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Haryana Violence: गुरुग्राम में मुसलमान मजदूरों का पलायन- “उनकी अहमियत हमें अब समझ आई”

लेकिन यह राजनैतिक चेतना नहीं, अपनी ग़रज़ के चलते है क्योंकि कालोनियां साफ नहीं हो रहीं, बाल काटने वाला जा चुके हैं.

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भारत
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मशहूर सैलून चेन Cut & Style के नियमित ग्राहकों के पास 6 अगस्त को एक मैसेज आया. इस मैसेज से सब हैरान-परेशान हो गए. यह मैसेज इस सैलून चेन की गुरुग्राम (Gurugram) स्थित पालम विहार ब्रांच से आया था. इसमें कहा गया था कि ‘मौजूदा हालात’ के चलते ‘उसके पास कर्मचारियों की कमी हो गई है’. सैलून के हिसाब से, ‘मौजूदा हालात’ का मतलब वह हिंसा थी, जो पिछले हफ्ते गुरुग्राम सहित हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में हुई थी.

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मैसेज कुछ यूं था:

"Cut & Style के सम्मानीय ग्राहकों का अभिवादन, "आप सभी को सूचित किया जाता है कि मौजूदा हालात की वजह से हमारे पास कर्मचारियों की कमी है. आपको इंतजार न करने पड़े, इसलिए हम आपसे गुजारिश करते हैं कि सेवाएं प्राप्त करने के लिए हमें पहले से सूचित करने और अप्वाइंटमेंट लेकर आने का कष्ट करें.”

इस संबंध में अधिक जानकारी लेने पर सैलून की मैनेजमेंट टीम के एक सदस्य ने द क्विंट को बताया कि हेयरड्रेसर, जिनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं, अपने गांव चले गए हैं. मैनेजमेंट को उम्मीद है कि अगर हालात में सुधार हुआ तो हेयरड्रेसर जल्द ही वापस आ जाएंगे.

लेकिन यह राजनैतिक चेतना नहीं, अपनी ग़रज़ के चलते है क्योंकि कालोनियां साफ नहीं हो रहीं, बाल काटने वाला जा चुके हैं.

गुरुग्राम के पालम विहार में सैलून कट एंड स्टाइल

(फातिमा खान/द क्विंट)

गुरुग्राम में इंडस्ट्रीज और नौकरियों में, कई इम्प्लॉयर्स मुसलमान कर्मचारियों की कमी झेल रहे हैं. इन लोगों में हेयरड्रेसर्स, कारपेंटर से लेकर क्लीनर्स और मजदूर तक हैं. इनमें से बहुत से अपने गांव चले गए हैं.

पिछले हफ्ते बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे विभिन्न राज्यों के मुसलमान प्रवासियों के विजुअल्स खूब वायरल हुए थे, जिन्हें या तो उनके किराए के मकानों से निकाल दिया गया या वे हिंसा के खौफ के चलते घर छोड़कर चले गए.

अब उन्हें काम पर रखने वाले परेशान हैं कि कामगार हैं नहीं. इन लोगों की गैरमौजूदगी ने इनकी मेहनत और कीमत, दोनों समझ आ रही हैं.

"हमारा कचरा कौन उठाएगा?" बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले पूछ रहे

पिछले हफ्ते गुरुग्राम के सेक्टर 70 से कई प्रवासी अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर, अपनी झुग्गियों को खाली करके अपने गांव चले गए. इस सेक्टर में एक तरफ झुग्गी-बस्तियां हैं, और दूसरी तरफ बहुमंजिली इमारतें भी, जिन्हें हाई-राइज रेसिडेंशियल सोसायटीज कहा जाता है.

ऐसी ही एक सोसायटी है, द ट्यूलिप ऑरेंज. इसके हाउसकीपिंग स्टाफ में कुल 12 लोग हैं जिनमें से 10 मुसलमान हैं. पिछले कुछ दिनों में 10 में से आठ मुसलमान यहां से चले गए है. इससे बचे हुए कर्मचारियों को पूरी सोसायटी की सफाई का बोझ उठाना पड़ रहा है.

