ADVERTISEMENTREMOVE AD

EWS आरक्षण को लेकर पूरा विवाद क्या है? SC में किन 3 सवालों पर चर्चा

EWS Reservation: EWS कोटे में कौन और कैसे आ सकता है? सरकार का क्या है तर्क?

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

आर्थिक रूप से कमजोर यानी इकनॉमिक वीकर सेक्शन (EWS) कोटे से मिलने वाले आरक्षण के खिलाफ याचिका पर आज यानि 13 सितंबर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. सुप्रीम कोर्ट इस बात की जांच करेगा कि संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, जिसने सरकारी नौकरियों और एडमीशन में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10 प्रतिशत कोटा दिया है क्या वो संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यू यू ललित के नेतृत्व में पांच-जजों की संविधान पीठ ने पिछले हफ्ते संशोधन की वैधता का पता लगाने के लिए तीन प्रमुख मुद्दों की जांच करने का फैसला किया था. बेंच में जस्टिस एस रवींद्र भट, दिनेश माहेश्वरी, एस बी पारदीवाला और बेला त्रिवेदी शामिल हैं.

बता दें कि EWS कोटे को चुनौती अगस्त 2020 में पांच-जजों की पीठ को सौंपी गई थी.

क्या हैं वो तीन मुद्दे जिनपर सुप्रीम कोर्ट में होगी चर्चा

दरअसल, इस मामले पर सुनवाई अटॉर्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल द्वारा सुझाए गए तीन मुद्दों पर हो रही है. हालांकि अटॉर्नी जनरल ने चार मुद्दे सुझाए थे लेकिन चीफ जस्टिस यूयू ललित ने निर्देश दिया कि वह एजी द्वारा सुझाए गए चार मुद्दों में से तीन पर सुनवाई का आधार बनाएंगे.

  • क्या 103वें संविधान संशोधन को आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण सहित विशेष प्रावधान करने की राज्य को अनुमति देकर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन कहा जा सकता है?

  • क्या 103वें संविधान संशोधन को निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के संबंध में राज्य को विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन कहा जा सकता है?

  • * क्या बुनियादी ढांचे का उल्लंघन "एसईबीसी (सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग) / ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) / एससी (अनुसूचित जाति) / एसटी (अनुसूचित जनजाति) को EWS आरक्षण के दायरे से बाहर करके किया गया है?"

103वां संशोधन क्या है?

103वें अमेंडमेंट ने संविधान में आर्टिकल 15(6) और 16(6) को शामिल किया, जो उच्च शिक्षण संस्थानों (higher educational institutions) में पिछड़े वर्गों, SC और ST के अलावा दूसरे EWS वर्गों को 10 प्रतिशत तक आरक्षण प्रदान करता है और सरकारी नौकरियों में प्रारंभिक भर्ती करता है. संशोधन ने राज्य सरकारों को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण प्रदान करने का अधिकार दिया.

आर्टिकल 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है. आर्टिकल 16 सार्वजनिक रोजगार के मामलों में समान अवसर की गारंटी देता है. अतिरिक्त क्लॉज ने संसद को EWS के लिए खास कानून बनाने की शक्ति दी, जैसे कि वह SC, ST और OBC के लिए करता है.

EWS आरक्षण मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एस आर सिंहो की अध्यक्षता वाले एक आयोग की सिफारिशों के आधार पर दिया गया था. मार्च 2005 में यूपीए सरकार द्वारा गठित आयोग ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट जमा की थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

EWS कोटे में कौन और कैसे आ सकता है?

103वें संशोधन के आधार पर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) द्वारा 31 जनवरी, 2019 को रोजगार और एडमीशन के लिए EWS क्राइटेरिया नोटिफाई किया था.

2019 के नोटिफिकेशन के तहत, एक व्यक्ति जो एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की योजना के तहत नहीं आता है, और जिनके परिवार की सकल वार्षिक आय (gross annual income) 8 लाख रुपये से कम है, उन्हें आरक्षण के लाभ के लिए EWS कोटे में जगह दी जाएगी. आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण में 8 लाख रुपए से कम वार्षिक आय के अलावा और भी प्रावधान हैं, जैसे कि इस कैटेगरी में आने वाले के लिए किसी सामान्य वर्ग के परिवार के पास 5 एकड़ या उससे अधिक कृषि भूमि नहीं होनी चाहिए. साथ ही परिवार के पास 1000 वर्ग फुट या उससे अधिक क्षेत्रफल का रेजिडेंशियल प्लाट या घर नहीं होना चाहिए.

