंसानों को उतारा है.

    चंद्रमा पर सबसे पहली सॉफ्ट लैंडिंग रूस ने कराई थी. ये सफलता 3 फरवरी 1966 को उसके लूना-9 मिशन ने हासिल की थी.
    • भारत: भारत ने श्रीहरिकोटा से साल 2008 की 22 अक्टूबर की तारीख को चंद्रयान मिशन-1 लांच किया था. चंद्रयान-1 ने जितनी कम ऊंचाई पर से चंद्रमा के फेरे लगाए थे, उतनी कम ऊंचाई पर उससे पहले किसी दूसरे देश के अंतरिक्ष यान ने उसकी परिक्रमा नहीं की थी. साल 2019 की 22 जुलाई को चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक लांच किया गया था मगर 7 सितंबर 2019 को चंद्रमा पर हार्ड लैंडिंग की वजह से मिशन कामयाब नहीं हो सका था. लेकिन चंद्रयान-2 ने पहली बार चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी की पहचान कर दुनिया में भारत को एक गौरवशाली दर्जा दिलाया था. 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 मिशन लांच हुआ और 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 ने भारत का नाम इतिहास के सुनहरे पन्ने में दर्ज कर दिया. 

    • रूस: 3 फरवरी 1966 से 19 अगस्त 1976 के बीच आठ सॉफ्ट लैंडिंग वाले लूना मिशन हुए. जिसमें लूना-9, 13, 16, 17, 20, 21, 23 और 24 शामिल हैं.

    • अमेरिकाः 2 जून 1966 से 11 दिसंबर 1972 के बीच अमेरिका ने 11 बार चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई. इसमें सर्वेयर स्पेसक्राफ्ट के पांच मिशन थे. छह मिशन अपोलो स्पेसक्राफ्ट के थे. इसी के तहत नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर पहला कदम रखा था. जिनके बाद 24 अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स चांद पर गए. अमेरिका का पहला लैंडर चंद्रमा पर 20 मई 1966 में उतरा था.

    • चीनः चीन ने 14 दिसंबर 2013 को पहली बार चांद पर चांगई-3 मिशन उतारा. 3 जनवरी 2019 को चांगई-4 मिशन उतारा. 1 दिसंबर 2020 को तीसरा मिशन चांगई-5 उतारा.

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  2. 2. मून मिशन के प्रकार और किस देश ने भेजे किस तरह के मिशन?

    आइए आपको अलग-अलग तरह के मून मिशन के बारे में बताते हैं. ये कई प्रकार के होते हैं, जैसे:

    • फ्लाईबाई यानी चंद्रमा के बगल से गुजरना

    • ऑर्बिटर यानी चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाना

    • इम्पैक्ट यानी चंद्रमा की सतह पर यंत्र गिराना

    • लैंडर यानी चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग

    • रोवर यानी चंद्रमा की जमीन पर रोबोटिक स्वचालित यंत्र उतारना

    • रिटर्न मिशन यानी वहां से कोई सामान लेकर वापस आना

    • क्रू मिशन यानी इंसान को चांद पर पहुंचाना

    मून मिशन के तीन चरण हैं. पहला- चांद की सतह पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग. दूसरा- रोवर प्रज्ञान को चांद की जमीन पर उतारना. तीसरा- डेटा जुटाना और भेजना.

    यहां जानते हैं, चंद्रमा पर किस देश ने भेजे किस तरह के मिशन:

    • ऑर्बिटरः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और दक्षिण कोरिया.

    • इम्पैक्टः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और लग्जमबर्ग.

    • फ्लाईबाईः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, लग्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली.

    • लैंडरः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन

    • रोवरः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन. 

    • रिटर्नः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन.

    • क्रूः अमेरिका. 

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  3. 3. चंद्रमा पर अब तक क्या पाया गया है?

