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महामारी के बीच दिल्ली में रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल, क्या है मरीजों का हाल?

डॉक्टरों के स्ट्राइक पर जाने से नहीं मिल रहा मरीजों को इलाज

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दिल्ली (Delhi) के सरकारी अस्पतालों में कम से कम 5 हजार रेजीडेंट डॉक्टरों ने NEET-PG काउंसलिंग एडमिशन प्रक्रिया में देरी के खिलाफ फिर से हड़ताल शुरू की है.

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के रेजीडेंट डॉक्टर स्ट्राइक पर चले गए हैं, इसकी वजह से दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार के अस्पतालों की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है.

मौजूदा वक्त में बनी हुई स्थिति की वजह से मरीजों को तकलीफ हो रही हैं और इलाज भी नहीं हो पा रहा है.

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दिल्ली सरकार के एलएनजेपी हॉस्पिटल के इमरजेंसी विभाग में आने वाले मरीजों को वापस लौटाया जा रहा है क्योंकि रेजिडेंट डॉक्टर्स स्ट्राइक पर हैं और वहां पर इलाज की पूरी व्यवस्था उपलब्ध नहीं है.

उत्तर प्रदेश के संभल जिले से आने वाले परिवार को भी एडमिट करने से मना कर दिया गया.

रेजीडेंट डॉक्टर्स का कहना है कि NEET-PG के काउंसलिंग सेलेक्शन प्रोसेस में बहुत देर हो गई है, अगर ये पूरा कर दिया जाता है तो डॉक्टर्स पर पड़ने वाला अतिरिक्त बोझ हल्का हो जाएगा.

स्ट्राइक का खामियाजा भुगत रहे हैं मरीज

LNJP अस्पताल में आए हुए मोहम्मद हाफिज कहते हैं मेरे पेशेंट का इलाज पंत हॉस्पिटल में चल रहा था, जब मरीज की स्थिति ज्यादा गंभीर हुई तो वहां से यहां रेफर कर दिया गया लेकिन यहां आने के बाद हमें एडमिट करने से मना कर दिया गया.

अस्पताल में बताया गया कि डॉक्टर नहीं हैं, आज जूनियर्स हैं लेकिन कल वो भी नही होंगे.

दीपक कुमार ने क्विंट से बात से करते हुए कहा कि मैं अपनी मम्मी को यहां लेकर आया तो कहा गया कि यहां पर हड़ताल है आप प्राइवेट में जाओ, यहां इलाज नहीं हो पाएगा. मेरी मम्मी को रात से ही सांस की समस्या है, वो तीन-चार बार बेहोश हो चुकी हैं.

बता दें कि सफदरजंग, राम मनोहर लोहिया, गुरु तेग बहादुर और लोकनायक अस्पताल में इमरजेंसी और ओपीडी सेवाओं पर असर देखने को मिला. परेशान परिजन मरीजों के इलाज के लिए यहां-वहां भागते हुए दिखे क्योंकि प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाना उनके बजट के बाहर था

मोहम्मद हाफिज ने कहा कि प्राइवेट अस्पतालों में जाने की हमारी कंडीशन नहीं है.

सफदरजंग हॉस्पिटल आए हुए रमेश ने कहा कि मैं अपने मरीज को पहले शकुंतला हॉस्पिटल में एडमिट किया था, वहां मुझे सफदरजंग के लिए रेफर किया गया.

यहां पर आने के बाद हमसे कहा गया कि यहां पर स्ट्राइक चल रही है हम आपको किसी भी प्रकार की व्यवस्था नहीं दे सकते. हमारे मरीज को गले में ट्यूमर है और ऑक्सीजन की भी जरूरत है.

उन्होंने कहा कि हमें यहां से मना कर दिया गया और अब हम एम्स जा रहे हैं.

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अस्पतालों में ऐसे माहौल के बीच डॉक्टरों ने आठ महीने से लंबित अन्य डॉक्टरों की काउंसलिंग और प्रवेश प्रक्रिया की मांग की है.

आरडीए, सफदरजंग के जनरल सेक्रेटरी अनुज अग्रवाल ने कहा कि आमतौर पर एक टाइम में जहां पर तीन बैचेज के कर्मचारी काम करते हैं, अब सिर्फ दो बैचेज के हैं और अगले एक-दो महीने में सिर्फ एक बैच रह जाएगा क्योंकि एग्जाम आने वाले हैं. उन्होंने कहा कि जहां पर 100 डॉक्टरों को होना चाहिए वहां पर सिर्फ 33 डॉक्टर्स हैं.

जो 45 हजार डॉक्टर्स घर पर बैठे हैं उन्होंने एग्जाम भी क्वालिफाई कर लिया है. वो आकर ज्वाइन करना चाहते हैं और सर्विसेज प्रोवाइड करना चाहते हैं लेकिन उनको ज्वाइन नहीं करने दिया जा रहा है. जो आउटकम है वो पूरा मरीजों के ऊपर आता है, मरीजों को अच्छा इलाज मिलना चाहिए लेकिन उनको डॉक्टर नहीं मिल पा रहा है.
अनुज अग्रवाल, जनरल सेक्रेटरी, सफदरजंग

उन्होंने कहा कि एक डॉक्टर जब 72 घंटे ड्यूटी में काम करेगा, उसको सोने का समय नहीं मिलेगा, तो वो क्या किसी मरीज की केयर कर पाएगा.

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पिछले महीने से चल रहा है विरोध प्रदर्शन

पिछले 27 नवंबर से देश भर में रेजिडेंट डॉक्टर प्रदर्शन कर रहे हैं. बता दें कि 15 दिसंबर को FORDA स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडिया को पत्र लिखकर 17 दिसंबर से सभी अस्पताल सेवाओं को वापस लेने के अपने फैसले के बारे में सूचित किया.

अनुज अग्रवाल कहते हैं कि यह प्रोटेस्ट 27 तारीख से चल रहा है और हर प्रोटेस्ट से 48 घंटे पहले हमने प्रशासन को सारी सूचना दी है, हर हॉस्पिटल के एमएस को दी है और साथ में स्वास्थ्य मंत्री जी को भी सूचना पहुंचाई गई है. इसके बाद भी अगर वो कुछ एक्शन नहीं लेना चाहते, अगर मरीजों को उनकी कोई फिक्र ही नहीं है तो इसके लिए ये कहना चाहूंगा कि सारी जिम्मेदारी सिर्फ रेजिडेंट डॉक्टरों की नहीं है, सरकार को भी कुछ करना पड़ेगा.

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