कश्मीर पुलिस ने सोमवार हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी (SAS Geelani) के अंतिम संस्कार के कई वीडियो ट्वीट किए, जिसमें गिलानी के अंतिम संस्कार को दिखाया गया है. पुलिस ने उन अफवाहों को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया है था कि परिवार के सदस्यों से शव को कब्जे में लेने के बाद, पुलिस ने गिलानी को इस्लामिक तरीके से नहीं दफनाया था.
कश्मीर पुलिस ने वीडियो ट्वीट करते हुए अंतिम संस्कार पर एक बयान भी जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पुलिस ने गिलानी के परिवार को उसे दफनाने की अनुमति नहीं दी थी.
आईजीपी कश्मीर ने एक बयान में कहा कि पुलिस के खिलाफ तथाकथित आरोप निराधार हैं. वास्तव में पुलिस ने शव को घर से कब्रिस्तान लाने में मदद की क्योंकि आशंका थी कि उपद्रवी स्थिति का अनुचित लाभ उठा सकते हैं. रिश्तेदारों ने अंतिम संस्कार में भाग लिया.
कश्मीरी अलगाववादी नेता अली शाह गिलानी का 1 सितंबर को श्रीनगर में उनके आवास पर निधन हो गया था.
कश्मीर पुलिस का बयान
कश्मीर पुलिस ने ट्वीट करते हुए कहा कि गिलानी की मृत्यु के बाद आईजीपी कश्मीर विजय कुमार ने एसपी और एएसपी के साथ उनके दोनों बेटों से रात 11 बजे उनके आवास पर मुलाकात की, उन्हें शोक व्यक्त किया और स्थितियों को देखते हुए रात में सुपुर्द-ए-खाक करने के लिए अनुरोध किया. दोनों तरफ से सहमति जताई गई और रिश्तेदारों के पहुंचने तक दो घंटे इंतजार करने को कहा गया, साथ ही आईजीपी कश्मीर ने व्यक्तिगत रूप से कुछ रिश्तेदारों से बात की और उन्हें सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित किया.
हालांकि 3 घंटे बाद शायद पाकिस्तान और बदमाशों के दबाव में उन्होंने पहले से अलग व्यवहार किया और पाकिस्तान के झंडे में शव लपेटने, पाकिस्तान के पक्ष में जोरदार नारे लगाने और पड़ोसियों को बाहर आने के लिए उकसाने सहित राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का सहारा लेना शुरू कर दिया.कश्मीर पुलिस
पुलिस ने यह भी कहा कि उनके परिवारवाले शव को कब्रिस्तान ले आए और इंतिजामिया कमेटी के सदस्यों और स्थानीय इमाम की मौजूदगी में पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. उनके दोनों बेटों का कब्रिस्तान में आने से इनकार करना, दिवंगत पिता के लिए उनके प्यार और सम्मान के बजाय पाकिस्तानी एजेंडे के प्रति उनकी वफादारी को दर्शाता है.
पीटीआई ने रविवार को बताया था कि जब वीडियो सामने आया था कि गिलानी के शरीर को पाकिस्तान के झंडे में लिपटे हुए देखा गया तो कश्मीर पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया था, क्योंकि उनकी मौत के बाद लोगों ने 'राष्ट्र-विरोधी' नारे लगाए थे.
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