सफाई कर्मचारियों के मुखिया मिट्ठू कहते हैं कि हर कोई अब इसका खामियाजा भुगत रहा है. सोसायटी में रहने वाले सफाई की कमी की शिकायत कर रहे हैं लेकिन हम भी संघर्ष कर रहे हैं. 12 लोगों का स्टाफ सिमटकर चार रह गया है. हमारे मुसलमान साथी, जो बंगाल के थे, वापस अपने घर चले गए हैं.

उसी सोसायटी की रेसिडेंस वेल्फेयर एसोसिएशन (RWA) की प्रेसिडेंट का वीडियो पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.

वीडियो में ट्यूलिप ऑरेंज की RWA प्रेसिडेंट किरण कपूर को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि हमारा हाउसकीपिंग स्टाफ इतना डरा हुआ था कि वह चला गया और हमारा सारा काम रुक गया. हमारी सोसायटी गंदी हो गई है. हर किसी के घर के सामने कूड़ा जमा हो गया है, इसे कौन उठाएगा.

लेकिन यह राजनैतिक चेतना नहीं, अपनी ग़रज़ के चलते है क्योंकि कालोनियां साफ नहीं हो रहीं, बाल काटने वाला जा चुके हैं.

गुरुग्राम के सेक्टर 70 की ट्यूलिप ऑरेंज सोसायटी

(फातिमा खान/द क्विंट)

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ट्यूलिप ऑरेंज के एक निवासी 18 वर्षीय प्रजय करखानिस कहते हैं कि जो महिला उसके यहां बर्तन साफ करने आती थी, वह पिछले हफ्ते से काम पर नहीं आ रही. “उसने कहा कि उसे उसके किराए के कमरे से निकाल दिया गया है और उसके पास अपने गांव जाने के अलावा कोई चारा नहीं है. मैं नहीं जानता कि उसका गांव कहां है, शायद पश्चिम बंगाल में कहीं पर है”

उसका कहना है कि इस विवाद से "बहुत तकलीफ हो रही है", लेकिन इससे कोई राजनैतिक जागरूकता नहीं पैदा हो रही. “यहां के लोग राजनीतिक रूप से बहुत जागरूक नहीं हैं या वे इसमें दिलचस्पी रखते हैं. वे असल में परवाह तक नहीं करते. इसमें कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा है.
प्रजय करखानिस

गुरुग्राम की एक और हाई राइज सोसायटी पारस ईरेन के एक RWA सदस्य का कहना है कि हमारे हाउसकीपिंग स्टाफ में भी मुसलमान प्रवासी बहुत बड़ी संख्या में थे. उनके चले जाने के वजह से “हमें तुरत-फुरत 30 लोगो को काम पर रखना पड़ा, वह भी बढ़ी हुई तनख्वाह पर".

लेकिन यह राजनैतिक चेतना नहीं, अपनी ग़रज़ के चलते है क्योंकि कालोनियां साफ नहीं हो रहीं, बाल काटने वाला जा चुके हैं.

गुरुग्राम में कई हाई राइज रेसिडेंशियल सोसायटीज

(फातिमा खान/द क्विंट)

"हमें सब कुछ खुद करना पड़ रहा है"- कारपेंटर, कार रिपेयर शॉप के मालिक

रोजमर्रा के कई अहम काम जैसे कारपेंटरी और रिपेयर वर्क सभी पर असर हुआ है.

गुरुग्राम के एक कॉमर्शियल एरिया, मारुति कुंज में लकड़ी के काम की कई दुकानें, जहां फर्नीचर बनाया जाता है. यहां मुस्लिम कामगारों की कमी शिद्दत से महसूस की जा रही है.

ऐसी ही एक दुकान के मालिक और पुराने फर्नीचर खरीदने और नया बनाने का काम करने वाले अमित सिंह द क्विंट से बात करते हुए कहते हैं कि

इरशाद, हमारे पास सिर्फ एक ही कारपेंटर था. वह लंबे समय से हमारे साथ काम कर रहा था और अपने काम में खुश था. वह 1 अगस्त को अपने गांव सोंध चला गया.