वहीं जब सरकार ने EWS कोटे का रास्ता निकाला तो अक्टूबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट में पीजी मेडिकल कोर्स के लिए ऑल इंडिया कोटा में EWS के लिए आरक्षण को चुनौती दी गई, जिसपर कोर्ट ने सरकार से पूछा कि 8 लाख रुपये की सीमा तक कैसे पहुंच गया. केंद्र ने अदालत से कहा कि वह आय मानदंड पर फिर से विचार करेगा और इस उद्देश्य के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन करेगा.

इस साल जनवरी में, सरकार ने समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया था कि "वर्तमान स्थिति में, वार्षिक पारिवारिक आय की 8 लाख रुपये की सीमा, EWS निर्धारित करने के लिए उचित लगती है" और "रखी जा सकती है". हालांकि, समिति ने कहा, "EWS ... आय की परवाह किए बिना, ऐसे व्यक्ति को बाहर कर सकता है, जिसके परिवार के पास 5 एकड़ या उससे अधिक कृषि भूमि है". इसके अलावा, समिति ने सिफारिश की, "आवासीय संपत्ति मानदंड पूरी तरह से हटाया जा सकता है".

ADVERTISEMENTREMOVE AD

किस-किसको है आपत्ति?

गैर सरकारी संगठन- जनहित अभियान और यूथ फॉर इक्वलिटी ने सुप्रीम कोर्ट में EWS रिजर्वेशन के खिलाफ याचिका दायर की है. याचिका में संविधान (103 वां संशोधन) अधिनियम, 2019 की वैधता को चुनौती दी गई है और कहा गया है कि आर्थिक वर्गीकरण आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है.

इसके अलावा पिछड़ा समुदाय के अधिकारों के लिए सोसायटी (एसएफआरबीसी) के सदस्य 103वें संविधान संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की मांग कर रहे हैं.

वहीं तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके ने अगड़े समुदायों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10% आरक्षण देने के केंद्र सरकार के 2019 के फैसले का विरोध किया है. डीएमके के नेतृत्व वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है. DMK ने सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी कि कोटा उन व्यक्तियों के सामाजिक पिछड़ेपन को कम करने के लिए दिया जाता है जो सामाजिक रूप से उत्पीड़ित थे. आर्थिक स्थिति के आधार तक इसका दायरा बढ़ाना आरक्षण का मजाक हो सकता है.

याचिकाकर्ताओं ने संशोधन को इस आधार पर भी चुनौती दी है कि यह सुप्रीम कोर्ट के 1992 के इंद्रा साहनी और अन्य बनाम भारत संघ के फैसले का उल्लंघन करता है, जिसने मंडल रिपोर्ट को बरकरार रखा और आरक्षण को 50 प्रतिशत पर सीमित कर दिया था. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि संशोधन संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है और आरक्षण की कुल 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन करता है जैसा कि इंद्रा साहनी मामले में कहा गया था.

याचिका में कहा गया है कि अदालत ने माना था कि पिछड़े वर्ग की पहचान के लिए आर्थिक पिछड़ापन एकमात्र क्राइटेरिया नहीं हो सकता है.

इस मामले में एक और चुनौती निजी, गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों की ओर से दी गई है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि एक व्यापार/प्रोफेशन के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है जब राज्य उन्हें अपनी आरक्षण नीति लागू करने और योग्यता के अलावा किसी भी क्राइटेरिया पर छात्रों के एडमीशन के लिए मजबूर करता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकार का क्या रुख है?

जवाबी हलफनामों में, सोशल जस्टिस और इंपावरमेंट मंत्रालय ने तर्क दिया कि संविधान के आर्टिकल 46 के तहत, राज्य का कर्तव्य है कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा करे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×