    हम सभी जानते हैं कि पिछले महीने चंद्रमा पर ISRO ने अपना तीसरा मून मिशन यानी Chandrayaan-3 भेजा था जिसने 23 अगस्त 2023 को इतिहास रच दिया. चंद्रमा पर पहुंचे देशों ने इन बातों का पता लगाया:

    • पहले रोबोटिक मिशनों से, हमें पता चला कि चंद्रमा की सतह पाउडर जैसी धूल की तरह है लेकिन इतनी मजबूत है कि लोगों और मशीनों का वजन सह सके. चंद्रमा पर कोई ग्लोबल मैग्नेटिक फील्ड या एटमॉस्फियर नहीं है और यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले चट्टानों से बना है.

    • पहले मानवयुक्त मिशनों से पता चला कि प्रारंभिक सौर मंडल टकराते ग्रहों, पिघलती सतहों और ज्वालामुखियों वाला था.

    • अगले रोबोटिक मिशनों से मिले डेटा ने वैज्ञानिकों को चंद्रमा की जटिल परत को दर्शाने वाले ग्लोबल कॉम्पजिशनल मैप दिए. उन्होंने पहली बार सतह के मैग्नेटिक फील्ड को भी मैप किया. आंकड़ों से पता चला कि अपोलो 16 डेसकार्टेस हाइलैंड्स चंद्रमा पर सबसे मजबूत चुंबकीय क्षेत्रों में से एक है. मिशन को दोनों ध्रुवों पर हाइड्रोजन की बढ़ी हुई मात्रा भी मिली.

    • चीन के रोबोटिक अंतरिक्ष यान ने कुछ ऐसा किया जो पहले कभी नहीं किया गया था. चांद के फार साइड पर लैन्डिंग. इससे पता चला कि चंद्रमा के उस हिस्से पर लुनार सॉइल (lunar Soil) की ऊपरी परत अपेक्षा से काफी मोटी है - लगभग 130 फीट.

    • भारत का चंद्रयान-1 चंद्रमा पर बर्फ की खोज करने वाला पहला मिशन था.

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  4. 4. क्यों देश अभी भी चंद्रमा पर मिशन की योजना बना रहे हैं?

    NASA के अनुसार, अगले कुछ वर्षों में चांद को एक्सप्लोर करने वाले कई मिशन लॉन्च किए जाने की संभावना है.

    • इनोवेशन: स्पेस (Space) राष्ट्रों के लिए एक यूनीफाइंग (Unifying) फोर्स के रूप में काम करता है. एक स्पष्ट विजन प्रदान करता है, जो टेक्नोलॉजी और इनोवेशन को आगे बढ़ाता है.

    • इकोनॉमिक और जियोपोलिटिकल लाभ: चंद्रमा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और कॉम्पटिशन दोनों को बढ़ावा देता है. जिन देशों के पास अपना स्वयं का अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं है, वे उड़ान भरने के लिए उपकरण विकसित कर सकते हैं, जो दूसरे देशों द्वारा निर्मित और लांच किए जाने वाले स्पेसक्राफ्ट पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं. इससे देशों को आपस में शांति बनाए रखने के लिए प्रोत्साहन मिलता है. हालांकि, कोई भी देश चांद पर जमीन का मालिक नहीं हो सकता, फिर भी देश चंद्रमा पर अपना क्लेम रखना चाहते हैं ताकि वहां मौजूद रिसोर्स का इस्तेमाल कर सकें. उदाहरण के लिए, हीलियम-3 (हीलियम तत्व का एक आइसोटोप) चंद्रमा पर अधिक मात्रा में है, लेकिन पृथ्वी पर बहुत कम मिलता है. यह न्यूक्लियर फ्यूजन, ऊर्जा का एक संभावित अनलिमिटेड और नॉन-पोल्यूटिंग स्रोत, के लिए एक संभावित ईंधन है.

