उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा के दौरान एक युवक की मौत के मामले में क्या दिल्ली पुलिस खुद को बचाने में जुटी है? क्यों दिल्ली पुलिस उन पुलिसकर्मियों की पहचान करने में विफल रही है जो गंभीर रूप से घायल पांच लोगों के साथ बर्बरता करने और उनका वीडियो बनाने में शामिल थे? इनमें से एक की मौत हो चुकी है जिसकी पहचान फैजान के रूप में हुई है.
क्यों एलएनजेपी हॉस्पिटल की ओर से जारी फैजान के मृत्यु प्रमाण पत्र में दर्ज जानकारी और दिल्ली पुलिस के बयान मेल नहीं खा रहे हैं? सभी सवाल गंभीर हैं जिनके जवाब नहीं मिल रहे.
उत्तर पूर्व दिल्ली में हिंसा के दौरान सही कार्रवाई नहीं करने को लेकर दिल्ली पुलिस की प्रतिष्ठा पर सवाल उठे हैं. कई लोगों ने कुछ दिल्ली पुलिसकर्मियों की भूमिका को ‘खुले तौर पर पक्षपातपूर्ण’ बताया है. 25 फरवरी को सोशल मीडिया पर सामने आया वायरल वीडियो एक स्पष्ट उदाहरण है जिसमें 5 घायल लोगों को सड़क पर पड़े हुए दिखाया गया है, उसके चारों ओर कुछ पुलिसकर्मी हैं जो घायलों को गालियां देते, उन्हें राष्ट्रगान गाने और वंदे मातरम् कहने को मजबूर करते सुने गए हैं.
कर्दमपुरी का रहने वाला फैजान इन पांच घायलों में से एक था और उसने 27 फरवरी को लोक नायक हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया.
ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर आलोक कुमार ने क्विंट को बताया कि फैजान की मौत के मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गयी है जिसमें ‘अज्ञात लोगों’ के खिलाफ हत्या के आरोप हैं.
वायरल वीडियो में फैजान और दूसरे घायल लोगों को गालियां देते दिख रहे पुलिसकर्मियों के बचाव में आलोक कुमार का दावा है कि उनके नाम एफआईआर में इसलिए दर्ज नहीं हैं क्योंकि वे लोग उन लोगों को पीटते हुए नहीं दिख रहे हैं. वे कहते हैं कि पुलिस ही उन पांच घायलों को अस्पताल लेकर गयी.
क्विंट ने आगे ज्वाइंट सीपी से पूछा कि वीडियो में दिख रहे पुलिसकर्मियों के खिलाफ घायलों को अस्पताल ले जाने में देरी करने पर सेक्शन 304ए के तहत क्यों नहीं एफआईआर दर्ज की गयी. क्या यह देरी फैजान की मौत के लिए जिम्मेदार नहीं थी?
इसका ज्वाइंट सीपी कुमार के पास कोई साफ जवाब नहीं था.
हमने पुलिस अधिकारियों, डॉक्टरों और फैजान के परिजनों से बात की और जिस वजह से उसकी मौत हुई है उस घटना के क्रम को समझने की कोशिश की. हमने सबके बयानों में कई तरह के अंतर पाए. क्या केस को खराब करने के लिए धुंधली तस्वीर बनायी जा रही है?
फैजान को कब अस्पताल में भर्ती कराया गया? क्या तब वह मर चुका था या जिंदा था?
“घायलों ने अस्पताल पहुंचने के बाद पुलिस को खबर दी कि भीड़ ने उनकी पिटाई की है. इसलिए एफआईआर सिर्फ अज्ञात लोगों के खिलाफ हुई है. एक विभागीय जांच उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ तय की गयी है जिन्होंने उनसे राष्ट्र गान गवाया. उनकी अब तक पहचान नहीं हुई है क्योंकि वीडियो में उनके चेहरे नहीं दिख रहे हैं.”आलोक कुमार, ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर
ज्वाइंट सीपी आलोक कुमार ने कहा कि 24 फरवरी के दिन एक पुलिसकर्मी ने स्थानीय थाने से घायलों को अस्पताल पहुंचाया. अस्पताल में भर्ती कराए जाते वक्त सभी जीवित थे. पुलिसकर्मियों ने घायलों के बयान दर्ज किए जिसके आधार पर एफआईआर रजिस्टर हुई.
बहरहाल, लोक नायक हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ किशोर सिंह ने क्विंट से बातचीत में इस बात की तस्दीक की कि पुलिस द्वारा 24 फरवरी को मौत के बाद फैजान को लाया गया था. डॉक्टर सिंह का बयान सीधे तौर पर सीपी आलोक कुमार के उस दावे का खंडन करता है कि सभी पांच घायलों को अस्पताल में जीवित भर्ती कराया गया था.
जब क्विंट ने फैजान के परिजनों से बात की तो उन्होंने घटनाओं का बिल्कुल अलग कहानी बताई. फैजान का डेथ सर्टिफिकेट दिल्ली पुलिस के बयान को गलत ठहराता है.
फैजान की मां ने क्विंट को बताया कि उनका बेटा सड़क से अस्पताल नहीं ले जाया गया था. इसके बजाए 24 फरवरी को पुलिस उसे ज्योति नगर थाने लेकर गयी. वह फैजान से मिलने पुलिस स्टेशन उसी दिन पहुंची लेकिन उन्हें उससे मिलने नहीं दिया गया. दो दिनों तक वह पुलिस हिरासत में था.