सोंध गांव टौरू शहर में पड़ता है, जो नूंह जिले में है. यह पिछले हफ्ते हरियाणा में हिंसा भड़कने पर सबसे गंभीर रूप से प्रभावित जिलों में से एक है.

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लेकिन यह राजनैतिक चेतना नहीं, अपनी ग़रज़ के चलते है क्योंकि कालोनियां साफ नहीं हो रहीं, बाल काटने वाला जा चुके हैं.

अमित सिंह अपनी फर्नीचर की दुकान के सामने

(फातिमा खान/द क्विंट)

अमित का कहना है कि इरशाद अपने माता-पिता के लिए परेशान था, जो वहां अकेले रहते हैं. वह तब से वापस नहीं लौटा. घर लौटने के कुछ दिन बाद उसने फोन पर मुझसे कहा कि उसके बकाए पैसे उसे भेज दूं. मैंने उसे पैसे भेज दिए. अब मैं उम्मीद करता हूं कि वह वापस लौट आएगा. वरना हमारे काम पर बहुत असर होगा.

इसी तरह मारुति कुंज में एक ऑटोमोबाइल रिपेयर शॉप के मालिक बलराम ने पिछले हफ्ते पांच टायर पंक्चर खुद बनाए- यह पंक्चर पहले उनकी दुकान में काम करने वाला नजीर बनाया करता था. 19 साल का नजीर पिछले चार सालों से उनकी दुकान में मैकेनिक है.

हमने उससे कहा कि हम उसका ख्याल रखेंगे लेकिन वह रात में दुकान के अंदर ही सोता था और उसे डर था कि हिंसा के दौरान उसके साथ कुछ हो सकता है. इसलिए वह चला गया. नजीर 1 अगस्त की शाम को मथुरा चला गया. वह मथुरा का रहने वाला है. तब से वह वापस नहीं लौटा है.
बलराम ने द क्विंट से बातचीत में
लेकिन यह राजनैतिक चेतना नहीं, अपनी ग़रज़ के चलते है क्योंकि कालोनियां साफ नहीं हो रहीं, बाल काटने वाला जा चुके हैं.

ऑटोमोबाइल रिपेयर की दुकान में बलराम (ग्रे शर्ट)

(फातिमा खान/द क्विंट)

बलराम ने आगे बताया कि अब मुझे सारा काम करना पड़ रहा है. पंक्चर बनाने से लेकर कार साफ करने तक. सारा भार मुझ पर आ गया है. अब मुझे उसकी अहमियत समझ आ रही है. मैं चाहता हूं कि वह लौट आए और पहले की तरह काम करना शुरू कर दे.

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ये हाल सिर्फ इन्हीं दुकानों पर नहीं है बल्कि गुरुग्राम के मॉल्स में भी यही हाल है. प्रवासियों की कमी वहां भी महसूस की जा रही है. एमजी रोड पर सड़क के दोनों तरफ कई मॉल हैं. गुरुग्राम में रहने वाले अक्सर यहां आते हैं. मेट्रोपॉलिटन के साथ-साथ सिटी सेंटर मॉल में भी हाउसकीपिंग स्टाफ यह शिकायत कर रहा है कि जब से मुसलमान कर्मचारी अपने गांव चले गए हैं, तब से उन पर काम का बहुत दबाव है.

हिंदू गुरुग्राम की मुस्लिम गुरुग्राम के द्वारा सेवा की जाती है- सोशलॉजिस्ट्स

माइग्रेशन और शहरों पर खास तौर से अध्ययन करने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि गुरुग्राम, किसी भी दूसरे आधुनिक शहर की मानिंद- प्रवासियों की रीढ़ पर खड़ा है.

सिर्फ इतना ही नहीं, यह प्रवासियों और उनकी रोजमर्रा की मुलाजमत के दम पर चल रहा है.
राफेल सुसेविंड, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर और शहरी भारत पर अध्ययन करने वाले पॉलिटिकल एंथ्रोपोलॉजिस्ट

एंथ्रोपोलॉजिस्ट संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि शहर में एक छोटा, लगभग अदृश्य, मुस्लिम मध्यम वर्ग है.