    • आसान लक्ष्य: बढ़ती अंतरिक्ष एजेंसियों को सफल मिशनों की आवश्यकता होती है और चंद्रमा एक आकर्षक लक्ष्य है. पृथ्वी और चंद्रमा के बीच रिलेटिवली कम दूरी (384,400 किमी) पर रेडियो संचार लगभग तुरंत (1-2 सेकंड) होता है. पृथ्वी और मंगल के बीच, दो-तरफा संचार का समय एक घंटे के करीब हो सकता है. चंद्रमा पर कम ग्रैविटी और एटमॉस्फियर की कमी भी ऑर्बिटर और लैंडर के संचालन को सरल बनाती है.

    • नई खोज: चंद्रमा पर हर नया मिशन नई खोजें उत्पन्न करता है. चंद्रमा के परमानेंटली छाया वाले क्षेत्रों में वाटर आइस और दूसरे ऑर्गैनिक कम्पाउन्डों की उपस्थिति एक रोमांचक खोज रही है. यदि पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो, तो चंद्रमा पर वाटर आइस का उपयोग ईंधन उत्पन्न करने या लोगों के रहने का समर्थन करने के लिए एक रिसोर्स के रूप में किया जा सकता है.

    • पृथ्वी के बारे में ज्ञान: चंद्रमा पर एक्स्प्लोरेशन से सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में पूरी तरह से नए विचार सामने आए हैं. अपोलो मिशन से पहले, माना जाता था कि ग्रहों का निर्माण लंबी अवधि में धूल के कणों के धीमे कलेक्शन से हुआ था. अब हम जानते हैं कि ग्रहों के बीच विशाल टकराव आम थे, और संभवतः ऐसे ही एक टक्कर से चंद्रमा का निर्माण हुआ था.

    (इन्पुट्स: नासा, द कन्वर्सेशन)

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चांद पर पहुंचने वाले देशों में कौन-कौन से देश शामिल हैं?

दुनिया के 11 देश हैं, जो चंद्रमा पर अपने कई प्रकार के मिशन भेज चुके हैं, लेकिन उनमें से केवल 4 देश ही चंद्रमा पर पहुंच सके हैं और हमारा देश उनमें से एक है.

भारत, अमेरिका, रूस और चीन ये उपलब्धि हासिल कर चुके हैं. अभी तक सिर्फ अमेरिका ने चंद्रमा पर इंसानों को उतारा है.

चंद्रमा पर सबसे पहली सॉफ्ट लैंडिंग रूस ने कराई थी. ये सफलता 3 फरवरी 1966 को उसके लूना-9 मिशन ने हासिल की थी.
  • भारत: भारत ने श्रीहरिकोटा से साल 2008 की 22 अक्टूबर की तारीख को चंद्रयान मिशन-1 लांच किया था. चंद्रयान-1 ने जितनी कम ऊंचाई पर से चंद्रमा के फेरे लगाए थे, उतनी कम ऊंचाई पर उससे पहले किसी दूसरे देश के अंतरिक्ष यान ने उसकी परिक्रमा नहीं की थी. साल 2019 की 22 जुलाई को चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक लांच किया गया था मगर 7 सितंबर 2019 को चंद्रमा पर हार्ड लैंडिंग की वजह से मिशन कामयाब नहीं हो सका था. लेकिन चंद्रयान-2 ने पहली बार चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी की पहचान कर दुनिया में भारत को एक गौरवशाली दर्जा दिलाया था. 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 मिशन लांच हुआ और 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 ने भारत का नाम इतिहास के सुनहरे पन्ने में दर्ज कर दिया. 

  • रूस: 3 फरवरी 1966 से 19 अगस्त 1976 के बीच आठ सॉफ्ट लैंडिंग वाले लूना मिशन हुए. जिसमें लूना-9, 13, 16, 17, 20, 21, 23 और 24 शामिल हैं.

