देशभर में आज ईद उल फितर (Eid 2022) का त्योहार का धूमधाम से मनाया जा रहा है. ये दिन मुसलमानों के लिए सबसे अहम दिनं में से एक है और इस्लाम में ईद के दिन को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है. तमाम मुसलमानों ने आज ईदगाह जाकर नमाज पढ़ी और फिर एक दूसरे को गले लगाकर ईद की बधाई दी. वैसे आजकल काफी जगहों पर मस्जिदों में भी ईद की नमाज होती है लेकिन शहर से बाहर जाकर ले आसमान के नीचे ईद की नमाज पढ़ना सुन्नत है जो ज्यादातर जगहों पर निभाई जाती है. लेकिन,
कुछ सुन्नतें ऐसी भी हैं जिन्हें आज मुस्लिम समाज ने लगभग भुला दिया है. उन्हीं में से एक है महिलाओं का ईदगाह पर जाकर नमाज अदा करना. हालांकि कुछ जगहों पर महिलाएं ईद की नमाज अदा करने ईदगाह जाती हैं लेकिन ज्यादातर जगहों पर ये सुन्नत भुला दी गई है.
ये सुन्नत कितनी जरूरी है इसका अंदाजा आप ऐसे लगाइए कि हदीस में हजरत उम्मे अतीया (रजि.) से रिवायत है कि मोहम्मद साहब (रसूल अल्लाह सल्लल्लाहुआलेहिवसल्लम) ने ये हमें ये हुक्म दिया कि, दोनों ईदों के दिन हम हैज (पीरियड) वाली और पर्दानशीं (बालिग) तमाम औरतों को ईदगाह ले जायें. इससे अंदाजा लगाइए कि मोहम्मद साहब ने महिलओं को ईदगाह ले जाने के लिए हुक्म दे रहे थे कि ईद की नमाज के लिए तमाम औरतें ईदगाह जायें. इसकी हद देखिए कि मोहम्मद साहब ने उन औरतों को भी ईदगाह जाने के लिए हुक्म दिया जो उस दौरान पीरियड से हों. जबकि पीरियड के दौरान औरत को नमाज से छूट होत है.
मतलब फर्ज से छूट है लेकिन ईद की नमाज के लिए हुक्म है. मौलाना ताहिर हुसैन कादरी कहते हैं कि, हुजूर ने फरमाया कि हैज (पीरियड) वाली औरतें भी ईदगाह आयें ताकि वो मुसलमानों के साथ दुआओं में हिस्सा ले सकें. मतलब जिन औरतों को पीरियड हो उन्हें नमाज से छूट है, लेकिन वो ईदगाह जाकर दुआओं में शिरकरत करें. इसलिए ये सुन्नत काफी अहम है क्योंकि रसूल अल्लाह ने ताकीद की कि, आप सब औरतों को लेकर आयें. लेकिन आज के वक्त में माहौल बदल गया है. तो ये सुन्नत भी कुछ पीछे छूट गई.
सुन्नत क्या है ?
इस्लाम में ये मान्यता है कि मोहम्मद साहब आखिरी नबी हैं और अब दीन पूरा हो चुका है. जिसमें किसी बदलाव की अब कोई गुंजाइश नहीं है. जहां तक सुन्नत का सवाल है तो मोहम्मद साहब के पदचिन्हों पर चलना सुन्नत कहलाता है. मतलब जो उन्होंने किया और जो उन्होंने कहा...सुन्नत अदा ना करने पर कोई गुनाह नहीं मिलता लेकिन सुन्नत अदा करने पर सवाब (पुण्य) जरूर मिलता है.
इस सुन्नत का आज के दौर में बड़ा महत्व है जब मुस्लिम औरतें शिक्षा और दुनियावी तौर तरीकों में कहीं पीछे छूट रही हैं. ऐसे में मोहम्मद साहब का खुद ये कहना कि बाहर निकलो ईदगाह में जाओ एक दूसरे से मिलो.
ये महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि औरतों को घर तक महदूद कर देना उनको गंवारा नहीं था. इसीलिए मोहम्मद साहब जोर देकर कहते थे कि औरतों को ईद के दिन बाहर निकालो. लेकिन देखिए कैसे हमने अपने हिसाब से इस सुन्नत को पीछे छड़ दिया और महिलाओं को घर तक सीमित कर दिया.
आज के दौर में औरतें बाकी भले ही सब कामों के लिए निकल रही हैं लेकिन ना तो मस्जिदों में नमाज पढ़ने जाती हैं और ईद पर भी ईदगाह तक ना के बराबर ही जाती हैं.
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