संजय श्रीवास्तन की किताब है  Entangled Urbanism: Slum, Gated Community and Shopping Mall in Delhi and Gurgaon. वह कहते हैं कि हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम प्रवासी गरीब हैं और बड़ी संख्या में सेवा क्षेत्र में लगे हुए हैं. इसलिए, साफ तौर से 'हिंदू गुड़गांव' की सेवा 'मुस्लिम गुड़गांव' कर रहा है."

इसके अलावा, सुसेविंड का कहना है कि समकालीन शहरीकरण का अधिकांश हिस्सा दो बातों से मिलकर बनता है: ग्रामीण संकट और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण.

“मुस्लिम प्रवासियों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ शहर के भीतर उनका बढ़ता पृथक्करण ग्रामीण संकट और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक संयुक्त प्रभाव है: मुस्लिम प्रवासी गुरुगांव जैसी जगहों पर रोजगार के अवसर और दिल्ली की तेजी से अलग-थलग होती जा रही मुस्लिम कॉलोनियों में अपनी संख्या में सुरक्षा की तलाश कर रहे हैं.”

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हालांकि RWA समूहों द्वारा इन लोगों की पर्याप्त सुरक्षा की मांग की जाती रही है ताकि वे यहां बने रहें और काम करते रहें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे आमूल चूल बदलाव की मांग कर रहे हैं.

इस पर सुसेविंड का कहना है कि

आरडब्ल्यूए प्रवासी मजदूरों के लिए सिर्फ इतनी भर सुरक्षा चाहती है कि ताकि वे काम करते हैं, लेकिन रोजगार से जुड़ी अस्थिरता को दूर करने के लिए बड़ा बदलाव नहीं करना चाहती. यही हिंदू मध्यम वर्ग के हित में है कि उन्हें बस इतनी हिफाजत दी जाए- बाकी उनकी आर्थिक और राजनैतिक स्थिति जस की तस रहे.

वह आगे कहते हैं कि प्रवासियो के पास आय के वैकल्पिक साधन नही हैं और मध्यम वर्ग प्रवासियों और मुसलमानों की इस कमजोर स्थिति का फायदा उठाता रहेगा ताकि उन्हें कम से कम मजदूरी देना पड़े.

सेंटर फॉर पॉलिसी एंड रिसर्च की फेलो मुक्ता नाइक का कहना है कि गुरुग्राम एक क्लासिक केस है- एक ऐसे शहर का, जहां दो धुर विरोधी छोरों पर दो किस्म के लोग रहते हैं.

नाइक के मुताबिक, “अगर एक तरफ दौलतमंद लोगों का जमावड़ा है तो उन्हें दिनों दिन और मजबूत और मालदार बनाने के लिए रात दिन एक करने वाला औपचारिक मजदूरों का एक बड़ा समूह भी है. मुसलमान प्रवासी इसी फौज के प्यादे हैं, या यूं कहें कि सेवा अर्थव्यवस्था की एक मजबूत कड़ी.”

प्रवासियों के पलायन जैसी घटनाओं से व्यक्तिगत या पारिवारिक स्तर पर सहानुभूति पैदा हो सकती है- जैसा कि पहले कोविड लॉकडाउन के दौरान देखा गया था- लेकिन यह भावना जल्द ही दम तोड़ देती है. इस मामले से मुस्लिम प्रवासियों के लिए राजनीतिक जागरूकता या सहानुभूति की कोई स्थायी लहर पैदा करना मुश्किल है, वह भी 'अवैध प्रवासियों' या 'घुसपैठियों' या 'रोहिंग्या' जैसे शब्दों के सामने, जिनका इस्तेमाल नेताओं के अलावा पुलिस भी लापरवाही से जब-तब करती रहती है.” नाइक कहती हैं. वह एक आर्किटेक्ट और अर्बन प्लानर हैं.
मुक्ता नाइक

आगे उनके कहना है कि इसलिए यह शहर के राजनैतिक प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि वह प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करे- भले ही वे किसी भी धार्मिक पृष्ठभूमि के हों- अगर वे चाहते हैं कि "आर्थिक रूप से जीवंत केंद्र" के रूप में गुरुग्राम की प्रतिष्ठा बनी रहे.

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