  • अमेरिकाः 2 जून 1966 से 11 दिसंबर 1972 के बीच अमेरिका ने 11 बार चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई. इसमें सर्वेयर स्पेसक्राफ्ट के पांच मिशन थे. छह मिशन अपोलो स्पेसक्राफ्ट के थे. इसी के तहत नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर पहला कदम रखा था. जिनके बाद 24 अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स चांद पर गए. अमेरिका का पहला लैंडर चंद्रमा पर 20 मई 1966 में उतरा था.

  • चीनः चीन ने 14 दिसंबर 2013 को पहली बार चांद पर चांगई-3 मिशन उतारा. 3 जनवरी 2019 को चांगई-4 मिशन उतारा. 1 दिसंबर 2020 को तीसरा मिशन चांगई-5 उतारा.

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मून मिशन के प्रकार और किस देश ने भेजे किस तरह के मिशन?

आइए आपको अलग-अलग तरह के मून मिशन के बारे में बताते हैं. ये कई प्रकार के होते हैं, जैसे:

  • फ्लाईबाई यानी चंद्रमा के बगल से गुजरना

  • ऑर्बिटर यानी चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाना

  • इम्पैक्ट यानी चंद्रमा की सतह पर यंत्र गिराना

  • लैंडर यानी चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग

  • रोवर यानी चंद्रमा की जमीन पर रोबोटिक स्वचालित यंत्र उतारना

  • रिटर्न मिशन यानी वहां से कोई सामान लेकर वापस आना

  • क्रू मिशन यानी इंसान को चांद पर पहुंचाना

मून मिशन के तीन चरण हैं. पहला- चांद की सतह पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग. दूसरा- रोवर प्रज्ञान को चांद की जमीन पर उतारना. तीसरा- डेटा जुटाना और भेजना.

यहां जानते हैं, चंद्रमा पर किस देश ने भेजे किस तरह के मिशन:

  • ऑर्बिटरः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और दक्षिण कोरिया.

  • इम्पैक्टः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और लग्जमबर्ग.

  • फ्लाईबाईः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, लग्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली.

  • लैंडरः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन

  • रोवरः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन. 

  • रिटर्नः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन.

  • क्रूः अमेरिका. 

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चंद्रमा पर अब तक क्या पाया गया है?

हम सभी जानते हैं कि पिछले महीने चंद्रमा पर ISRO ने अपना तीसरा मून मिशन यानी Chandrayaan-3 भेजा था जिसने 23 अगस्त 2023 को इतिहास रच दिया. चंद्रमा पर पहुंचे देशों ने इन बातों का पता लगाया:

  • पहले रोबोटिक मिशनों से, हमें पता चला कि चंद्रमा की सतह पाउडर जैसी धूल की तरह है लेकिन इतनी मजबूत है कि लोगों और मशीनों का वजन सह सके. चंद्रमा पर कोई ग्लोबल मैग्नेटिक फील्ड या एटमॉस्फियर नहीं है और यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले चट्टानों से बना है.

  • पहले मानवयुक्त मिशनों से पता चला कि प्रारंभिक सौर मंडल टकराते ग्रहों, पिघलती सतहों और ज्वालामुखियों वाला था.

  • अगले रोबोटिक मिशनों से मिले डेटा ने वैज्ञानिकों को चंद्रमा की जटिल परत को दर्शाने वाले ग्लोबल कॉम्पजिशनल मैप दिए. उन्होंने पहली बार सतह के मैग्नेटिक फील्ड को भी मैप किया. आंकड़ों से पता चला कि अपोलो 16 डेसकार्टेस हाइलैंड्स चंद्रमा पर सबसे मजबूत चुंबकीय क्षेत्रों में से एक है. मिशन को दोनों ध्रुवों पर हाइड्रोजन की बढ़ी हुई मात्रा भी मिली.

