जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) होंगे. राष्ट्रपति ने उनकी नियुक्ती पर मुहर लगा दी है. 9 नवंबर से जस्टिस चंद्रचूड़ के कार्यकाल की शुरुआत होगी. चंद्रचूड़ ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने अपने करियर में अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार, समलैंगिक सेक्स और राइट टू प्राइवेसी जैसे अहम मामलों पर फैसला सुनाने में अहम भूमिका निभाई.
चंद्रचूड़ पहले ऐसे मुख्य न्यायाधीश होंगे, जिनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ (YV Chandrachud), भी सीजेआई रह चुके हैं. वाई.वी. चंद्रचूड़ 1978 से 1985 के बीच करीब सात साल और चार महीने पद पर थे. वह सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सीजेआई थे.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने सेंट स्टीफंस कॉलेज, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में ऑनर्स के साथ बीए पास किया और कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की, जिसके बाद उन्होंने हार्वर्ड लॉ स्कूल से पीएचडी की.
चंद्रचूड़ ने 1998 से 2000 तक भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी काम किया. उन्हें 29 मार्च, 2000 को बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्होंने 31 अक्टूबर, 2013 से 13 मई, 2016 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया है.
बदला था पिता का फैसला
डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने पिता के दो फैसलों को पलट दिया था, जो adultery और Right to Privacy के अधिकार से संबंधित थे. 2018 में डीवाई चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे, जिसमें सर्वसम्मति से उस कानून को रद्द किया जो Adultery को एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के खिलाफ किए गए अपराध के रूप में मानता है. 1985 में उनके पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने Adultery Law को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया था.
चंद्रचूड़ के अहम फैसले
अविवाहित महिलाओं को भी गर्भपात का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट में दिए गए इस अहम फैसले की बेंच में चंद्रचूड़ भी थे, इस बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था एक अनमैरिड महिला को अबॉर्शन की इजाजत न देना उसकी आजादी का उल्लंघन होगा.
समलैंगिक सेक्स को अपराध की कैटेगरी से बाहर किया
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिक सेक्स को अपराध की कैटेगरी से बाहर किया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांचों जजों की टीम में चंद्रचूड़ भी थे, उन्होंने उस दौरान अपने फैसले में कहा था-
भारत में LGBT समुदाय को भी दूसरों की तरह समान अधिकार है. यौन प्राथमिकताओं के अधिकार से इनकार करना निजता के अधिकार को देने से इनकार करना है. किसी नागरिक की निजता में घुसपैठ का सरकार को हक नहीं है.
निजता का अधिकार (Right to Privacy)
2017 में निजता के अधिकार पर फैसला देने वाले नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ भी शामिल थे. राइट टू प्राइवेसी पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए उन्होंने कहा था- ' निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और ये संविधान के आर्टिकल 21 के तहत आता है'. सुप्रीम कोर्ट ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए ये फैसला दिया था.
अर्नब गोस्वामी की बेल पर चंद्रचूड़ का कमेंट
टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी की जमानत पर सुनवाई करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ के कमेंट की काफी चर्चा हुई थी. उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा था ‘उनकी जो भी विचारधारा हो, मैं तो उनका चैनल नहीं देखता, लेकिन अगर कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे.
अर्नब गोस्वामी पर 2018 में एक इंटीरियर डिजाइनर और उसकी मां को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था. जिसके बाद उन्हें जेल जाना पड़ा था. सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब को रिहा करने का आदेश देते हुए हाईकोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि उनकी जमानत की अर्जी ठुकराना गलत था. अर्नब ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने अंतरिम जमानत देने से इनकार किया था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)