कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus) का दौर कामकाजी महिलाओं के लिए मुश्किल भरा रहा है. अब एक नई स्टडी में सामने आया है कि भारत के कम आय वाले परिवारों में महिलाओं ने 2020 में महामारी के दौरान अपने भोजन और आराम में कटौती की, लेकिन ज्यादा अनपेड (बिना आय वाला) काम किया. ये खुलासा कंसल्टिंग फर्म डालबर्ग की एक स्टडी में हुआ है.
स्टडी में 15,000 से ज्यादा महिलाओं का सर्वे किया गया. इसमें ये भी खुलासा किया कि कोविड की पहली लहर के बाद उन्हें वर्कफोर्स में फिर से वापस लौटने में ज्यादा वक्त लग रहा है.
सर्वे में शामिल हर 10 में से एक महिला ने कहा कि मार्च-अक्टूबर 2020 के बीच उनके पास पर्याप्त भोजन नहीं था.
रिपोर्ट के मुताबिक, "करीब 3.2 करोड़ महिलाओं ने अपने घरों में भोजन के बारे में चिंतित होने की जानकारी दी (लेकिन अभी तक भोजन को सीमित नहीं किया है). महामारी से पहले भारतीय महिलाओं के खराब पोषण संबंधी परिणामों को देखते हुए, ये इसे और बढ़ा सकता है."
ज्यादा अनपेड वर्क, कम आराम
महामारी से पहले महिलाओं के काम करने का प्रतिशत 24 था, लेकिन महिलाएं उन सभी लोगों में से 28 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार थीं, जिन्होंने नौकरी खो दी थी. उनमें से 43 प्रतिशत को अभी तक उनका पेड वर्क वापस नहीं मिला है.
लगभग 41 प्रतिशत महिलाओं और 37 प्रतिशत पुरुषों ने अनपेड वर्क में बढ़ोतरी देखी, जबकि 27 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उन्हें महामारी के दौरान कम आराम मिला, जबकि केवल 18 प्रतिशत पुरुषों ने ऐसा ही कहा.
"हमारा मानना है कि महिलाओं के घरेलू बोझ में ये वृद्धि उनके लिए वर्कफोर्स में फिर से प्रवेश करना मुश्किल बना देगी, जिससे आर्थिक परिणाम होंगे, जो महामारी के बाद भी लंबे समय तक रह सकते हैं."डालबर्ग रिपोर्ट
मनरेगा के तहत लिस्टेड होने वाली महिलाओं में से कम से कम 30 प्रतिशत को काम नहीं मिला.
पीरियड्स के सामान, गर्भनिरोधक तक सीमित पहुंच
स्टडी में बताया गया है कि महामारी से पहले पीरियड पैड का इस्तेमाल करने वाली कम से कम 16 प्रतिशत महिलाओं (करीब 1.7 करोड़) की मार्च और नवंबर के बीच पैड तक पहुंच या तो सीमित थी या एकदम नहीं थी. इसका मुख्य कारण ये था कि वो अब इन समान को खरीदने में समर्थ नहीं थीं.
स्टडी में बताया गया है, "जो महिलाएं सही पीरियड प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं करती और मेंस्ट्रुल हाईजीन का ख्याल नहीं रख पातीं, उनमें रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन (RTIs), यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTIs) होने की संभावना ज्यादा होती है, और उनमें सर्वाइकल कैंसर की संभावना भी बढ़ जाती है."
सर्वे में शामिल कम से कम 33 प्रतिशत शादीशुदा महिलाओं ने कहा कि वो गर्भनिरोधक का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं, क्योंकि महामारी ने पब्लिक हेल्थ प्रोग्राम को बाधित कर दिया है.
मुस्लिम, प्रवासी महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित
स्टडी में बताया गया है कि कस-आय वाले घरों की महिलाएं, मुस्लिम, प्रवासी महिलाएं, और सिंगल/तलाकशुदा महिलाएं इस दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित हुईं.
"कम-आय वाले घरों की महिलाएं अपना पेड वर्क और इनकम रिकवर करने में धीमी रहीं. इनमें से कुछ के लिए भोजन की कमी और पैड तक पहुंच भी ज्यादा सीमित थी उदाहरण के लिए, औसत महिला की तुलना में, महामारी के दौरान 20 पर्सेंटेज प्वाइंट ज्यादा सिंगल, अलग/तलाकशुदा महिलाओं के पास सीमित भोजन था या उनके पास भोजन की कमी थी, जबकि ज्यादा आय वाले परिवारों की महिलाओं की तुलना में, 10,000 रुपये से कम मासिक आय वाले घरों की 3-6 पर्सेंटेज प्वाइंट ज्यादा महिलाओं को पोषण की दिक्कतों का सामना करना पड़ा."डालबर्ग रिपोर्ट
इस अंतर को कैसे कम किया जाए?
डालबर्ग स्टडी में ये भी कहा गया है कि मौजूदा सरकारी तंत्र अकेले इस अंतर को नहीं भर सकता, और महिलाओं की रिकवरी के लिए अलग से सपोर्ट सिस्टम स्थापित करने की जरूरत है. स्टडी के कुछ सुझाव:
मनरेगा जॉब कार्ड पर महिलाओं को लिस्ट करने के लिए अभियान; ग्रामीण महिलाओं की रिकवरी को सपोर्ट करने के लिए दिनों की कुल संख्या में बढ़ोतरी करना.
पीडीएस वितरण के साथ पैड का बंडल प्रावधान; उपयोग बढ़ाने के लिए पीरियड्स स्वच्छता पर जागरूकता अभियान चलाना.
गर्भनिरोधक तक पहुंच और इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए परिवार नियोजन के प्रयासों को तेज करना.
वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) रोलआउट के तहत सिंगल, अलग/तलाकशुदा/विधवा महिलाओं को शामिल करने के लिए सिस्टम स्थापित करना.
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