  • चीन के रोबोटिक अंतरिक्ष यान ने कुछ ऐसा किया जो पहले कभी नहीं किया गया था. चांद के फार साइड पर लैन्डिंग. इससे पता चला कि चंद्रमा के उस हिस्से पर लुनार सॉइल (lunar Soil) की ऊपरी परत अपेक्षा से काफी मोटी है - लगभग 130 फीट.

  • भारत का चंद्रयान-1 चंद्रमा पर बर्फ की खोज करने वाला पहला मिशन था.

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क्यों देश अभी भी चंद्रमा पर मिशन की योजना बना रहे हैं?

NASA के अनुसार, अगले कुछ वर्षों में चांद को एक्सप्लोर करने वाले कई मिशन लॉन्च किए जाने की संभावना है.

  • इनोवेशन: स्पेस (Space) राष्ट्रों के लिए एक यूनीफाइंग (Unifying) फोर्स के रूप में काम करता है. एक स्पष्ट विजन प्रदान करता है, जो टेक्नोलॉजी और इनोवेशन को आगे बढ़ाता है.

  • इकोनॉमिक और जियोपोलिटिकल लाभ: चंद्रमा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और कॉम्पटिशन दोनों को बढ़ावा देता है. जिन देशों के पास अपना स्वयं का अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं है, वे उड़ान भरने के लिए उपकरण विकसित कर सकते हैं, जो दूसरे देशों द्वारा निर्मित और लांच किए जाने वाले स्पेसक्राफ्ट पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं. इससे देशों को आपस में शांति बनाए रखने के लिए प्रोत्साहन मिलता है. हालांकि, कोई भी देश चांद पर जमीन का मालिक नहीं हो सकता, फिर भी देश चंद्रमा पर अपना क्लेम रखना चाहते हैं ताकि वहां मौजूद रिसोर्स का इस्तेमाल कर सकें. उदाहरण के लिए, हीलियम-3 (हीलियम तत्व का एक आइसोटोप) चंद्रमा पर अधिक मात्रा में है, लेकिन पृथ्वी पर बहुत कम मिलता है. यह न्यूक्लियर फ्यूजन, ऊर्जा का एक संभावित अनलिमिटेड और नॉन-पोल्यूटिंग स्रोत, के लिए एक संभावित ईंधन है.

  • आसान लक्ष्य: बढ़ती अंतरिक्ष एजेंसियों को सफल मिशनों की आवश्यकता होती है और चंद्रमा एक आकर्षक लक्ष्य है. पृथ्वी और चंद्रमा के बीच रिलेटिवली कम दूरी (384,400 किमी) पर रेडियो संचार लगभग तुरंत (1-2 सेकंड) होता है. पृथ्वी और मंगल के बीच, दो-तरफा संचार का समय एक घंटे के करीब हो सकता है. चंद्रमा पर कम ग्रैविटी और एटमॉस्फियर की कमी भी ऑर्बिटर और लैंडर के संचालन को सरल बनाती है.

  • नई खोज: चंद्रमा पर हर नया मिशन नई खोजें उत्पन्न करता है. चंद्रमा के परमानेंटली छाया वाले क्षेत्रों में वाटर आइस और दूसरे ऑर्गैनिक कम्पाउन्डों की उपस्थिति एक रोमांचक खोज रही है. यदि पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो, तो चंद्रमा पर वाटर आइस का उपयोग ईंधन उत्पन्न करने या लोगों के रहने का समर्थन करने के लिए एक रिसोर्स के रूप में किया जा सकता है.

  • पृथ्वी के बारे में ज्ञान: चंद्रमा पर एक्स्प्लोरेशन से सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में पूरी तरह से नए विचार सामने आए हैं. अपोलो मिशन से पहले, माना जाता था कि ग्रहों का निर्माण लंबी अवधि में धूल के कणों के धीमे कलेक्शन से हुआ था. अब हम जानते हैं कि ग्रहों के बीच विशाल टकराव आम थे, और संभवतः ऐसे ही एक टक्कर से चंद्रमा का निर्माण हुआ था.

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