“25 फरवरी को हमें थाने से कॉल आया कि फैजान को घर ले जाएं. जब हम लोग उसे देर रात लेकर आए तो उसे दर्द था. 26 फरवरी को हम लोग उसे इलाज के लिए लोक नायक अस्पताल लेकर गये.”फैजान की मां
उसने आगे बताया कि 26 फरवरी को फैजान कई तरह के मेडिकल टेस्ट से गुजरा और 27 फरवरी की सुबह 12 बजकर 10 मिनट पर उसकी मौत हो गयी. अपने तर्क के समर्थन में फैजान की मां ने फैजान का डेथ सर्टिफिकेट हमें दिया जिससे साफ पता चलता है कि अस्पताल में दाखिले की तारीख 26 फरवरी थी और मृत्यु की तारीख 27 फरवरी.
सीनियर डॉक्टर में असमंजस
जब क्विंट ने लोक नायक अस्पताल के डॉक्टर किशोर से सवाल-जवाब किया कि उन्होंने कैसे कहा कि फैजान को 24 फरवरी के दिन मौत के बाद लाया गया था, अगर मृत्यु प्रमाण पत्र दर्शाता है कि उसकी मौत 27 फरवरी को हुई? इस पर जवाब देने के बजाए डॉक्टर सिंह कहते हैं कि उनके जूनियर से बात करें. उनके जूनियर डॉक्टर रितु सक्सेना ने हमें बताया कि मृत्यु प्रमाण पत्र पर लिखी तारीख सही है.
“फैजान को अस्पताल के न्यूरो सर्जरी वार्ड में 26 फरवरी को भर्ती कराया गया था. उसे लेकर उसके परिजन आए थे. हम मौत के कारणों का खुलासा नहीं कर सकते. पोस्टमार्टम रिपोर्ट जांच अधिकारी के पास है.”डॉ रीतु सक्सेना, सीसीएमओ, लोक नायक अस्पताल
अब सवाल ये हैं :
- क्यों एक सीनियर अफसर, ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर ने क्विंट को बताया कि सभी पांचों घायलों को जीवित हाल में दिल्ली पुलिस अस्पताल लेकर गयी?
- क्यों लोकनायक अस्पताल के सीनियर अधिकारी डॉ किशोर सिंह ने क्विंट को विरोधाभासी जानकारी दी?
पुलिसकर्मियों की पहचान नहीं हुई, विशेषज्ञ पूछ रहे हैं क्यों?
ज्वाइंट कमिश्नर आलोक कुमार ने कहा कि वे पुलिसकर्मी जिन्होंने पांच घायलों से राष्ट्र गान गवाया, उनकी पहचान अब तक नहीं हुई है और उनके खिलाफ एक विभागीय जांच गठित की गयी है.
“असल में उन पुलिसकर्मियों ने गलत किया जिन्होंने उनसे राष्ट्रगान गवाया जब उन्हें तत्काल इलाज की जरूरत थी. अब पुलिसकर्मियों ने ऐसा क्यों किया, हम इस बारे में तभी जान पाएंगे जब विभागीय जांच पूरी होगी.”आलोक कुमार, ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर
कानून के जानकार कहते हैं कि पुलिस को उसी एफआईआर के अंतर्गत जांच करनी चाहिए और विभागीय जांच काफी नहीं है.
“यह ऐसी घटना है जिसमें कोई भी अदालत पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से मना नहीं कर सकती. और अगर ऐसा किया जाता है तो असल में यह न्याय का गला घोंटना होगा. एक बुरी तरह से घायल व्यक्ति को राष्ट्रगान गवाया गया और अब उसकी मौत हो गयी है.”जॉन रेबेक्का, वरिष्ठ वकील
पूर्व आईपीएस अफसर वाईपी सिंह ने कहा कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी इंडियन पेनल कोड के सेक्शन 341 के तहत उनकी क्रूरता की जांच होनी चाहिए क्योंकि उन्होंने 5 घायलों के साथ अभद्रता की और राष्ट्रगान गाने को मजबूर किया.
“पुलिस बगैर किसी देरी के आसानी से उन पुलिसकर्मियों की पहचान कर सकती है अगर वह ईमनादारी से इस मामले में जुटी है. उनकी पहचान के लिए पुलिस के पास कई संसाधन उपलब्ध हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि वे अपने लोगों की रक्षा में जुटे हैं.”वाईपी सिंह, पूर्व आईपीएस अफसर
जिस जगह से पांच लोगों को कथित रूप से प्रताड़ित करने वाला वीडियो शूट किया गया, वहां से एक और एंगल निकलता है.
क्विंट पूछता है :
- जब उस घटना के एक नहीं दो-दो वीडियो अलग-अलग एंगल से मौजूद हैं तो क्या उन पुलिसकर्मियों की पहचान करना इतना मुश्किल है?
- कोई उन पुलिसकर्मियों को देख नहीं सकता लेकिन निश्चित रूप से उन्हें सुन सकता है. सहकर्मी पुलिसकर्मियों के लिए अपने साथियों की पहचान करना कितना मुश्किल है?
- स्टेशन हाउस अफसर (एसएचओ) को अपने लोगों की तैनाती का हमेशा पता होता है. एसएचओ क्यों नहीं पुलिसकर्मियों की पहचान कर सकते हैं?
- क्या दिल्ली पुलिस अपने लोगों को बचा रही है?
- क्या दिल्ली पुलिस उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करेगी ताकि फैजान की मौत में उनकी भूमिका की जांच की जा सके? क्या आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत ऐसा होगा? या फिर महज सेक्शन 304ए के तहत मामूली केस दर्ज होकर रह जाएगा? (ब्रैकेट में यह दर्ज है कि 304ए क्या है)
- क्या दिल्ली पुलिस इस बार मामूली सी विभागीय जांच के बजाए कुछ बेहतर करेगी और मामले को दबाने के कोशिश से बचेगी?
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